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Surya Tilak Project क्या है, जिसके जरिए रामलला के ललाट तक पहुंचीं किरणें

अयोध्या में रामलला के मस्तक पर रामनवमी के दिन सूर्य किरणों से अभिषेक हुआ. सूर्य तिलक प्रोजेक्ट को तैयार करने में रुड़की के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) के साइंटिस्ट की टीम का अमूल्य योगदान है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2024 11:20 AM
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Ayodhya में रामलला (Ram Lalla) का प्राण प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी 2024 को हुआ था. उसके बाद राम मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया. रोजाना हजारों की संख्या में भक्तगण रामलला के दर्शन कर रहे हैं. 17 अप्रैल का दिन खास है, जिस दिन सूर्यदेव ने भगवान श्रीराम का तिलक किया. मंदिर के निर्माण के समय इसे Surya Tilak Project नाम दिया गया था.

Roorkee के वैज्ञानिकों ने इस प्रोजेक्ट को पूरा किया है. यही नहीं रुड़की के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) (Central Building Research Institute- CBRI) की टीम ने श्रीराम के दिव्य-भव्य मंदिर के (Shri Ram Mandir) निर्माण में अहम भूमिका निभाई है. सीबीआरआई की टीम ने राम मंदिर की नींव के अलावा संरचनात्मक डिजाइन सूर्य तिलक (Surya Tilak) और संरचनात्मक स्वास्थ्य निगरानी का काम भी किया है. सांइटिस्टों ने भूकंप के मद्देनजर राम मंदिर को जोन-चार के अनुसार बनाया है. इस भवन के निर्माण की लाइफ 1000 साल होने का अनुमान है. 

साइंटिस्ट डॉक्टर एसके पाणिग्रहि (Scientist Dr SK Panigrahi) ने बताया कि मंदिर के ऊपर और फाउंडेशन में शीशा लगा है. सूर्य किरणें पहले फाउंडेशन के शीशे पर रिफ्लेक्ट करेंगी. फिर यहीं से ये किरणें सीधे रामलला के मस्तक पर पहुंचेंगी. इस पूरी प्रक्रिया में गियर मैकेनिज्म का इस्तेमाल किया गया है. इसकी मदद से शीशे पर पड़ने वाली किरण भगवान श्रीराम के ललाट पर पड़ेगी.

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साइंटिस्टों की टीम ने अपना काम पूरा कर लिया है- महासचिव चंपत राय

श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट (Shri Ram Janmabhoomi Teerth Kshetra Trust) के महासचिव चंपत राय (General Secretary Champat Rai) के मुताबिक रामनवमी पर रामलला के मस्तक पर सूर्य किरणों का अभिषेक हो गया है. प्रभु श्रीराम के ललाट पर करीब 5 मिनट तक सूरज की किरणें रहीं.

टीम में 10-12 साइंटिस्ट थे शामिल

सीबीआरआई के निदेशक प्रोफेसर आर प्रदीप कुमार ने राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले कहा था कि संस्थान के 10-12 साइंटिस्टों की टीम इसमें शामिल रही. टीम में शामिल साइंटिस्ट डॉ. देबदत्ता घोष ने बताया था कि जमीन से शिखर तक राम मंदिर की ऊंचाई 161 फीट है. राम मंदिर के निर्माण में सरिये का इस्तेमाल नहीं हुआ है. पत्थर से पत्थर की इंटरलाकिंग की गई है. इसमें बंशी पहाड़पुर के सैंड स्टोन का प्रयोग किया गया है. वहीं साइंटिस्ट हिना गुप्ता ने बताया था कि राम मंदिर में 5 मंडप हैं. 

1. गर्भगृह, जिसमें श्रीराम की प्रतिमा स्थापित है
2. गुड मंडप
3. तीसरा रंग मंडप
4. नृत्य मंडप
5. प्रार्थना मंडप होगा. इसकी वास्तुकला नागर शैली में है.

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हम और हमारी टीम सौभाग्यशाली हैं : डॉ. पाणिग्रही

सूर्य तिलक प्रोजेक्ट (Surya Tilak Project) पर काम करने वाले सीबीआरआई रुड़की के साइंटिस्ट डॉ. एसके पाणिग्रही के मुताबिक अब हर साल रामनवमी के दिन प्रभु श्रीराम की प्रतिमा के मस्तक पर सूर्य रश्मियों से तिलक होगा. इसे लेकर उनके सामने चुनौती थी. एक तो हर साल रामनवमी की तारीख बदलती है और दूसरा गर्भगृह में ऐसा आर्किटेक्चरल डिजाइन नहीं है कि सूर्य की किरणें सीधे वहां तक पहुंच सकें. ऐसे में इन दोनों चुनौतियों से पार पाते हुए राम मंदिर की तीसरी मंजिल से लेकर गर्भगृह में स्थापित रामलला की प्रतिमा तक पाइपिंग और आप्टो मैकेनिकल सिस्टम से सूर्य की किरणों को पहुंचाया गया है. प्रोफेसर के मुताबिक सूर्य तिलक प्रोजेक्ट में संस्थान के छह वैज्ञानिकों की टीम शामिल थी. तिलक प्रोजेक्ट में सीबीआरआई रुड़की ने तिलक और पाइपिंग के डिजाइन का कार्य किया.

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