कानपुर : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज कहा कि मानवता के संपूर्ण इतिहास में मानव विकास के लिए समुचित खाद्य उत्पादन की व्यवस्था करना सदैव एक चुनौती रही है. उन्होंने कहा कि प्राणी-मात्र के लिए भोजन जुटाने की एक बड़ी जिम्मेदारी आज भी कृषि वैज्ञानिकों के सामने मौजूद है. हालांकि आजादी के बाद हमारे कृषि उत्पादन में असाधारण वृद्धि हुई है फिर भी भूख, कुपोषण और गरीबी से मुक्ति पाने के लिए लगातार प्रयास आवश्यक हैं. आज शहर के चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय :सीएसए: में मौजूदा जलवायु परिवर्तन के विशेष परिपेक्ष्य में विकासशील देशों के छोटी जोत वाले किसानों के टिकाऊ विकास विषय पर चार दिवसीय एग्रीकोन 2018 अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने यह बातें कहीं.
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत सरकार की कृषि-नीति में किसानों के लिए उत्पादक तथा लाभकारी ऑन फार्म और नॉन फार्म रोजगार सृजित करने पर बल दिया जा रहा है. नमामि गंगे कार्यक्रम की चर्चा करते हुए कोविंद ने कहा कि देश में गंगा का अविरल प्रवाह और निर्मल धारा सुनिश्चित करने की दिशा में काम करते हुए, कृषि विकास को बल दिया जा रहा है. हमारे देश में 60 प्रतिशत खेती आज भी वर्षा पर आधारित है, और लगभग 13 राज्यों को किसी न किसी वर्ष सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली द्वारा विकसित आम्रपाली एवं मल्लिका नामक आम की हाइब्रिड प्रजातियों से उड़ीसा एवं झारखण्ड के आदिवासी क्षेत्रों के किसानों की आय बढ़ाने में सफलता मिली है.
कोविंद ने कहा कि फूड प्रोसेसिंग करके उपज का अच्छा मूल्य प्राप्त किया जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि इस कार्य में किसान की भी हिस्सेदारी हो. अनेक मेगा फूड पार्क स्थापित किए जा रहे हैं. इसी के साथ, ऐसे छोटे-छोटे क्लस्टर बनाये जा सकते हैं जहां छोटे किसान, कम मात्रा में भी अपना उत्पाद सीधे फूड-प्रोसेसिंग इकाइयों को दे सकें. यहां ऐसी सुविधाएं जुटाई जाएं जहां किसान अपनी पैदावार का वैल्यू एडीशन करना सीख सके. उन्होंने सुझाव दिया कि महिलाओं के स्वयं-सेवी समूह बनाकर उन्हें इस प्रकार के काम के साथ जोड़ा जा सकता है. राष्ट्रपति ने कहा कि एक बहुत बड़ा क्षेत्र और भी है जिस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है. वह क्षेत्र है- पारंपरिक पौष्टिक भोजन का. स्थानीय जलवायु के अनुकूल, किफायती दाम पर मिलने वाला पारंपरिक भोजन हमारी थाली से गायब होता जा रहा है.
उन्होने कहा कि जीवन-शैली से जुड़ी बीमारियों का एक बड़ा कारण यह भी है कि मौसमी और स्थानीय तौर पर सहज उपलब्ध खाद्य-पदार्थों को छोड़कर आयातित और महंगे खाद्य-पदार्थों का सेवन बढ़ता जा रहा है. मोटे अनाज का सेवन दिनों-दिन कम होता जा रहा है. पारंपरिक पौष्टिक भोजन को बढ़ावा देकर, ब्रांडिंग करके तथा तैयार भोजन को सही मूल्य पर बेचकर हम एक ओर तो घरेलू महिलाओं की आमदनी बढ़ा सकते हैं, वहीं दूसरी ओर देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं. अपने गृह जनपद कानपुर की चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने पुरानी यादें ताजा की और कहा कि कानपुर ने स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल राम नाईक ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी चेतावनी है. उन्होंने कहा कि अगर समय रहते पर्यावरण संरक्षण के लिए काम नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में गंभीर संकट पैदा हो सकता है. इस अवसर पर एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया.
यह भी पढ़ें-
बोली मायावती, अगर भागवत को अपने स्वयंसेवकों पर इतना भरोसा, तो फिर सरकारी खर्चें पर…