रामपुर में यूं ही खत्म नहीं हुई आजम खान की बादशाहत, BJP ने झोंक दी थी पूरी ताकत, जानें हार के कारण
रामपुर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने सियासी समीकरण और इतिहास दोनों को बदलकर रख दिया है. सपा नेता आजम खान के गढ़ में बीजेपी को यूं ही कब्जा नहीं मिला है. इस जीत के लिए बीजेपी ने रामपुर के हर वोट तक पहुंचने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने...
Rampur News: रामपुर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने सियासी समीकरण और इतिहास, दोनों को बदल दिया है. सपा नेता आजम खान के गढ़ में बीजेपी ने कब्जा कर लिया है. बीजेपी प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने सदर सीट से शानदार जीत दर्ज की है. आकाश सक्सेना को 81371 वोट मिले हैं, जबकि सपा प्रत्याशी आसिम रजा को 47271 वोट मिले हैं. आकाश सक्सेना ने 34,100 वोट से जीत दर्ज की है. इसके साथ ही आजादी के बाद पहली बार बीजेपी की रामपुर में एंट्री हुई, और रामपुर में 45 साल बाद आजम खान की बादशाहत खत्म हो गई है.
रामपुर में खत्म हुई आजम खान की बादशाहत
दरअसल, इस बार रामपुर विधानसभा उपचुनाव में आकाश सक्सेना और आजम खान के बीच बेशक सीधा मुकाबला नहीं था, लेकिन सपा ने आजम खान के करीबी आसिम रजा को चुनाव मैदान में उतरा था. रामपुर में आजम खान की बादशाहत की बात करें तो वे यहां से 10 बार विधायक रहे हैं. हालांकि, इस बार जरूर हेट स्पीच मामले में सजा होने पर उन्हें विधायकी से हाथ धोना पड़ा, 45 साल की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ, जब आजम के परिवार से कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं था.
रामपुर में पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी ने चला दांव
रामपुर में किसी भी प्रत्याशी की हार जीत में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. यहां कुल वोटरों में 55 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समुदाय से हैं, और इनमें भी सबसे अधिक संख्या पसमांदा मुसलमान की है. बीजेपी ने चुनाव में उतरने और प्रत्याशी का चुनाव करने से पहले सभी समीकरणों को संभवत: अच्छे से जान लिया. यही कारण है कि, बीजेपी ने मुस्लिम नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतारा था. पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का रामपुर में लगातार प्रचार करना बीजेपी की रणनीति का ही एक हिस्सा कहा जा सकता है.
इस तरह से पसमांदा मुसलमान तक पहुंची बीजेपी
रामपुर में बीजेपी ने अधिक से अधिक मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए अल्पसंख्यक लाभार्थी सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन के जरिए बीजेपी पसमांदा मुसलमान तक पहुंची और रामपुर में विकास के नाम पर वोट करने की अपील की. वहीं दूसरी ओर सपा इस तरह के सम्मेलन से दूर रही, जोकि हार का एक बड़ा कारण माना जा रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री नकवी कई मौकों पर पसमांदा मुसलमानों से मिलते रहे और ‘खिचड़ी पंचायत’ जैसे कार्यक्रम के जरिए मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में करने में काफी हद तक सफल साबित हुए.
आजम के करीबी नेताओं का साथ छोड़ना पड़ा भारी
आजम के खिलाफ वोटरों में एक गलत संदेश उस वक्त चला गया, जब आजम के करीबी नेता भी बीजेपी का खुलकर समर्थन करने लगे. दरअसल, एक समय ऐसा आया जब आजम खान के निजी मीडिया प्रभारी फसाहत अली खां के अलावा कई सपा नेताओं ने भाजपा ज्वाइन कर ली या फिर बीजेपी के समर्थन में प्रचार करते नजर आए. कई नेता सपा में सम्मान न मिलने को लेकर नाराज थे, जिसका बीजेपी को सीधा सीधा फायदा मिला.
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आजम या उनके परिवार से नहीं था प्रत्याशी
रामपुर में सपा की हार का एक कारण ये भी माना जा रहा है कि खुद आजम खान या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव में नहीं था.1977 से लगातार आजम खां या उनके परिवार का कोई सदस्य इस सीट से चुनाव लड़ रहा था, लेकिन इस बार पहली बार ऐसा हुआ. आजम खान के चुनाव में न होने कारण भी वोटरों का मन बदला. रामपुर उपचुनाव में इस बार सिर्फ 33.94 फीसदी वोटिंग हुई. मतलब वोटरों ने मतदान करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसके पीछे कारण चाहे जो भी हो, लेकिन इन सभी कारणों का फायदा बीजेपी को मिला है.