यूपी में कांग्रेस का नया दांव, जातीय -क्षेत्रीय समीकरण साधेंगे एक प्रदेश व 6 प्रांतीय अध्यक्ष
यूपी में कांग्रेस ने दलित प्रदेश अध्यक्ष, दो ब्राह्मण, दो ओबीसी, एक मुस्लिम, एक भूमिहार को प्रदेश की कमान सौंपी है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यह कांग्रेस का बड़ा दांव माना जा रहा है. इसे सोशल इंजीनियरिंग के रूप में भी देखा जा रहा है.
Lucknow: यूपी में कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग का दांव चला है. या फिर कहें कि एक नया प्रयोग किया है. ओबीसी प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह के इस्तीफे के लंबे समय बाद दलित को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया है. इसके अलावा दो ब्राह्मण, दो ओबीसी, एक मुस्लिम, एक भूमिहार को प्रांतीय अध्यक्ष बनाकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है.
विधानसभा चुनाव में फेल हो गयी थी रणनीति
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की नैया पार करने के लिये कांग्रेस आलाकमान ने प्रियंका गांधी वाड्रा को जिम्मेदारी दी थी. साथ ही प्रदेश में ओबीसी प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह पर दांव लगाया गया था. लेकिन कांग्रेस की यह रणनीति यूपी में फेल हो गयी थी. हालांकि कांग्रेस नेताओं का कहना था कि हम विधानसभा चुनाव जीतने के लिये नहीं अपने संगठन को तैयार करने की लड़ाई लड़ रहे थे.
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यूपी की राजनीति में हलचल
शनिवार को अचानक एक प्रदेश अध्यक्ष और छह प्रांतीय अध्यक्ष की भारी भरकम टीम उतारकर कांग्रेस ने यूपी की राजनीति में हलचल मचा दी है. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह जातीय व क्षेत्रीय समीकरण साधने की कवायद की गयी है. प्रदेश व प्रांतीय अध्यक्ष यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों से चुने गये हैं.
लोकसभा चुनाव की तैयारियों का पहला कदम
चुनाव विश्लेषक ओपी यादव कहते हैं कि कांग्रेस का उत्तर प्रदेश का फैसला निश्चित तौर पर 2024 के समीकरणों में परिवर्तन करेगा. जाति के आधार पर चलने वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने दलित को अध्यक्ष बना करके बहुत दिनों बाद बड़ा परिवर्तन करने की कोशिश की है. महावीर प्रसाद के बाद शायद बृजलाल खाबरी दूसरे दलित अध्यक्ष आये हैं. यह बदलाव लोकसभा चुनाव की तैयारियों की तहत पहला कदम माना जा रहा है.
दलितों को संदेश देने की कोशिश
बहुजन समाज पार्टी की पृष्ठभूमि वाले बृजलाल खाबरी के आने से बुंदेलखंड और पूरे दलित समाज में एक बड़ा सियासी मैसेज जाएगा. साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी जो लगातार कमजोर हुई है, उसके व बामसेफ के वर्कर भी कांग्रेस की विचारधारा के साथ जुड़ सकते हैं. ये बसपा अध्यक्ष मायावती के लिये खतरे की घंटी हो सकता है.
जातीय समीकरण साधने की कोशिश
प्रांतीय अध्यक्षों में मुस्लिम समाज से बहुजन समाज पार्टी से कांग्रेस में आए नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कांग्रेस नेता अजय राय भूमिहार समाज से आते हैं. पिछड़ों में यादव के बाद बड़ी आबादी कुर्मी समाज से ताल्लुक रखने वाले विधायक वीरेंद्र चौधरी को प्रांतीय अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने पिछड़ा और खासकर कुर्मी समाज में बड़ा मैसेज देने का काम किया है.
ब्राह्मणों को साधेंगे नकुल व योगेश
बहुजन समाज पार्टी से आए नकुल दुबे को प्रांतीय अध्यक्ष बनाकर ब्राह्मण समाज में कांग्रेस ने फिर से घर वापसी को सुनिश्चित करने का एक बड़ा कदम उठाया. लंबे समय तक ब्राह्मण कांग्रेस के परंपरागत मतदाता में था. लेकिन इसमें भाजपा ने सेंध लगा दी है. समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले इटावा जिले से अनिल यादव को प्रांतीय अध्यक्ष बनाया गया है. यह यादव वोटर को साधने की कवायद की गयी है.
दूसरी पंक्ति के कांग्रेसी नेता को आगे बढ़ाया
सेंटर फॉर इलेक्शन रिसर्च एंड ट्रेंड्स एंड इंपैक्ट ऑफ डिवीज़न के सीईओ ओपी यादव बताते हैं कि योगेश दीक्षित को दूसरे ब्राह्मण फेस के रूप में प्रांतीय अध्यक्ष बनाया गया है. यह प्रयोग करके कांग्रेस ने दूसरी पंक्ति के नेताओं को वरीयता देने का जज्बा दिखाया है. इससे कार्यकर्ताओं के बीच एक अच्छा मैसेज जाएगा.
यूपी के हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश
बृजलाल साबरी और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जहां बुंदेलखंड से आते हैं. वहीं अजय राय पूर्वी उत्तर प्रदेश में, नकुल दुबे मध्य उत्तर प्रदेश में, अनिल यादव पश्चिम उत्तर प्रदेश के खासकर आलू पट्टी वाली यादव बेल्ट में अपना कितना प्रभाव जमा पाएंगे, यह भविष्य के गर्भ में है. गोरखपुर मंडल और खासकर पूर्वांचल में वीरेंद्र चौधरी कितना प्रासंगिक और कारगर होंगे, यह भी अभी देखना होगा. हालांकि कांग्रेस ने जो दांव चला है, उससे बीजेपी, सपा, बसपा को भविष्य के चुनाव में अपनी रणनीति को बदलना पड़ सकता है.