Agra : पत्नी की आंख के टिशु ने शैलेश के जीवन में 12 साल बाद ला दिया उजाला, SNMC में हुआ UP का पहला सफल ऑपरेशन
आगरा के शैलेश की आंखों की रोशनी 12 साल पहले चली गई थी. इसकी वजह से शैलेश का जीवन अंधकारमय हो गया था. इसके लिए शैलेश ने एम्स से लेकर तमाम अस्पतालों में अपना इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आगरा के डॉक्टर की सलाह पर शैलेश ने एसएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे और डॉक्टर शेफाली से मिले.
आगरा. आगरा के शैलेश की आंखों की रोशनी 12 साल पहले चली गई थी जिसकी वजह से शैलेश का जीवन अंधकारमय हो गया था. इसके लिए शैलेश ने एम्स से लेकर तमाम अस्पतालों में अपना इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आगरा के डॉक्टर की सलाह पर शैलेश एसएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे और डॉक्टर शेफाली से मिले. इसके बाद करीब डेढ़ साल उनका इलाज चला और आज शैलेश अपनी आंखों से दुनिया के हर रंग को देख सकते हैं.आगरा के पिनाहट ब्लॉक के क्याेरी गांव के रहने वाले शैलेश की आंखों की रोशनी अचानक से 12 साल पहले चली गई थी. उनकी आंखों में लिंबल स्टेम सेल डिफिशिएंसी की बीमारी हो गई थी. जिसे नाखूना भी कहा जाता है. किसानी करने वाले शैलेश की आर्थिक स्थिति खराब थी. जिसकी वजह से वह अच्छे अस्पतालों में अपना इलाज नहीं कर पा रहे थे. 38 साल के शैलेश की जिंदगी अंधकार में डूब गई और उनका धंधा पानी चौपट हो गया.
आई बैंक इंचार्ज डॉक्टर शेफाली की मेहनत रंग लाई
शैलेश अपनी आंख का इलाज कराने के लिए दिल्ली के एम्स गए और 2 महीना तक उनका इलाज चला लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने इसके अलावा कई और अस्पतालों में भी अपना इलाज कराया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. आगरा के एक डॉक्टर की राय पर शैलेश एसएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे और आई बैंक की इंचार्ज डॉक्टर शेफाली मजूमदार को अपनी समस्या बताइ. इसके बाद डॉक्टर शेफाली ने उनका इलाज शुरू कर दिया.डॉ शेफाली ने बताया कि लिंबल स्टेम सेल डिफिशिएंसी बीमारी का इलाज लिंबल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से होता है. जिसके लिए आपका खून के रिश्ते वाले व्यक्ति की स्वस्थ आंख से लिंबल स्टेम सेल ओकुलर सतह एपीथेलियम को फिर से भरने के लिए एक दूसरी आंख से सेल लेकर ट्रांसप्लांट किया जाता है. यह सर्जरी बहुत बारीक होती है और एसएन मेडिकल कॉलेज में यह इस तरह की पहली सर्जरी है जो सफल रही है. अब तक यह सर्जरी केवल विदेश में ही की जाती थी.
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एसएन मेडिकल कॉलेज की नेत्र विभाग की टीम को मिल रही बधाई
डॉ शेफाली ने बताया कि शैलेश की आंख को सही करने के लिए उनके किसी ब्लड रिलेटिव की आंख का टिशु चाहिए था. लेकिन जब उनके भाइयों से बात की गई तो उन्होंने मना कर दिया. जिसके बाद शैलेश को बताया गया कि आपके बच्चे की आंख का टिशु भी काम आ सकता है. लेकिन शैलेश ने बच्चे के लिए मना कर दिया. आखिरकार उनकी पत्नी की काउंसलिंग की गई और शैलेश की पत्नी की आंख का टिशु लेकर उनकी आंख सही की गई.38 साल के शैलेश अब 12 साल बाद अपनी आंखों से दुनिया देख रहे हैं. 12 साल पहले उनकी जिंदगी में अंधेरा छा गया था. लेकिन अब एक बार फिर से उनके जीवन में उजाला हुआ है. शैलेश का कहना है कि यह सब एसएन मेडिकल कॉलेज की नेत्र विभाग की टीम और डॉक्टर शेफाली मजूमदार की बदौलत हुआ है जो मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं है.