आगरा : अपनी शेर-ओ-शायरी से दुनिया को रोशन करने वाले उर्दू शायरी के महान फनकार मिर्जा गालिब को उनके अपने शहर आगरा ने ही भुला सा दिया है. उर्दू को आम जन की जुबां बनाने वाले गालिब की आज 220वीं सालगिरह है. आगरा के सरमायेदारों ने तो अपने ही शहर की इस महान हस्ती को भुला दिया है. हालांकि यहां की कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति समर्पित कुछ लोग मिर्जा गालिब को अपने-अपने स्तर से याद करते है और इस महान फनकार के प्रति अपनी श्रद्धा अपर्ति करते हैं.
आगरा में पिछले 20 वर्षों से मिर्जा गालिब की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित कराने वाले बज्मे गालिब समिति के पदाधिकारी अरुण डंग ने दावा किया कि मिर्जा गालिब के प्रति सरकार का कोई लगाव नहीं है. आगरा नगर निगम के मेयर नवीन जैन से इस संबंध में बात की गयी तो उन्होंने कहा कि वह शहर की महान विभूतियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं. उन्होंने कहा कि वह नगर निगम में प्रस्ताव लाकर मिर्जा गालिब की जयंती पर कार्यक्रम आदि की शुरुआत करायेंगे. गालिब का जन्म का नाम मिर्जा असदुल्ला बेग खान था. उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था.
गालिब ने 11 वर्ष की उम्र में शेर-ओ-शायरी शुरू की थी. तेरह वर्ष की उम्र में शादी करने के बाद वह दिल्ली में बस गये. उनकी शायरी में दर्द की झलक मिलती है और उनकी शायरी से यह पता चलता है कि जिंदगी एक अनवरत संघर्ष है जो मौत के साथ खत्म होती है.