भाजपा को विधानसभा चुनाव में किन कारणों से 2017 के मुकाबले कम मिले वोट? यूपी बीजेपी की रिपोर्ट में खुलासा

प्रतिष्ठित दैनिक अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भाजपा ने राज्य पर फिर से कब्जा कर लिया है. हालांकि, समाजवादी पार्टी-रालोद गठबंधन को लाभ होने के साथ ही 2017 से इसकी संख्या कम हो गई है. पार्टी के सूत्रों के अनुसार, 80 पेज की रिपोर्ट पीएमओ से एक सवाल के जवाब में भेजी गई है.

By Prabhat Khabar News Desk | April 22, 2022 3:22 PM
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Lucknow News: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की प्रदेश कार्यकारिणी की ओर से एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी गई है. यह रिपोर्ट हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के संबंध में है. इसमें बताया गया है कि पार्टी को बसपा के खिसकते वोट बैंक और ‘फ्लोटिंग वोट’ का कितना लाभ हुआ है? रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी को चुनाव में इन दोनों तरह के वोट से काफी लाभ हुआ है. इसमें यह भी कहा गया है कि ओबीसी वोट पार्टी की पहुंच से दूर जा रहे हैं और सहयोगी दलों के वोट भाजपा को नहीं मिलने के कारण इसकी संख्या में गिरावट आई है.

सहयोगी दलों का नहीं मिला वोट

प्रतिष्ठित दैनिक अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भाजपा ने राज्य पर फिर से कब्जा कर लिया है. हालांकि, समाजवादी पार्टी-रालोद गठबंधन को लाभ होने के साथ ही 2017 से इसकी संख्या कम हो गई है. पार्टी के सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट करीब 80 पेज की है. यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय से एक सवाल के जवाब में भेजी गई है. इसमें उन वजहों के बारे में जानकारी दी गई है जिनकी मदद से भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी को 273 सीट हासिल करने में सफलता मिली है. रिपोर्ट में उन कारणों का विस्तार से वर्णन किया गया है.

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ओबीसी वोट बैंक हुए दूर

सूत्रों के हवाले से अखबार में लिखा गया है कि भाजपा के सहयोगी अपना दल के कुर्मी और निषाद पार्टी के निषाद वोट बैंक से भाजपा को कोई खास लाभ नहीं हुआ है. इन दलों का मुख्य जनाधार कहे जाने वाले इन वोट बैंक से बीजेपी को कोई समर्थन नहीं मिला है. वहीं, सिराथू निर्वाचन क्षेत्र से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की हार के बारे में भी रिपोर्ट में जिक्र किया गया है. इस बारे में बताया गया है कि इन जातियों के समर्थन की कमी को एक प्रमुख कारण के रूप में देखा गया है. इसके अलावा कई पिछड़ी जातियों जैसे कुशवाहा, मौर्य, सैनी, कुर्मी, निषाद, पाल, शाक्य, राजभर आदि ने बड़ी संख्या में भाजपा को वोट नहीं दिया है. इनका वोट सपा को जरूर मिला है. वहीं, 2017 के चुनाव में बीजेपी को इनका वोट मिला था.

सदस्य तो मिले पर वोट नहीं

रिपोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम वोट बैंक का ध्रुवीकरण भी सपा के पक्ष में दर्ज किया गया है. इस वजह से कुछ सीटों पर बीजेपी को नुकसान का सामना करना पड़ा है. सूत्रों के अनुसार, पार्टी के शीर्ष नेताओं को इस बात की जानकारी चाहिए थी कि आखिर साल 2017 के मुकाबले उनका वोट 2022 में अखिर कम क्यों हो गया है? वह भी तब जब पार्टी की ओर से दो माह तक सदस्यता का विशेष अभियान चलाया गया था. दो माह के अभियान में भाजपा का दावा है कि उसने 80 लाख नए सदस्यों को अपने साथ जोड़ा है. भाजपा के पास वर्तमान में 2.9 करोड़ पंजीकृत सदस्य हैं. इससे पहले साल 2019 में चलाए गए सदस्यता अभियान के मुकाबले पार्टी ने 30 लाख नए वोटर्स को जोड़ने में सफलता हासिल की है.

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गाजीपुर, अंबेडकरनगर और आजमगढ़ क्यों हारे?

रिपोर्ट में एक और चौकाने वाले तथ्य का खुलासा होने का दावा किया गया है. पीएम मोदी को यूपी बीजेपी की ओर से बताया गया है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं के अनुमानित 9 करोड़ लाभार्थियों ने उन्हें कितना वोट किया है. सूत्रों के हवाले से लिखी गई खबर में बताया गया है कि एक भाजपा नेता ने कहा, ‘बहुमत ने राजनीतिक रूप से भाजपा का समर्थन नहीं किया है. हालांकि, उन्होंने एनडीए की कल्याणकारी योजनाओं की प्रशंसा की.’ वहीं, भाजपा ने गाजीपुर, अंबेडकरनगर और आजमगढ़ जनपद में बहुत खबरा परिणाम पाए हैं. इन जीनों जिलों की 22 विधानसभा सीट पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. बता दें कि जहां सपा ने आजमगढ़ और अंबेडकरनगर की सभी सीटों पर जीत हासिल की है. वहीं, गाजीपुर के सात निर्वाचन क्षेत्रों में से पांच पर जीत हासिल की है. इससे इतर उसके सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने शेष दो सीटों पर जीत हासिल की है. वहीं, साल 2017 में भाजपा को इन तीनों जनपदों में आठ सीटों पर जीत मिली थी.

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भाजपा अध्यक्ष को भी भेजी रिपोर्ट

सूत्रों के मुताबिक, रिपोर्ट में प्रमुखता से इसका उल्लेख किया गया है कि सपा को पोस्टल वोट्स भी ज्यादा मिले हैं. इसका असर करीब 311 सीटों पर देखा गया है. बता दें कि 4.42 लाख पोस्टल वोट्स में से सपा गठबंधन को 2.25 लाख वोट पाए हैं. वहीं, भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 1.48 लाख वोट प्राप्त हुए हैं. इसके अलावा सपा ने सरकारी कर्मचारियों की मांग के अनुसार वृद्धावस्था पेंशन योजना बहाल करने के अपने वादे को इसका कारण बताया है. वहीं, खबर में भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी के हवाले से बताया गया है कि कई जिलों में तैनात अधिकारी भी चुनाव के शुरुआती चरणों में विपक्ष का समर्थन करते हुए दिखाई दिए. इस रिपोर्ट एक प्रति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी भेजी गई है. रिपोर्ट से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने में मदद मिलेगी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ेंगे.

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