Lucknow News : यूपी की सियासत में मोहम्मद अली जिन्ना का नाम बार-बार गूंज रहा है. हर दल की अपनी एक अलग दलील है. महंगाई, रोजगार और दूसरे मुद्दों के बीच पाकिस्तान के कायद-ए-आजम रहे मोहम्मद अली जिन्ना का नाम भी अब एक मुद्दा बन गया है. इसका कारण है यूपी विधानसभा चुनाव में तकरीबन 100 से अधिक सीटों का मुस्लिम बहुल होना.
दरअसल, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने एक भाषण में सरदार पटेल, महात्मा गांधी और जिन्ना को एक पंक्ति में लाकर बयान दे दिया था. उसके बाद से तो प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के साथ ही बसपा सुप्रीमो मायावती तक ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश को कठघरे में ला खड़ा किया. हालांकि, इन मसलों का प्रदेश के चुनाव से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं दिखता मगर यह भी एक हकीकत है कि प्रदेश में मुस्लिम वोट की मदद से जीत सकने वाले तकरीबन 100 से अधिक विधानसभा सीट हैं. उन्हीं सीटों पर अपनी मजबूत दावेदारी पेश करने के लिये ऐसे बयान जारी किए जा रहे हैं.
प्रदेश में हमेशा से ही माना जाता रहा है कि जातीय एवं साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करके यहां जीत हासिल की जाती रही है. ब्राह्मण और वैश्य समाज पर भाजपा का प्रभुत्व माना जाता रहा है तो यादव वोटबैंक पर सपा ने सदैव अपना प्रभुत्व माना है. इस बीच अनुसूचित जाति एवं जनजाति का मतदाता बसपा खेमे का ही बताया जाता है. इन सबके मध्य है प्रदेश में अहम स्थान रखने वाला मुस्लिम वोटबैंक. इस मुस्लिम मतदाता को हमेशा ही बसपा और सपा के खेमे में बंटा हुआ देखा जाता रहा है. यही कारण है कि बसपा और सपा हमेशा से सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले में मुस्लिम वोटबैंक को लुभाने के लिए नए-नए तरकीब अपनाती रहती है.
यूपी के सियासी गलियारों के ज्ञानी भी यही मानते हैं कि प्रदेश के चुनाव में भले ही मोहम्मद अली जिन्ना का सीधा सम्बन्ध नहीं है मगर मुस्लिम मतदाताओं की मदद से जीते जा सकने वाले100 से अधिक विधानसभा सीटों पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए ऐसे बयान दिए जा रहे हैं. वहीं, वे यह भी कहते हैं कि भाजपा को मुस्लिमों का मतदान कम ही मिल पाता है. ऐसे में वे खुलकर जिन्ना की मुख़ालफ़त करके हिंदू वोटर्स को और करीब लाने की जद्दोजहद करने में देरी नहीं कर रहे हैं.