यूक्रेन से भारत वापस आई श्रेया ने बताया 96 घंटे का मंजर, बयां किया दर्द
रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के बीच कई छात्र-छात्राएं भारत वापस आ रहे हैं. आगरा की श्रेया भी यूक्रेन से आज आगरा पहुंची है. जिसके बाद उन्होंने यूक्रेन से भारत आने की अपनी 96 घंटे की पूरी कहानी बयां की. जिसमें उनका दर्द साफ तौर पर झलक रहा था.
Agra News. रूस और यूक्रेन के बिगड़े हुए हालात में देश के कई छात्र-छात्राएं फंसे हुए हैं. ऐसे में आगरा की श्रेया भी यूक्रेन में फंसी हुई थी, जो अब भारत वापस आ गई. श्रेया अपने परिवार के साथ दिल्ली से आगरा वापस आई. श्रेया ने यूक्रेन से भारत आने की अपनी 96 घंटे की पूरी कहानी बयां की. जिसमें उनका दर्द साफ तौर पर झलक रहा था.
श्रेया ने बताया कि वह आगरा के शास्त्रीपुरम की रहने वाली है और यूक्रेन के इवानो शहर से एमबीबीएस कर रही हैं. 5 दिन पहले उन्हें अचानक सुबह पता चला कि रूस ने हमला कर दिया है, तो वह सभी लोग डर गए. इस दौरान उनसे हॉस्टल और बंकर में छिपने को कहा गया. श्रेया अपनी कजिन सिस्टर के साथ बंकर में छिप गई. उन्होंने बताया कि हम बहुत घबराए हुए थे. एक एक पल हमारे लिए भारी हो रहा था. जैसे ही सायरन बजता. था वह और डर जाती थी. वहीं उनके घर वाले भी लगातार उन्हें फोन कर रहे थे.
श्रेया ने बताया कि उन्हें शुक्रवार रात को एंबेसी और यूनिवर्सिटी की तरफ से बताया गया कि सभी लोगों को शनिवार सुबह 9:00 बजे रोमानिया के रास्ते होकर भारत ले जाएगा जाएगा. जिसके बाद उन्हें देश पहुंचने की आस लगी. सुबह 9:00 बजे सभी लोग रोमानिया बॉर्डर के लिए रवाना हुए और बस में बैठ गए. इस दौरान बीच में यूक्रेन की स्थानीय लोगों ने सभी के साथ लूटपाट करना शुरू कर दिया और उनके रुपए और खाने का सामान लूट लिया. जिसके बाद किसी तरह से वह रोमानिया के लिए निकल पड़े.
श्रेया ने बताया कि रोमानिया के लिए बस में बैठने के दौरान हम बहुत डरे हुए थे. हमें 60 बच्चों के साथ रोमानिया बॉर्डर भेजा जा रहा था. जहां से बॉर्डर करीब 400 किलोमीटर दूर था. शनिवार की देर रात हम रोमानिया बॉर्डर से करीब 15 किलोमीटर दूर पहुंचे. जहां पर पहले से ही सैकड़ों गाड़ियों की लंबी लाइन लगी हुई थी. जिसके बाद हमें पैदल ही जाना पड़ा. ठंड से ठिठुरते हुए और भूख प्यास से बेहाल हम एक दूसरे को हिम्मत बंधाते हुए आगे बढ़ रहे थे. रास्ते में हमें अपने घर और मां-बाप का चेहरा याद आ रहा था.
इसी दौरान मां से बात हुई और फोन कट गया. तभी अचानक से धक्का-मुक्की शुरू हो गई और मेरा फोन और मैं दोनों जमीन पर गिर गए. इसके बाद कई लोग मेरे ऊपर से गुजरने लगे. मेरे साथियों ने मुझे उठाया. इस दौरान कई बार मैंने सोचा कि इस तरह धक्का खाकर मरने से अच्छा है कि रूस की मिसाइल से ही भस्म हो जाए. जिससे यह पल पल का दर्द खत्म हो जाएगा. लेकिन फिर से हम हिम्मत करके आगे बढ़ने लगे.
श्रेया ने बताया कि जब हम रोमानिया बॉर्डर पर प्रवेश कर रहे थे, तो वहां मौजूद दूसरे देश के छात्रों को हम पर गुस्सा आ रहा था. जिसके बाद उन लोगों ने हमारे साथ मारपीट करना शुरू कर दिया. नाइजीरिया की एक लड़की ने मेरे साथ बदतमीजी भी की और ऐसा वे सभी छात्रों के साथ कर रहे थे. वह लोग हमारे साथ जबरन यूक्रेन से बाहर निकलना चाह रहे थे. लेकिन जैसे ही हमने रोमानिया बॉर्डर में एंट्री की सब कुछ बदल गया.
इंडियन एंबेसी के अधिकारियों ने हमारा स्वागत किया. हमारे रहने खाने और एयरपोर्ट तक पहुंचने की अच्छी व्यवस्था भी की. यूक्रेन से रोमानिया पहुंचने के बाद में 10 मिनट तक आंखें बंद करके बैठी रही. फोन में नेटवर्क नहीं था, जिसकी वजह से मैं अपने घर वालों से बात नहीं कर पाई और उन्हें यह नहीं बता पाई कि मैं आप सुरक्षित हूं. जैसे ही रविवार को हमारी फ्लाइट ने भारत के लिए उड़ान भरी हम लोग भावुक हो गए और हमारे आंखों से आंसू निकलने लगे. उन्होंने बताया कि यह हाल सिर्फ हमारा नहीं बल्कि तमाम उन सैकड़ों बच्चों का था, जो अपने देश वापस आना चाह रहे थे.
रिपोर्ट- राघवेंद्र सिंह गहलोत, आगरा