यूपी के गैंगस्टर और बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आखिरकार बांदा की जेल में शिफ्ट कर दिया गया. करीब 900 किलोमीटर से अधिक लंबा रास्ता और करीब 15 घंटे के सफर के बाद बुधवार तड़के करीब 4.05 बजे बांदा जेल लाया गया. यह वही जेल है, जहां कैद रहकर मुख्तार अंसारी पहले भी पूर्वांचल की राजनीति का दशा-दिशा तय करता रहा है. अब जबकि उसे पंजाब के रोपड़ जेल से यहां बांदा जेल लाया गया है, तो राजनीतिक अटकलों का बाजार गर्म हो गया है.
राजनीतिक हलकों में कयास यह लगाए जा रहे हैं कि मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से बांदा जेल में ऐसे मौके पर शिफ्ट किया गया है, जब उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव सिर पर है. सवाल यह भी खड़े किए जा रहे हैं कि क्या बीजेपी उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में मुख्तार अंसारी के बहाने पूर्वांचल में सत्ता का खूंटा गाड़ेगी या फिर उसके विरोधियों को खुद को राजनीतिक फलक पर ‘खाक़ से पुनर्जीवित’ करने की ‘मसानी ताकत’ मिलेगी.
यह सवाल इसलिए खड़े किए जा रहे हैं कि वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत आने के बाद योगी सरकार के गठन के बाद से ही अपराधियों पर लगातार शिकंजा कसा जा रहा है. मुख्तार अंसारी के पहले कानपुर के विकास दुबे और उसके पहले कई अन्य बदमाशों गैंगस्टरों का यूपी से सफाया किया जा चुका है. अब चूंकि पूर्वांचल में बीजेपी की स्थिति अन्य दलों के मुकाबले काफी कमजोर मानी जाती है. ऐसे में, आसन्न पंचायत चुनाव में बीजेपी और खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह कोशिश मुख्तार अंसारी जैसे गैंगस्टरों को काबू करने और प्रदेश को अपराधमुक्त करने के नाम पर राजनीति को केंद्रित करने की हो सकती है.
वहीं, अगर केवल मुख्तार अंसारी की बात करें, उसकी पूर्वांचल की राजनीति में जोरदार धमक रही है. वह कभी समाजवादी पार्टी (सपा) के खेमे तो कभी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के खेमे में पाला बदलते हुए बाहुबल की राजनीति करता रहा है. पूर्वांचल के करीब दो दर्जन से अधिक सीटों पर उसकी तूती हमेशा बोलती रही है. मुख्तार खुद भले ही मऊ जिले के घोसी विधानसभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बना हो, लेकिन उसकी राजनीतिक पकड़ मऊ, गाजीपुर, बलिया, बनारस, आजमगढ़ और बांदा समेत करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बनी रही है. पूर्वांचल की राजनीति की धूरी माने जाने वाले इन क्षेत्रों में करीब ढाई दशक से भी अधिक समय से मुख्तार अंसारी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है.
पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी की राजनीतिक धमक का ही नतीजा है कि वह खुद घोसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक है, तो उसका बड़ा भाई आफजाल अंसारी गाजीपुर का सांसद. इसके अलावा, मऊ संसदीय क्षेत्र से मुख्तार अंसारी के सबसे करीबी माने जाने वाले अतुल राय सांसद हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्तार अंसारी कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के सबसे करीबी रहा, तो कभी समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह की आंखों का तारा.
यह बात दीगर है कि मुख्तार अंसारी अपराध की दुनिया का सबसे बड़ा बदनाम शख्स है, लेकिन उसके परिवार का राजनीतिक इतिहास उससे भी कहीं अधिक गौरवशाली रहा है. 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद गांव में पैदा हुए डॉ मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तो उसके नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान महावीर चक्र विजेता. मुख्तार अंसारी के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी कम्युनिस्ट नेता थे. इतना ही नहीं, देश के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं.
मुख्तार अंसारी के बड़े भाई आफजाल अंसारी ने अपने पिता की तरह कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी, जबकि मुख्तार ने बसपा में शामिल होकर गैंगस्टर से बाहुबली राजनेता बना. मऊ विधानसभा सीट से 5 बार विधायक बनने वाला मुख्तार अंसारी पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव में जीत हासिल किया था. इसके बाद 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल करने में कामयाबी हासिल की.
पूर्वांचल में उसकी राजनीतिक तूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही जब उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में गैर-भाजपाई पार्टियों की वजूद पर खतरा मंडराने लगा था, तब ‘मोदी लहर’ में भी मुख्तार अंसारी मऊ के घोसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर अपनी सियासी जमीन को मजबूत बनाने में कामयाबी हासिल की.
अब जबकि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव सिर पर है और उसे पंजाब के रोपड़ जेल से बांदा लाया गया है, तो यूपी में बीजेपी के विरोधियों में राजनीतिक जमीन पर पड़ी राख से एक पूर्वांचली चिंगारी निकलने की उम्मीद जगी है, जो उनकी खोती राजनीतिक वजूद को दोबारा मजबूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभा सकता है.
Posted by : Vishwat Sen