लखनऊ : आठ पुलिसकर्मियों के हत्या का मुख्य आरोपित विकास दुबे की सालाना कमाई 10 करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी. काले धंधे से उसने अकूत संपत्ति जुटायी और अपने मिलने वालों पर पैसा खर्च करने से भी पीछे नहीं हटता था. जमीन कब्जा वसूली, बीसी और सूदखोरी से मोटी कमाई होती थी. इसके अलावा किसी से कॉन्ट्रेक्ट पर काम मिलने पर कमाई दोगुना और तीन गुना तक हो जाती थी.
हिस्ट्रीशीटर बड़ा काम जमीन कब्जाने से लेकर बीसी खिलवाने तक का था. किसी से जमीन खाली करानी हो या किसी को कब्जा कराना हो हर एक काम के लिए उसके रेट फिक्स थे. इसके अलावा उद्योगपतियों और सूदखोरी से भी कमाई होती थी.
चौबेपुर इंडस्ट्रियल एरिया में 100 से ज्यादा फैक्टरी हैं. विकास का वहां पर सिक्का चलता था. उद्योगपतियों से वहां पर वह काम करने और प्रोटेक्शन मनी के नाम पर हर महीने 50 लाख रुपये की आय होती थी. इसके अलावा संपत्तियों में उसके बाद लखनऊ में दो मकान और लगभग 150 बीघा अपनी और बेनामी जमीनों के बारे में जानकारी मिली है.
विकास खुद बीसी नहीं चलवाता था लेकिन दूसरे लोग उससे ब्याज पर पैसा लेकर बीसी खिलवाते थे और उसी के पैसे को आगे ज्यादा ब्याज पर दे देते थे. इसके भी इसको करोड़ों रुपयों की कमाई हो जाती थी.
बीते दो जुलाई को कानपुर के बिकरू गांव में पुलिस पर हुआ हमला पहला नहीं था. सच यह है कि वर्ष 2004 में ही इसका रिहर्सल हो चुका था. तब भी विकास दुबे के घर सीओ के नेतृत्व में पुलिस दबिश देने गयी थी. उस दिन भी पुलिस पर विकास ने फायरिंग की थी जिसके बाद पुलिस को जान बचाकर भागना पड़ा था.वर्ष 2004 का मामला बिठूर थाने में दर्ज एक एक मुकदमे का था. तब सीओ अब्दुल समद हुआ करते थे जो बाद में आइएएस हो गये. उस तारीख को पुलिस 4 बजे तड़के सुबह में गयी थी. पुलिस की टीम में शामिल कुछ दारोगा आज भी उस घटना को याद करते करते हुए सिहर उठते हैं.
Posted By : Rajat Kumar