बलिया : सतुआन पर मंगलवार को श्रद्धालुओं ने गंगा नदी के साथ ही पवित्र सरोवरों में स्नान किया और घर आकर आटा-सत्तू सहित अन्य चीजों का दान किया. वैसे कोरोना वायरस को लेकर लागू लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस का असर गंगा घाटों पर भी दिखा. गंगा घाटों पर कम ही श्रद्धालु पहुंचे थे. वहीं स्नान के दौरान भी तमाम लोग दूरी बनाकर ही डुबकी लगाते दिखे. वहीं स्नान के बाद सीधे लोग घरों को लौटे.
वैशाख महीने में खेतों की कटाई-मड़ाई पूरा होने के बाद सतुआन पर्व मनाया जाता है. अप्रैल महीने में 14 या 15 तारीख को यह पर्व मनाया जाता है. इस बार 13 अप्रैल की शाम को ही सतुआन का मुहूर्त शुरू हो गया, लेकिन स्नान के लिए लोग मंगलवार की सुबह ही गंगा घाटों पर पहुंचे. शहर से सटे श्रीरामपुर घाट पर शहर के साथ ही आस-पास के गांवों के लोग भी पहुंचे. हालांकि लॉकडाउन की सख्ती के कारण महिलाओं की संख्या काफी कम रही. वहीं ग्रामीण क्षेत्र के घाटों पर महिलाओं के साथ ही पुरुष श्रद्धालुओं ने भी डुबकी लगायी. ओझवलिया व चैनछपरा घाट पर सुबह चार बजे से ही श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचने लगे थे. स्नान के बाद लोग घर लौटकर जौ का सत्तू, आटा व पैसा दान किया.
इसके बाद जौ के सत्तू, चीनी व देसी घी मिलाकर भोग लगाया और प्रसाद ग्रहण किया. दोपहर में सभी घरों में चने का सत्तू, आम की चटनी, मिर्च और प्याज का लोगों ने सेवन किया. 30 से 40 रुपये प्रति पीस बिका आम का टिकोलासतुआन के दिन आम सत्तू की तरह आम का भी महत्व माना जाता है. सत्तू के साथ लोग चटनी का सेवन तो करते ही है, तो आम का टिकोढ़ा दान करने का भी महत्व है. ऐसे में मंगलवार को टिकोला की कीमत आसमान छू रहा था. ग्रामीण क्षेत्र से आम नहीं आने के कारण शहर में कुछ जगहों पर ही बिका. डिमांड अधिक होने के कारण कीमत भी आसमान छू रही थी. चौक के पास एक महिला आम का टिकोला 30 से 40 रुपये पीस के हिसाब से बेच रही थी. सब्जी मार्केट के साथ ही मोहल्लों में घूम रहे ठेला वालों के यहां टिकोढ़ा नहीं मिला, तो लोगों ने मजबूरी में उसके यहां से ही खरीदना शुरू किया. महिला का कहना था कि वह खुद भी पीस के हिसाब से ही खरीद कर लायी है. पांच रुपये फायदा लेकर बेच रही है.