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गुजरात की तरह यूपी में भी रोचक होता जा रहा राज्यसभा चुनाव, कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में दो दिन बाद 23 मार्च को होने वाला राज्य राज्यसभा चुनाव गुजरात ही की तरह रोचक होते जा रहा है. गुजरात और उत्तर प्रदेश में होने वाले राज्यसभा चुनाव में फर्क सिर्फ इतना है कि गुजरात में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और भाजपा के चाणक्य अमित शाह की […]

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में दो दिन बाद 23 मार्च को होने वाला राज्य राज्यसभा चुनाव गुजरात ही की तरह रोचक होते जा रहा है. गुजरात और उत्तर प्रदेश में होने वाले राज्यसभा चुनाव में फर्क सिर्फ इतना है कि गुजरात में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और भाजपा के चाणक्य अमित शाह की आमने-सामने टक्कर थी, लेकिन उत्तर प्रदेश में अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं बसपा सुप्रीमो मायावती और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.

इसे भी पढ़ें : राज्यसभा चुनाव : उत्तर प्रदेश में भाजपा और बसपा की लड़ाई में असल परीक्षा कांग्रेस की

हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस बात का पूरा भरोसा है कि उनके सूबे से राज्यसभा के लिए भाजपा की ओर से उम्मीदवार बनाये गये नेताओं की जीत पक्की है, लेकिन उपचुनावों के बाद सूबे में बदले राजनीतिक समीकरण के बीच सूबे के दो पूर्व मुख्यमंत्री बसपा की सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मुखर होकर जोर-आजमाइश करने में जुट गये हैं.

ओपी राजभर को मना अमित शाह ने किया डैमेज कंट्रोल

इस बीच, खबर यह भी है कि गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्र में हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद विरोधी सुर अलाप रहे ओम प्रकाश राजभर को दिल्ली तलब करके भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने डैमेज कंट्रोल करने का पूरा प्रयास किया है. मीडिया में आ रही खबरों में यह बताया जा रहा है कि अमित शाह से मुलाकात करने के बाद भाजपा नेता ओमप्रकाश राजभर के सुर बदल गये हैं.

भाजपा के चाणक्य के रूप में हो रही शाह की वापसी

मीडिया की ही खबरों में यह भी कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों पर अहम उपचुनाव हार जाने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की खेल में वापसी होती नजर आयी, जब समाजवादी पार्टी के सात विधायकों ने एक महत्वपूर्ण पार्टी बैठक में शिरकत नहीं की. राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले ऐसा होना समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के लिए अच्छी खबर नहीं है और न ही यह बसपा सुप्रीमो मायावती का संसद के उच्च सदन में एक सीट पाना आसान है.

बुआ-बबुआ की गलबंहिया से बदल गया समीकरण

गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले अखिलेश यादव और मायावती ने 25 साल पुरानी अदावत को भुलाकर आपस में गले मिलाया था. बुआ और बबुआ के आपसी मेल-मिलाप का ही नतीजा निकला कि सूबे में भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली दो लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जीत गये. राजनीतिक हलकों में चर्चा इस बात की भी है कि राज्यसभा चुनाव के दौरान ‘इस हाथ दे, उस हाथ ले’ के समझौते के तहत अखिलेश यादव के विधायक मायावती की पार्टी को समर्थन देने का मन बना चुके हैं.

उत्तर प्रदेश से भाजपा के नौ उम्मीदवार लड़ रहे राज्यसभा चुनाव

उत्तर प्रदेश में शुक्रवार यानी 23 मार्च को राज्यसभा की 31 में 10 सीटों का फैसला होगा. इस चुनाव के लिए भाजपा ने उत्तर प्रदेश से अपने नौ प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जबकि समाजवादी पार्टी और बसपा ने एक-एक उम्मीदवार को उतारा है. उत्तर प्रदेश में प्रत्येक उम्मीदवार को 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी. भाजपा कम से कम आठ सीटें जीत जाने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है, क्योंकि उसके पास विधानसभा में 311 सदस्य हैं.

माया का उच्च सदन पहुंचना मुश्किल

उधर, 47 विधायकों वाली समाजवादी पार्टी भी एक प्रत्याशी को जिता ले जायेगी. समाजवादी पार्टी ने कहा था कि उसके 10 अतिरिक्त विधायक मायावती की बसपा की मदद करेंगे, जिसके पास कुल 19 विधायक हैं, जो जरूरत से काफी कम हैं. इसके साथ ही कयास यह भी लगाया जा रहा है कि कांग्रेस के सात तथा अजित सिंह की पार्टी के एक विधायक के समर्थन से बसपा का राज्यसभा प्रत्याशी जीत सकता है.

सपा को अपने ही लोगों को जुटाने में छूट रहे पसीने

अब समाजवादी पार्टी को अपने लोगों को एकजुट रखने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. उनके सात विधायक, जिनमें अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव शामिल हैं, बुधवार सुबह लखनऊ में हुई एक अहम बैठक में शामिल नहीं हुए.

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