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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण का निमंत्रण पत्र भी बेहद खास, कार्ड में मंदिर के 200 सालों के सफर का जिक्र

कार्ड में मुगलों के हाथों मंदिर को तोड़ने से लेकर काशी विश्वनाथ धाम के आधुनिक रूप का जिक्र है. यह निमंत्रण कार्ड काशी विश्वनाथ मंदिर की ऐतिहासिकता को समेटे हुए है.

Kashi Vishwanath Corridor: काशी विश्वनाथ धाम लोकार्पण समारोह के निमंत्रण कार्ड भी विशेष रूप से बनाया गया है. लोकार्पण कार्यक्रम में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती को भी आमंत्रित किया गया है. महाआयोजन में 500 संतों के अलावा देश से 2,500 से अधिक अतिथि शामिल होंगे. निमंत्रण कार्ड में काशी विश्वनाथ धाम के 200 सालों के इतिहास को समेटा गया है. कार्ड में मुगलों के हाथों मंदिर को तोड़ने से लेकर काशी विश्वनाथ धाम के आधुनिक रूप का जिक्र है. यह निमंत्रण कार्ड काशी विश्वनाथ मंदिर की ऐतिहासिकता को समेटे हुए है.

स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया कि आमंत्रण पत्र में लिखा है- वाराणसी देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की नगरी के रूप में पूरे जगत में विख्यात है. इसे सामान्य श्रद्धालु काशी के रूप में भी जानते हैं. मान्यता है भगवान शिव आज भी साक्षात काशी में विराजमान हैं. यहां मोक्षदायनी मां गंगा के दर्शन भी सुलभ हैं.

सनातन हिंदू धर्म के केंद्र के रूप, बौद्ध और जैन पंथों के सिद्धों के साथ-साथ संतों, योगियों और कालांतर में शिक्षाविदों ने अपनी साधना और सिद्धि का केंद्र वाराणसी को बनाया है. काशी में विराजमान बाबा विश्वनाथ का ज्योर्तिलिंग द्वादश ज्योर्तिलिंग में प्रमुख स्थान पर है. मध्यकाल में मुगलों इस पावन स्थल को भारी क्षति पहुंचाई थी.

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सन 1777-78 ई. में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर परिसर का पुर्ननिर्माण कराया था. कालांतर में 19वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर पर स्वर्ण शिखर लगवाया था. लगभग 200 वर्षों के बाद भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो संसद में काशी लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, उनके द्वारा काशी की पुरातन आत्मा को संरक्षित रखते हुए नए कलेवर में श्री काशी विश्वनाथ धाम परिसर के नवनिर्माण को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया है.

नवीन श्रीकाशी विश्वनाथ धाम परिसर उन्हीं परिकल्पनाओं का मूर्त रूप है. श्री काशी विश्वनाथ धाम का शुभ लोकार्पण कार्यक्रम माननीय प्रधानमंत्री जी के कर-कमलों से पूज्य संतों और धर्माचार्यों की उपस्थिति में 13 दिसंबर, 2021 (विक्रम संवत 2078 मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष दशमी तिथि) को होने जा रहा है. अतः इस शुभ अवसर पर आपकी गरिमामयी उपस्थिति प्रार्थनीय है. कृपया पधारकर अनुगृहीत करने का कष्ट करें.

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स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि निमंत्रण पत्र के मिलने के बाद मैं स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस कर रहा हूं. अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास का साक्षी रहा. काशी धाम लोकार्पण का भी साक्षी बनने का सुअवसर मिला है. निमंत्रण पत्र में जिस प्रकार से मंदिर के इतिहास से लेकर मुगलकालीन शासकों तक का वर्णन है, वो देश के गुलामी की जंजीरों से निकली भारत की आत्मा को दर्शाने की जो कला है, वो प्रत्येक भारतवासी को लुभाती है. हम सिर्फ विकास के ही मामले में नहीं बल्कि धर्म, संस्कृति के मामले में भी दुनिया के सामने भारत के गौरवशाली इतिहास की अनुभूति कराते हैं.

(रिपोर्ट:- विपिन सिंह, वाराणसी)

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