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Kalyan Singh ने मंडल-कमंडल की राजनीति के दौर में ऐसे निभाई BJP के संकट मोचक की भूमिका

Kalyan Singh Passes Away : यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan SIngh) का शनिवार रात निधन हो गया. उनके निधन से सियासी गलियारे में शोक की लहर फैल गई है. उनकी जिंदगी पर एक नजर...

Former UP CM Kalyan Singh passes away : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का 21 अगस्त को निधन हो गया. वे राजधानी लखनऊ के संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SGPGI) में सेप्सिस और मल्टी ऑर्गन फेल्योर की बीमारी से जूझ रहे थे. उन्हें चार जुलाई को पीजीआई में भर्ती कराया गया था. पहले उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ था, लेकिन 17 जुलाई को सांस लेने में तकलीफ बढ़ने पर उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था. उन्हें एनआईवी के जरिए ऑक्सीजन दी जा रही थी. कल्याण सिंह के निधन पर सीएम योगी ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है.

कल्याण सिंह का राजनीतिक जीवन

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को अलीगढ़ जिले में हुआ था. उनके पिता का नाम तेजपाल सिंह लोधी और माता का नाम सीता देवी था. उनकी शादी रामवती देवी के साथ हुई थी, जिससे उनका एक बेटा है, जिसका नाम राजवीर सिंह है. कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता थे. वे अतरौली विधानसभा से लगातार 8 बार विधायक निर्वाचित हुए थे. इस दौरान वे जनसंघ, जनता पार्टी और भाजपा से विधायक रहे. इसके बाद वे लोकसभा सांसद भी बने. कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे. वे पहली बार पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बने जबकि दूसरी बार 1997 में.

…जब कारसेवकों पर गोली चलाने से कर दिया था इंकार

कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक चेहरों में से एक माने जाते थे. इनके पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही जून 1991 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना घटी थी, जिसके बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये 6 दिसम्बर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था. इसके पहले 6 दिसंबर 1992 को तत्कालीन डीजीपी एस एम त्रिपाठी कल्याण सिंह के पास पहुंचकर कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्होंने इसकी अनुमति नहीं दी. इसके बाद वे अपना इस्तीफा लिखकर राज्यपाल के यहां पहुंच गए थे.

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… जब गिर गई थी भाजपा सरकार

कल्याण सिंह 1993 के यूपी विधान सभा चुनाव में अत्रौली और कासगंज से विधायक निर्वाचित हुये थे. इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में सामने आया, लेकिन सपा संरक्षण मुलायम सिंह यादव ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली थी, जिसके बाद कल्याण सिंह विधान सभा में विपक्ष के नेता बने थे. वे सितम्बर 1997 से नवम्बर 1999 तक दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

जनवरी 1999 में छोड़ दी थी भाजपा

दिसम्बर 1999 में कल्याण सिंह ने पार्टी छोड़ दी और जनवरी 2004 में पुनः भाजपा से जुड़े. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बुलन्दशहर से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन 2009 में उन्होंने पुनः भाजपा को छोड़ दिया और एटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गये.

राज्यपाल पद को किया सुशोभित

कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल भी बनाए गए थे. उन्होंने 4 सितम्बर 2014 को राज्यपाल पद की शपथ ली थी. इसके बाद उन्हें जनवरी2015 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था. कल्याण सिंह दो बार सांसद रहे. वे 2004 में वे बुलंदशहर से और 2009 में एटा से सांसद बने. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एटा में कल्याण सिंह ने मुलायम सिंह यादव को अपना प्रचार करने ले गए थे. यह राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी घटना थी, जब कल्याण और मुलायम एक साथ मंच पर हाथ पकड़े नजर आए थे.

मंडल-कमंडल राजनीति का प्रमुख चेहरा

1980 में भाजपा के जन्म के ठीक 10 साल बाद देश में राजनीति का माहौल बदलने लगा. यह वही समय था, जब मंडल-कमंडल वाली सियासत शुरू हुई. इसमें भाजपा के लिए संकट मोचक की भूमिका निभाई कल्याण सिंह ने. आधिकारिक तौर पर पिछड़े वर्ग की जातियों को कैटेगरी में बांटा जाने लगा. पिछड़ा वर्ग की ताकत सियासत में पहचान बनाने लगा, जिसके बाद भाजपा ने कल्याण दांव चला. उसने कल्याण सिंह को पिछड़ों का चेहरा बनाया, जिसका नतीजा यह हुआ कि गुड गवर्नेंस के जरिए मंडल वाली सियासत पर कमंडल का पानी फिर गया.

Posted by : Achyut Kumar

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