!!हरीश तिवारी!!
लखनऊ : प्रदेश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) की आवाज अब राज्यसभा में भी कम सुनायी देगी. क्योंकि आगामी अप्रैल में राज्यसभा की खाली हो रही सीटों में से समाजवादी पार्टी के सबसे ज्यादा सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है, जबकि राज्यसभा में भाजपा की ताकत में इजाफा होना तय है.
पिछले साल राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में सपा सत्ता से बाहर हो गयी थी. चुनाव में भाजपा को जहां बहुमत मिला था,वहीं सपा महज 47 सीटों में सिमट कर रह गयी थी. जबकि, बसपा की स्थिति सबसे ज्यादा खराब हुई थी और उसे महज 17 सीटें ही मिली थी. राज्यसभा की खाली हो रही सीटों पर 23 मार्च को चुनाव होना है. इसमें यूपी की 10 सीटें शामिल हैं, जिसमें सपा को सबसे ज्यादा नुकसान होना तय माना जा रहा है. समीकरणों के हिसाब से इस चुनाव में सपा केछह राज्यसभा सांसदों को निश्चित रूप से हार का मुंह देखना पड़ सकता है. अभी सपा के राज्यसभा सांसद जया बच्चन, नरेश अग्रवाल व किरणमय नंदा समेत तीन अन्य सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. जबकि, भाजपा, बसपा और कांग्रेस के एक-एक सदस्य का कार्यकाल खत्म हो रहा है. एक सीट बसपा प्रमुख मायावती के इस्तीफे के कारण खाली है. उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में 31 सीटें हैं.
राज्यसभा में सपा संख्या के हिसाब से फिलहाल चौथे नंबरकी पार्टी है और उसके 18 सदस्य हैं, जबकि लोकसभा में सपा के महज पांच सदस्य हैं. फिलहाल सपा से छह सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है. लेकिन, राज्य में विधायकों की संख्या बल को देखते हुए सपा महज एक ही सदस्य को राज्यसभा में भेज सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि सपा की मौजूदा राज्यसभा सांसद जया बच्चन पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में जा सकती हैं. पिछले दिनों उनकी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात हुई थी और अगर सबकुछ ठीक रहा तो जया बच्चन वहां से टीएमसी की तरफ से राज्यसभा में जा सकती हैं.
सपा की तरफ से कौन राज्यसभा जायेगा यह सब अखिलेश यादव के फैसले पर निर्भर करेगा. चर्चा है कि किरणमय नंदा को अखिलेश यादव राज्यसभा में फिर भेज सकते हैं. दो साल पहले जब सपा के भीतर घमसान मचा था, उस वक्त नंदा ने अखिलेश का साथ दियाथा और जब भी पार्टी पर कोई संकट आता है तो वह अखिलेश के साथ खड़े नजर आते हैं. सपा के सूत्रों का कहना है कि पार्टी में अखिलेश के कुछ वफादार चाहते हैं कि अखिलेश यादव राज्यसभा में जायें. क्योंकि अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है और अगर अखिलेश लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं तो वह अन्य सीटों पर ज्यादा समय नहीं दे पायेंगे. जबकि, राज्यसभा में रहते हुए वह अन्य सीटों पर ज्यादा से ज्यादा प्रचार कर सकेंगे.