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AIMPLB की मुस्लिम महिला संगठनों ने की निंदा, कहा- मनमानी के लिए औरतों का इस्तेमाल बंद करे बोर्ड

लखनऊ : भोपाल में हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पहले महिला सम्मेलन में तीन तलाक को लेकर पहले की ही व्यवस्था की वकालत किये जाने पर मुस्लिम महिला संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ऑल इंडिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा है कि भोपाल में […]

लखनऊ : भोपाल में हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पहले महिला सम्मेलन में तीन तलाक को लेकर पहले की ही व्यवस्था की वकालत किये जाने पर मुस्लिम महिला संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ऑल इंडिया मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने कहा है कि भोपाल में हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महिला सम्मेलन में कथित तौर पर राय बनी है कि मुस्लिम ख्वातीन को तीन तलाक के मसले पर किसी का दखल बरदाश्त नहीं है. इस मामले में उलमा और मौलवी शरीयत के मुताबिक जो भी तय करेंगे, वह उन्हें मंजूर होगा. उन्होंने कहा कि बोर्ड के पास अब भी वक्त है. हजरत मुहम्मद साहब ने भी समय के साथ दीन पर कायम रहते हुए अपने अंदर सुधार लाने को कहा है. जो कौम एक ही जगह रुक जाती है, वह खत्म हो जाती है. बोर्ड अपना नजरिया बदलते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखे और अपनी मनमानी के लिए औरतों का इस्तेमाल बंद करे.

दूसरी तरफ, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारुकी ने नयी दिल्ली में कहा, एक बार में तीन तलाक की हम वकालत नहीं कर रहे. हम इसके लिए मुस्लिम समुदाय को हतोत्साहित कर रहे हैं. हमने तो यहां तक कह दिया कि तलाक के इस तरीके को अपनाने वाले का सामाजिक बहिष्कार किया जायेगा. भोपाल के सम्मेलन के बाद जारी बयान में हमने स्पष्ट किया था कि तलाक का यह तरीका पाप है, लेकिन शरीयत का हिस्सा है. शाइस्ता ने कहा कि बोर्ड तलाक को लेकर औरतों की दुश्वारी को समझकर उसे सुधारात्मक कदमों के जरिये दूर करने के बजाय खुद महिलाओं को ढाल बना कर अपनी रवायतों को कायम रखने पर आमादा है. सच्चाई यह है कि कोई भी महिला तीन तलाक के नाम पर अपने साथ अन्याय को बरदाश्त नहीं करना चाहेगी.

तीन तलाक के खिलाफ मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख पक्षकार रहे मुस्लिम वूमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता ने कहा कि उन्होंने बोर्ड के आला ओहदेदारों को अनेक खत लिख कर तीन तलाक की वजह से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को खत्म करने का रास्ता निकालने की गुजारिश की थी, लेकिन उनके किसी भी खत का संतोषजनक जवाब नहीं मिला.

इस बीच, मुस्लिम वूमेन लीग की महासचिव नाइश हसन ने बोर्ड के महिला सम्मेलन में लिये गये फैसले की निंदा करते हुए कहा कि बोर्ड जिस तरह से औरतों का इस्तेमाल कर रहा है और उनके मुंह से जो अपनी बात कहने के लिए मजबूर किया जा रहा है, वह बहुत नाइंसाफी भरा है.

उन्होंने कहा कि बोर्ड को अदालत के सम्मान के मायने समझने चाहिए. सिर्फ यह कहना कि वह तीन तलाक पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं और फिर यह भी कहना कि वह शरीयत में किसी की दखलंदाजी बरदाश्त नहीं कर सकते, आपस में विरोधाभासी बातें हैं. बोर्ड को उच्चतम न्यायालय के आदेश का सम्मान करने के साथ-साथ उसे लागू भी कराना चाहिए. मगर अफसोस, बोर्ड अपनी भूमिका नहीं निभा रहा है.

नाइश ने कहा कि बोर्ड के महिला सम्मेलन में तीन तलाक को लेकर मौलवियों की ही बात मानने का कथित फैसला मानवाधिकार के नजरिये और कुरान शरीफ की रोशनी, दोनों ही लिहाज से गलत है. मुझे लगता है कि बोर्ड को अपनी बातों पर पुनर्विचार करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक को लेकर सुधारात्मक कदम उठाने के बजाय अपनी रुढ़िवादी रवायतों को बरकरार रखने की कोशिश कर रहा है. बोर्ड के पास अपनी बात को सही साबित करने के लिए तर्क नहीं हैं. अगर है, तो वह हमें गलत साबित कर दे.

मालूम हो कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक और शरीयत के नियमों को लेकर भोपाल में सोमवार को आयोजित अपने पहले महिला सम्मेलन में महिलाओं द्वारा तीन तलाक के मसले में किसी का दखल बरदाश्त नहीं करने और उलमा द्वारा शरीयत की रोशनी में तय की गयी बात ही मानने का फैसला लिये जाने का दावा किया था. बोर्ड ने इसके समर्थन में मुस्लिम महिलाओं से संकल्प पत्र भरवाने का अभियान भी शुरू कर दिया है.

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