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जंग-ए-आजादी में रेवती के योगदान को समेटे है सेनानी स्तंभ

रेवती : जंग-ए-आजादी में रेवती के अमिट योगदान को समेटे हुए पांच दशक पहले स्थापित सेनानी स्तंभ पर कभी भी शासन और प्रशासन की नजर नहीं पड़ी. यह शिलापट्ट 70 के दशक में भारत सरकार ने रेवती मिडिल स्कूल के प्रांगण में दिल्ली से भेजकर स्थापित करवाया था. इस पर रेवती ब्लॉक के 64 स्वतंत्रता […]

रेवती : जंग-ए-आजादी में रेवती के अमिट योगदान को समेटे हुए पांच दशक पहले स्थापित सेनानी स्तंभ पर कभी भी शासन और प्रशासन की नजर नहीं पड़ी. यह शिलापट्ट 70 के दशक में भारत सरकार ने रेवती मिडिल स्कूल के प्रांगण में दिल्ली से भेजकर स्थापित करवाया था. इस पर रेवती ब्लॉक के 64 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम अंकित है.

इस स्तंभ पर ऐसे सेनानियों का नाम अंकित है, जो 1928 में साइमन कमीशन का विरोध, 1930 में नमक सत्याग्रह व विदेशी कपड़ों की होली, 1941 का व्यक्तिगत सत्याग्रह और 1942 के आंदोलन में हिस्सा लिया. रेल लाइन उखाड़ने के साथ ही पुलिस चौकी को आग के हवाले कर 15 अगस्त 1942 को सर्व प्रथम ब्रिटिश हुकूमत को समाप्त कर स्वयं सत्ता स्थापित करने का स्वर्णिम इतिहास रचा था.
बुजूर्ग बताते हैं कि जिस वक्त भारत सरकार ने स्तंभ स्थापित कराया. उस वक्त आकर्षक चबूतरा व उसके चारों तरफ मोटी जंजीरें लगाकर आकर्षक लुक प्रदान किया गया था. लेकिन, स्थापना काल के बाद से उसकी देख-रेख और मरम्मत पर सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया. इसका हश्र यह रहा कि उसके चबूतरे जर्जर हो गये. मोटी जंजीरें गायब हो गयीं.
हालात यह हो चला था कि यह शिलापट्ट कुछ ही वर्षों में इतिहास बन कर रह जायेगा. इसी बीच 2010 में नगर के समाजसेवी अतुल उर्फ बब्लू पांडेय ने जिला प्रशासन को पत्र लिखा, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता बरकरार रही. बबलू ने जनसहयोग से शिला स्तंभ के पास आकर्षक मेहराब और छत आदि का निर्माण कराकर भव्यता प्रदान किया. 26 जनवरी व 15 अगस्त को सेनानियों को याद कर आजादी का जश्न मनाने के बाद भूल जाते हैं.
रेवती ब्लॉक के 64 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम का है उल्लेख
जलायी गयी थी विदेशी कपड़ों की होली
सेनानी स्तंभ की स्थापना ब्लॉक कार्यालय प्रांगण में होनी चाहिये थी, लेकिन 70 के दशक में किराये के भवन में ब्लॉक कार्यालय था. जूनियर हाइस्कूल प्रांगण में इसे भारत सरकार द्वारा स्थापित कराया गया. इसी विद्यालय प्रांगण में विदेशी कपड़ों की होली जलायी गयी थी. सेनानियों का यह सभास्थल आदि रहा. इसी प्रांगण में 1930 के दशक में पं. जवाहर लाल नेहरू ने सेनानियों के बीच स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगायी थी.
ये हैं रेवती के सेनानी
कपिल देव चौबे, कुबेर दूबे, कैलाश शंकर शर्मा, गंगा माली, जगरनाथ पांडे, गंगा पाठक, कपिल देव चौबे, जगेश पांडे, जंग बहादुर सिंह, ठाकुर मिश्र, ठाकुर प्रसाद श्रीवास्तव, दीनदयाल पांडे, द्वारिका, नंदकुमार, परमेश्वर तिवारी, पारसनाथ श्रीवास्तव, ब्रम्हदेव राम, बच्चा तिवारी, विश्वनाथ, बेचू पांडे, बद्री पांडे, विजय शंकर मिश्र, शिव वचन, मदन चौबे, मुन्नी राम, रघुनाथ पाठक, राम किशुन, रामलक्षन राम, राम राज सिंह, रामनरेश ओझा, रमाकांत, राम लखन राम, परमानंद चौबे, सुखदेव पांडे, सूरज नारायण मिश्र, श्रीकृष्ण राम, श्रीकृष्ण हलवाई, श्रीनाथ पांडे, श्रीनाथ कुंवर, श्रीपति कुंवर, अंबिका पांडे, अनिरूद्ध मिश्र, इंद्रदेव प्रसाद गुप्ता, उमा शंकर लाल, इकबाल लाल, राम आनंद राम, भोला सिंह, जमुना सिंह, चंद्रशेखर प्रसाद सिंह, लाल मोहर राम, कालिका सिंह, बलिराम सिंह, श्रीधर चौबे, शिवदल राम, बृज बिहारी चौबे, ढोढ़ा सिंह, राम बदन सिंह, महेश्वर सिंह, भुनेश्वर सिंह, महेश्वर पाठक, ब्रह्मदेव सिंह, बलेश्वर ओझा, कुबेर व हरबंस.

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