UP Chunav 2022: कन्नौज के तिर्वा में जातीय समीकरणों को जो समझा उसकी हुई जीत, लोधी वोटर्स हैं ‘किंगमेकर’
2017 में तिर्वा सीट से भाजपा के विधायक बने. वहीं, बसपा प्रत्याशी अजय वर्मा उमर्दा के ब्लॉक प्रमुख हैं. वे भाजपा से 2007 में चुनाव लड़ चुके हैं. पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण वे बसपा का दामन थाम चुके हैं. अब वे बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं.
Kannauj News: कन्नौज जिले की तिर्वा विधानसभा सीट पर कभी किसी एक राजनीतिक दर्ल का कब्जा नहीं रहा है. सपा ने यहां यादव, मुस्लिम और पाल का समीकरण बनाते हुए अनिल पाल को टिकट देकर मुकाबले को और रोचक बना दिया है. वहीं, बसपा ने लोधी कैंडिडेट को उतारकर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है.
इस कारण बसपा में आए अजय वर्मा
बता दें कि भाजपा ने लोधी, राजपूत और स्थानीय जातीय समीकरणों को देखते हुए विधायक कैलाश राजपूत को दोबारा प्रत्याशी बनाया है. वे पेशे से अधिवक्ता हैं. जनता दल से छिबरामऊ विधानसभा सीट से लड़कर उन्होंने राजनीति की शुरुआत की थी. साल 1996 में उमर्दा सीट से भाजपा से चुनाव लड़ चुके हैं. विधायक भी बनें. इसके बाद वे पाला बदलकर 2007 में बसपा से उमर्दा से विधायक बने. इसके बाद उन्होंने दोबारा पार्टी छोड़ 2017 में तिर्वा सीट से भाजपा के विधायक बने. वहीं, बसपा प्रत्याशी अजय वर्मा उमर्दा के ब्लॉक प्रमुख हैं. वे भाजपा से 2007 में चुनाव लड़ चुके हैं. पार्टी से टिकट नहीं मिलने के कारण वे बसपा का दामन थाम चुके हैं. अब वे बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं.
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…तब सपा ने अनिल पाल को दिया टिकट
उधर, सपा से अनिल पाल को पिता से विरासत में राजनीति मिली है. उनके पिता कई बार उमर्दा विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं. 2002 और 2012 में विधायक भी रहे. सपा सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री के पद पर भी रहे. हालांकि, तबीयत नासाज होने के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. इसके बाद सपा ने अनिल को मैदान में उतार दिया. तिर्वा विधानसभा सीट पर हमेशा से ही जातीय समीकरण का खासा असर रहा है. यहां लोधी के बाद यादव, पाल और मुसलमान मतदाताओं की संख्या अधिक है.
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यादव, पाल और मुस्लिम के समीकरण को समझें
इसे ही देखते हुए भाजपा और बसपा दोनों ने लोधी कार्ड को चला है. स्थानीय राजनीति को समझने वालों का कहना है कि लोधी, ब्राह्मण, क्षत्रियऔरवैश्य मतदाताओं को साधने से भाजपा की जीत पक्की हो सकती है. दरअसल, लोधी वोटर्स में बसपा के सेंध लगाने से उसकी चुनौती बढ़ जाती है. सपा की बात करें तो यादव, पाल और मुस्लिम के समीकरण को अगर वह पूरी तरह से साध ले तो जीत पक्की हो सकती है.