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Explainer Muharram: हजरत इमाम हसन-हुसैन ने जुल्म के खिलाफ लड़ी थी जंग, जानें क्यों मनाते हैं मुहर्रम…

अमीर मुआविया ने पांचवें उत्तराधिकारी के रूप में अपने बेटे यजीद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इनका शासनकाल सबसे बदतर माना जाता था. पैगंबर ए इस्लाम साहब के परिवार ने यजीद को शासक के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया.

Bareilly News: हजरत सल्ललाहों ताआला अलैहि वसल्लम (पैगंबर ए इस्लाम) के दुनिया से रुखसत होने के बाद उनके उत्तराधिकार को लेकर झगड़े शुरू हो गए. अमीर मुआविया ने पांचवें उत्तराधिकारी के रूप में अपने बेटे यजीद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इनका शासनकाल सबसे बदतर माना जाता था. पैगंबर ए इस्लाम साहब के परिवार ने यजीद को शासक के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया.

यजीद बहुत ताकतवर

इस कारण पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे हजरत हसन-हुसैन और यजीद के बीच जंग शुरू हो गई. यजीद खुद को खलीफा मानता था. उसने हुसैन पर भी अपने मुताबिक चलने का दबाव बनाया,ताकि इस्लाम पर उसका कब्जा हो जाए,लेकिन हुसैन ने उसका हुक्म मानने से इनकार कर दिया. मुहर्रम की दूसरी तारीख को हुसैन अपने लोगों के साथ कर्बला पहुंच गए. यजीद ने मुहर्रम की 7 तारीख को हुक्म थोपने के इरादे से हजरत हुसैन और उनके साथियों का पानी बंद कर दिया. यजीद बहुत ताकतवर था.

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नमाज पढ़कर अल्लाह की इबादत करते हैं…

इसके बावजूद हजरत हुसैन ने उसके सामने घुटने नहीं टेके. यजीद का जुल्म बढ़ता देख हजरत हुसैन की जंग हुई. हजरत हुसैन के किसी साथी ने हुसैन का साथ नहीं छोड़ा. आखिरकार मुहर्रम की 10 तारीख (आशूरा) को यजीद की फौज ने हुसैन के लश्कर पर हमला बोल दिया. इस जंग में 72 लोग शहीद (मौत) हो गए. खलीफा बनने की चाहत में यजीद ने हुसैन और उनके बेटे-भतीजे को भी शहीद कर दिया. इसके बाद से मुहर्रम की 10 तारीख को इस्लाम धर्म के लोग अलग-अलग तरीकों से अपना दुख जाहिर करते हैं. शिया मुस्लिम या हुसैन-या हुसैन कहकर अपने जिस्म का खून बहाते हैं तो वहीं सुन्नी मुस्लिम नमाज पढ़कर अल्लाह की इबादत करते हैं.

इसलिए निकालते हैं ताजिया

मुहर्रम के 10वें दिन मुस्लिम समाज के लोग ताज़िया निकालते हैं. इसे हजरत इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक माना जाता है. इस जुलूस में लोग शोक (दुख) व्यक्त करते हैं. इस जुलूस में लोग अपनी छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.

शिया-सुन्नी समुदाय क्या-क्या करते हैं?

मुहर्रम में शिया समुदाय के लोग मातम मनाते हैं. मजलिस पढ़ते हैं और काले रंग के कपड़े पहनकर शोक व्यक्त करते हैं. इस दिन शिया समुदाय के लोग भूखे-प्यासे रहकर शोक व्यक्त करते हैं जबकि सुन्नी समुदाय के लोग रोजा-नमाज रखकर इबादत करके अपना दुख जाहिर करते हैं.

रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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