।।हरीश तिवारी/ प्रभात खबर।।
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क्या अखिलेश बुआ को देंगे राज्यसभा सीट का रिटर्न गिफ्ट ?
।।हरीश तिवारी/ प्रभात खबर।। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट जीतने के बाद समाजवादी पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ गया है. पार्टी जीत का जश्न मना रही है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव राज्यसभा चुनाव को लेकर दबाव में है. दबाव दोनों सीटों को जीतकर और ज्यादा बढ़ गया है. क्योंकि चुनाव में बसपा ने सपा को समर्थन […]
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट जीतने के बाद समाजवादी पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ गया है. पार्टी जीत का जश्न मना रही है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव राज्यसभा चुनाव को लेकर दबाव में है. दबाव दोनों सीटों को जीतकर और ज्यादा बढ़ गया है. क्योंकि चुनाव में बसपा ने सपा को समर्थन दिया था और जिसके बदले में सपा को राज्यसभा चुनाव में बसपा को समर्थन देकर जीत का तोहफा देना है.
भाजपा के चक्रव्यूह से दसवीं सीट को जीत पाना आसान नहीं है. लिहाजा सपा इसके लिए अपनी रणनीति भी बदल सकती है. प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के बाद सूबे की राजनीति बदलाव के दौर से गुजर रही है. करीब 25 साल के बाद सपा और बसपा एक साथ चुनाव में आए. भले ही बसपा ने इन चुनाव में सपा के साथ मंच साझा नहीं किया.
उसके वोटर ने सपा के पक्ष में मतदान किया. जिसके कारण सपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के गढ़ को फतह कर इतिहास रचा है. चुनाव में मिली जीत के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बसपा प्रमुख मायावती से मुलाकात की और उन्हें जीत के लिए बधाई दी.
अब माना जा रहा है कि दोनों दलों के नेताओं ने पिछली बातों को भूलकर भविष्य में मिलकर चुनाव लड़ने के लिए अपनी सहमति दे दी है. फिलहाल दो लोकसभा सीट जीतने के बाद सपा प्रमुख पर राज्यसभा सीट को लेकर दबाव है. क्योंकि सपा अपने बलबूते एक सीट निकालेगी, लेकिन दसवीं सीट के लिए उसने बसपा के उम्मीदवार भीमराव आम्बेडकर को समर्थन देने के वादा किया है. अगर पूरा विपक्ष आम्बेडकर के पक्ष में मतदान करता है तो उनकी सीट निकलनी पक्की है.
भाजपा ने अपना नवां प्रत्याशी अनिल अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है. जिसके चलते सपा को अपने विधायकों को एकजुट रखना आसान नहीं है. जबकि नरेश अग्रवाल के भाजपा में चले जाने के बाद ऐसा माना जा रहा है कि उनके पुत्र नितिन अग्रवाल भाजपा के पक्ष में अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे. लिहाजा अखिलेश का बसपा प्रमुख को राज्यसभा सीट का रिटर्न गिफ्ट देना आसान नहीं है. अगर सपा के दो या तीन विधायक क्रास वोटिंग करते हैं तो इससे सपा की बड़ी किरकिरी होगी. सपा पर अब इस बात का भी दबाव है कि वह पूरे विपक्ष को एकजुट कर बसपा प्रत्य़ाशी के पक्ष में वोट करे.
लिहाजा सपा के नेता कांग्रेस, रालोद और निर्दलीय विधायकों से संपर्क बनाए हुए हैं. सूत्रों का कहना है कि सपा राज्यसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति को बदल सकती है. ताकि बसपा प्रत्याशी को जीताया जा सके. बहरहाल समाजवादी पार्टी की जया बच्चन की जीत तय है. इसके बाद से दस वोट भीमराव अंबेडकर को मिलने हैं, जबकि आम्बेडकर को कांग्रेस के साथ तथा रालोद के एक विधायक ने भी समर्थन देने की घोषणा की है. अब भाजपा के नौवां प्रत्याशी मैदान में उतारने से मुकाबला फंस गया है और अब यहां का चुनाव दिलचस्प होगा. वहीं बीजेपी सदन में निर्दलीय रघुराज प्रताप सिंह और अमन मणि त्रिपाठी तथा निषाद के विजय मिश्र के वोटों पर अपना दावा करती है.
विधानसभा में सहयोगी दलों को मिलाकर बीजेपी के पास 324 विधायकों का समर्थन हासिल है. जया बच्चन के मत आवंटित करने के बाद समाजवादी पार्टी के पास दस वोट बच रहे हैं. वहीं बसपा के 19, सपा के दस, कांग्रेस के सात और रालोद के एक वोट को मिलाकर कुल 37 हो रहे हैं, जो जीत के आंकड़े के बराबर हैं. फिलहाल सपा भाजपा की रणनीति से डरी हुई है क्योंकि 2016 के विधान परिषद और राज्यसभा के चुनाव में भी बीजेपी ने विपक्ष के वोटों पर सेंध लगाई थी.
ऐसे में सपा, बसपा और कांग्रेस के विधायक अगर क्रॉस वोटिंग करते हैं तो नौवीं सीट पर बीजेपी चुनाव जीत सकती है. भाजपा इस बारे में आश्वस्त है कि विपक्षी विधायक क्रास वोटिंग करेंगे. फिलहाल एक राज्यसभा सीट पर जीत के लिए औसत 37 विधायकों के वोट की जरूरत है. आठ सीटों पर वोट करने के बाद बीजेपी के पास अतिरिक्त 28 विधायकों के मत बच रहे हैं और उसे जीत के लिए नौ और मतों की जरूरत होगी. बीजेपी के पास 311 विधायक हैं.
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