गुरु पूर्णिमा पर अपने शिक्षकों को Wish करने से पहले जानें कौन थे पहले गुरु, कब से शुरू हुई ये परंपरा

Guru Purnima 2022: आज यानी 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का परम पावन पर्व है. आज के दिन लोग गुरु के किये गए उपकारों को याद कर उन्हें नमन करते हैं. वाराणसी में भी आज गुरुओं के सम्मान के लिए भक्तों का जन सैलाब लगा हुआ है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 13, 2022 10:31 AM

Varanasi News: भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान हमेशा से ही भगवान से ऊपर रहा है. और कहा भी गया है कि ज्ञान के बिना इंसान पशु के समान है, और गुरु ही हैं जो मानव में ज्ञान का सृज़न करते हैं. आज यानी 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का परम पावन पर्व है. आज के दिन लोग गुरु के किये गए उपकारों को याद कर उन्हें नमन करते हैं. वाराणसी में भी आज गुरुओं के सम्मान के लिए भक्तों का जन सैलाब पहुंच गया है.

काशी में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सुबह से ही बड़ी संख्या में घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली. गंगातट पर स्थित आश्रमों में स्नान के बाद दिन शुरू हुआ, गुरु पूजन का क्रम दिन भर जारी रहेगा. कहा जाता है कि ऋषियों ने हर साल की 12 पूर्णिमाओं में गुरु पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ बताया है. गुरु की सेवा करने वाले शिष्य की सभी दिक्कतें दूर हो जाती हैं. अस्सी घाट पर गंगा स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने बटुकों को दान पुण्य भी किया.

आपने कई बात ये स्लोक तो सुना ही होगा कि ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आप ने गोविन्द दियो बताए’. गुरु का स्थान इस पृथ्वी पर भगवान से भी ऊपर माना जाता है. गुरुओं की आराधना का ये पर्व अनादीकाल से चला आ रहा है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ज़गत के पहलेगुरु श्री श्री 1008 वेद व्यास जी थे, जिन्होंने चारों वेदों की रचना के साथ साथ महाभारत की रचना भी की थी. आज के ही दिन उनका इस धरती पर अवतरण हुआ था. इसलिए आज का दिन गुरुओं के प्रति समर्पित है और काशी के अनेक तीर्थों पर आज के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है.

पूर्णिमा के दिन गुरु भी भक्तों के लिए तैयार रहते हैं और भक्तों को सच्ची पूजा की प्रार्थना भी करते हैं. अस्सी घाट पर बैठे बटुक महाराज सिद्धार्थ कुमार झा ने बताया कि आज के दिन स्नान के बाद अपने गुरुओं और उनके आश्रम जाकर उनका पूजा पाठ करने की परंपरा को आगे बढ़ाया. हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों और मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था.

धर्म की नगरी काशी में वैसे तो हर पर्व को मनाने का अंदाज़ अलग होता है. सांस्कृतिक नगरी काशी में गुरु की अराधना का पर्व भी कुछ अलग अंदाज में ही मनाया जाता है, क्योंकि यहां की संस्कृति में टीचर्स डे नहीं गुरुपूर्णिमा पर्व पर गुरु की पूजा का विधान है. धार्मिक नगरी काशी के पड़ाव में स्थित परम पावन तीर्थ अवधूत बाबा राम स्थल यहां की मान्यता है कि यहां गुरु की आरधना से मन वंचित फल प्राप्त होता है. गुरुपूर्णिमा पर सुबह से ही गुरुजनों के दरबार में लाइव में लगे शिष्य अपने गुरु की झलक पाने को बेताब दिखे.

रिपोर्ट- विपिन सिंह

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