यूपी में अब अधिकारियों को खड़े होकर करना होगा सांसद – मंत्रियों का सम्मान

नयी दिल्ली : उत्तर प्रदेश में सासदों, विधायकों समेत अन्य जनप्रतिनिधियों की शान बढ़ाने वाली फरमान जारी किये गये हैं. मुख्य सचिव राजीव कुमार ने प्रोटोकॉल की एक लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में अफसरों को यह निर्देश दिया गया है कि जब भी कोई जनप्रतिनिधि उनके पास आये तो किस तरह से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2017 11:04 AM

नयी दिल्ली : उत्तर प्रदेश में सासदों, विधायकों समेत अन्य जनप्रतिनिधियों की शान बढ़ाने वाली फरमान जारी किये गये हैं. मुख्य सचिव राजीव कुमार ने प्रोटोकॉल की एक लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में अफसरों को यह निर्देश दिया गया है कि जब भी कोई जनप्रतिनिधि उनके पास आये तो किस तरह से पेश आये. इस प्रोटोकॉल को जनप्रतिनिधियों के उस शिकायत के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें वे लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अफसरों द्वारा अवहेलना की शिकायत कर रहे थे. प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने पर अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. क्या है प्रोटोकॉल के नियम

1. अगर कोई सांसद, विधायक या अन्य जनप्रतिनिधि सरकारी दफ्तर में आते हैं तो वहां के अधिकारी खड़े होकर उनका स्वागत करें. साथ ही उन्हें खड़े होकर विदा करें.
2. अधिकारी जनप्रतिनिधियों की कही गई बातों को ध्यान से सुनें. उनके सुझावों को नोट करें.
3. अगर जनप्रतिनिधियों के सुझाव न भी मानना हो तो विनम्रता के साथ उन्हें मना करें.
4. अगर सांसद या विधानमंडल के सदस्य चिट्ठी लिखें या फोन पर किसी समस्या के बारे में बताएं तो उसे तवज्जो दिया जाए और जल्द से उसका निपटारा किया जाए.
5. दफ्तर में आए जनप्रतिनिधियों के लिए अधिकारी चाय, नाश्ता का भी इंतजाम करें.
गौरतलब है कि यह फैसला ऐसे वक्त पर आया है. जब प्रधानमंत्री लगातार वीआईपी ट्रीटमेंट के खिलाफ अभियान छेड़ने की बात कही है. महीनों पहले लालबत्ती पर पाबंदी लगा दी गयी थी. सूत्रों के मुताबिक यूपी के तरह राजस्थान में भी मंत्रियों व अधिकारियों की ताकत बढ़ने वाली है. दरअसल वसुंधरा सरकार एक विधेयक लाने जा रही है.
अगर विधेयक को मंजूरी मिल गयी तो किसी सरकारी कर्मी, विधायक-मंत्री, मैजिस्ट्रेट या जज के विरुद्ध किसी तरह की शिकायत दर्ज नहीं कराई जा सकती. मीडिया को भी इस बात की आजादी नहीं होगी कि किसी ऐसे शासकीय व्यक्ति, विधायक-मंत्री या अधिकारी के विरूद्ध ठोस साक्ष्यों के आधार पर कोई रिपोर्ट लिखे या प्रसारित करे. इसके लिये भी पूर्व मंजूरी चाहिए. जब तक उक्त अधिकारी या शासकीय व्यक्ति के विरूद्ध मामला चलाने की अनुमति नहीं मिलती, कोई भी व्य़क्ति या संस्था उस बारे में लिख या बोल नहीं सकते.

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