कानपुर / नयी दिल्ली : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 3695 करोड़ रुपये के बैंक ऋण में कथित हेराफेरी के संबंध में कानपुर के कारोबारी विक्रम कोठारी, उनकी पत्नी और बेटे के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद पिछले 20 घंटों से चल विक्रम कोठारी के कानपुर आवास पर चल रही छापेमारी अब भी जारी है. जानकारी के मुताबिक, यह ऋण उनकी कंपनी रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को सात बैंकों के समूह द्वारा दिया गया था. इस बैंकिंग घोटाले का पर्दाफाश ऐसे समय हुआ है, जब कारोबारी नीरव मोदी तथा उनके मामा मेहुल चोकसी से जुड़ी, पंजाब नेशनल बैंक की 11384 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी का पता चला है.
Kanpur: Visuals from outside #Rotomac Pens owner #VikramKothari's residence. CBI raid at his residence has been underway for more than 20 hours. pic.twitter.com/mgRRAGCvsg
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) February 20, 2018
अधिकारियों ने कहा कि रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को 2008 से बैंक आफ इंडिया के नेतृत्व में बैंकों के एक समूह ने 2919 करोड़ रुपये का बैंक ऋण दिया था, लेकिन भुगतान में बार-बार चूक के कारण ब्याज मिला कर यह राशि बढ़ कर 3695 करोड़ रुपये हो गयी. बैंक ऑफ बड़ौदा का आरोप है कि कंपनी को 2008 से ऋण दिया जा रहा था. अधिकारियों ने कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा की तरफ से दी गयी शिकायत पर कानपुर स्थित रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड, इसके निदेशक विक्रम कोठारी, उनकी पत्नी साधना कोठारी और बेटे राहुल कोठारी तथा बैंक के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी ने कानपुर में कोठारी के घर और दफ्तरों सहित तीन स्थानों पर छापेमारी की.
सीबीआई प्रवक्ता अभिषेक दयाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि छापेमारी कर रही सीबीआई ने कोठारी, उनकी पत्नी और बेटे से पूछताछ की. उन्होंने कहा कि दिल्ली में आरोपितों के एक आवासीय अपार्टमेंट और कार्यालय परिसर को सील किया गया है. आरोप है कि ऋण मिलने के बाद धनराशि उसके बताये गये उद्देश्य से अलग रख कर, इसका गबन किया गया.
कैसे लगाया बैंकों को चूना
सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में बताया है कि विक्रम ने विदेश से आयात करने के लिए बैंकों से लोन लिया. लेकिन, कंपनी ने विदेश से आयात किये बिना ही लोन के पैसे को कंपनी के दूसरे मदों में खर्च किया. वहीं दूसरी ओर, निर्यात का ऑर्डर दिखा कर भी निर्यात बढ़ाने के लिए बैंकों से लोन लिया और इस लोन पैसे को भी दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया. भारत की अपेक्षा अधिक ब्याज दर देनेवाले दूसरे देशों में निवेश कर कमाई की जाती थी.