हरीश तिवारी
लखनऊ : भले ही प्रदेश की योगी सरकार ने जनता को लुभाने के लिए अपने बजट में कोई कोर कसर न छोड़ी हो, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रदेश का हर व्यक्ति 18,476 रुपये के कर्ज से डूबा हुआ है और जो वित्तीय वर्ष 2018-19 में बढ़कर 20,152 रुपये हो जायेगा. आम आदमी पर यह कर्ज साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. भले ही राज्य में किसी भी दल की सरकार हो.
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में अनुमान के मुताबिक करीब 22 करोड़ की आबादी रहती है और यह आबादी सरकारी कर्ज में लगातार डूबती जा रही है. अनुमान के मुताबिक मौजूदा वित्तीय साल में प्रदेश का हर व्यक्ति 18,476 रुपये के कर्ज से दबा हुआ है. कल पेश कियेगये बजट के अनुसार यानी वित्तीय वर्ष 2018-19 में यह कर्ज बढ़कर 20,152 रुपये हो जायेगा यानी इसमें एक साल के दौरान 1676 रुपये का इजाफा हो जायेगा. ऐसा नहीं है कि केवल योगी सरकार के दौरान ही प्रति व्यक्ति पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है.
पिछली सपा सरकार के दौरान भी आम आदमी पर कर्ज बढ़ता ही गया. वित्तीय सत्र 2016-17 के दौरान जनता पर 16,973 रुपये का कर्ज था और इस दौरान इसमें 1503 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई और जो 2017-18 में बढ़कर 18,476 हो गया. जबकि 2015-16 में यह कर्ज 14724 रुपये था, जिसमें एक साल के दौरान 2249 रुपये की वृद्धि हुई और इस दौरान राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी.
बहरहाल योगी सरकार ने पिछले साल की तुलना में इस में बजट में 11.4 फीसदी का इजाफा किया. सरकार का 2017-18 का पिछला बजट 3.84 लाख करोड़ रुपये का था. जबकि इस साल का बजट 60 हजार करोड़ रुपये ज्यादा है. योगी सरकार ने बजट में कुल प्राप्तियां 4 लाख 20 हजार 899.46 करोड़ रुपये दर्शायी गयी हैं, जबकि बजट में 7485.06 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया गया है. हालांकि, लोक लेखा से इसकी पूर्ति किये जाने की उम्मीद की गयी है. बजट में निवेश, युवा कल्याण और राज्य में बुनियादी ढांचों के विकास पर ज्यादा जोर दिया गया है.
नयी योजनाओं के लिये बजट में 14341.89 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है. इस बजट में समाज के उपेक्षित और गरीब लोगों पर भी ध्यान दिया गया है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में 44 हजार 53 करोड़ 32 लाख रुपये का राजकोषीय घाटा अनुमानित है, जो वर्ष 2018-19 के लिए अनुमानित सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 2.96 फीसदी है. वहीं राज्य की ऋणग्रस्तता सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 29.8 फीसदी अनुमानित है.