लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व नये समीकरण की तस्वीर सामने आती नजर आ रही है. बसपा सुप्रीमो मायावती के आवास पर हुई मैराथन बैठक के बाद उन्होंने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन का फैसला किया है. इसका औपचारिक ऐलान रविवार कोकर दिया गया है.
खबरों की मानें तो गोरखपुर और फूलपुर में हो रहे लोकसभा उपचुनाव के संबंध में बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के प्रमुख नेताओं से जमीनी हकीकत का जायजा लिया. दोनों लोकसभा क्षेत्रों के जोनल कोऑर्डिनेटर से भी उन्होंने बातचीत की.इसके बाद बसपा की ओर से यह सपा को समर्थन देने का फैसला लिया गया. यहां हम आपको बता दें कि विधान परिषद सदस्य बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने फूलपुर के सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था. उपचुनाव में भाजपा ने वाराणसी के पूर्व महापौर कौशलेंद्र सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं सपा ने नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है, तो कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता जेएन मिश्र के पुत्र मनीष मिश्र पर दांव खेला है.
वहीं, योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव के लिए भाजपा ने क्षेत्रीय अध्यक्ष उपेंद्र दत्त शुक्ला को उम्मीदवार घोषित किया है. बताया जा रहा है कि उपेंद्र दत्त शुक्ला की संगठन और कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ है. पूर्वांचल में उनकी पहचान ब्राह्मण चेहरे के रूप में हैं. वे गोरखपुर से राज्यसभा सांसद और वर्तमान में केंद्र में मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के बेहद करीबी बताये जाते है.
यहां समाजवादी पार्टी ने निषाद पार्टी और डॉ. अयूब की पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया है. अखिलेश ने गोरखपुर से निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे इंजीनियर प्रवीण कुमार निषाद को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने डॉ. सुरहिता करीम को यहां मैदान में उतारा है.
गौर हो कि गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा सीट के लिए मतदान 11 मार्च को होने हैं. चुनावों के परिणाम की घोषणा 14 मार्च को होगी. गोरखपुर लोकसभा सीट की बात करें तो 1952 में पहली बार इस सीट के लिए चुनाव हुआ और कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ 1967 निर्दलीय चुनाव जीता. 1970 में योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैद्यनाथ ने यहां से निर्दलीय जीत दर्ज की थी. 1971 से 1989 के बीच एक बार भारतीय लोकदल तो कांग्रेस का इस सीट पर कब्ज़ा जमाया. लेकिन 1989 के बाद की बात करें तो इस सीट पर गोरक्षपीठ का कब्ज़ा रहा. महंत अवैद्यनाथ 1998 तक सांसद रहे. उनके बाद 1998 से लगातार पांच बार योगी आदित्यनाथ का कब्ज़ा रहा.