शहर के इकलौते ओवरब्रिज पर 17 दिन से एक ही जगह पड़ा है विक्षिप्त

बलिया : ‘बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या हैं, मौत से आंख मिलाने की जरूरत क्या है…’ देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद ये पंक्तियां सोशल साइट्स पर खूब वॉयरल हुईं. जरूरी भी था, क्योंकि कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए शायद हमारे सामने यही विकल्प है. लेकिन, शहर के इकलौते ओवरब्रिज […]

By Prabhat Khabar News Desk | April 11, 2020 12:27 AM

बलिया : ‘बेवजह घर से निकलने की जरूरत क्या हैं, मौत से आंख मिलाने की जरूरत क्या है…’ देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद ये पंक्तियां सोशल साइट्स पर खूब वॉयरल हुईं. जरूरी भी था, क्योंकि कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए शायद हमारे सामने यही विकल्प है. लेकिन, शहर के इकलौते ओवरब्रिज पर लॉकडाउन के दिन, यानि 25 मार्च से एक ही जगह पर पड़े विक्षिप्त के बारे में क्या कहा जाये, जिसके सिर पर पिछले 17 दिनों में सूरज के उदय से लेकर अस्त तक की किरण लगातार पड़ी हैं. हैरानी की बात यह है कि अफसर और समाजसेवी विक्षिप्त के चंद कदमों की दूरी से रोजाना गुजरते हैं, लेकिन किसी ने उसकी परेशानी नहीं समझी.

ओवरब्रिज पर रेलवे लाइन के लगभग ठीक ऊपर पूरब तरह के पाथवे पर एक अधेड़ उम्र का विक्षिप्त 25 मार्च से बैठा है. शुक्रवार की दोपहर करीब डेढ़ बजे रेलिंग पर पैर अड़ाकर सोया था. काफी पूछने पर भी नाम-पता कुछ भी नहीं बता सका. सामने वाले को वह बस एकटक देखता रहा. वैसे आमतौर पर पुल से आने-जाने वालों की तरफ देखता भी नहीं. बस रेलिंग की तरफ मुंह करके बैठा रहता है. रात में वहीं सोता है. सुबह और शाम को भी वहीं नजर आता है. इतना ही नहीं, जब सूरज की किरणें सिर पर आकर आग बरसाती है, तब भी वह वहीं नजर आता है. शरीर पर पूरा कपड़ा भी नहीं है, जो दोपहर की गर्म हवाओं का सामना कर सके.

पक्के पुल का फर्श जब गर्म हो जाता है, तो अपने शरीर का चिथड़ा खोलकर उससे बचने की कोशिश करता है. खास बात यह कि जिले के प्रमुख अधिकारी और समाजसेवी रेलवे लाइन के कारण दो हिस्सों में बंटे शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक ओवरब्रिज के रास्ते से ही जाते हैं. कभी उधर से भोजन का पैकेट लेकर पुलिस की गाड़ी निकली और सिपाहियों की नजर पड़ गयी, तो तरस खाकर एक डिब्बा उसे भी थमा देते हैं. हालांकि लॉकडाउन के बाद प्रशासन ने विक्षिप्त व घुमंतू लोगों के साथ ही बेजुबान जानवरों का पेट भरने के लिए भी भोजन की पर्याप्त व्यवस्था कर रखी है. उसका वितरण भी नियमित रूप से हो रहा है. लेकिन, इसको यहां से हटाने की फुर्सत किसी को नहीं. कौन है, कहां से आया हैं, यह भी जानने की फुर्सत किसी को नहीं मिलती.

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