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राज्यसभा चुनाव : उत्तर प्रदेश में विपक्ष की एकता दांव पर, क्या भीमराव को मिलेगी जीत?

-हरीश तिवारी- लखनऊ : प्रदेश का राज्यसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ में पहुंच गया है. फिलहाल दसवीं सीट का मुकाबला एक कारोबारी अनिल अग्रवाल और एक वकील भीमराव अंबेडकर के बीच हो गया है. इसमें सत्ता पक्ष की रणनीति और विपक्षी एकता दांव पर है. अंबेडकर बसपा प्रत्य़ाशी हैं तो अग्रवाल निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2018 10:20 AM


-हरीश तिवारी-

लखनऊ : प्रदेश का राज्यसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ में पहुंच गया है. फिलहाल दसवीं सीट का मुकाबला एक कारोबारी अनिल अग्रवाल और एक वकील भीमराव अंबेडकर के बीच हो गया है. इसमें सत्ता पक्ष की रणनीति और विपक्षी एकता दांव पर है. अंबेडकर बसपा प्रत्य़ाशी हैं तो अग्रवाल निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना भाग्य आजमा रहे हैं और उन्हें भाजपा का समर्थन मिला हुआ है. फिलहाल दोनों अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.
बसपा प्रमुख ने राज्यसभा चुनाव में पूर्व विधायक भीमराव अंबेडकर को टिकट देकर सबको चौंका दिया था. बसपा में उनकी पहचान एक आम कार्यकर्ता और पूर्व विधायक के तौर पर ही है. फिलहाल वह बसपा संगठन में कानपुर के कोआरडिनेटर के पद पर हैं.

कौन हैं भीमराव अंबेडकर
दलित समुदाय से आने वाले भीमराव अंबेडकर सपा मुखिया अखिलेश यादव के गृह जनपद इटावा के रहने वाले हैं. भीमराव की गिनती पार्टी के वफादार और पुराने नेताओं में होती है. बसपा के संस्थापक काशीराम के समय से ही भीमराव पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं. लिहाजा बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें राज्यसभा उम्मीदवार बनाया जायेगा. इसके पीछे मायावती ने एक तीर से दो निशाने साधे. पहला, जो परिवारवाद का आरोप लगाने वालों को चुप कराया. वहीं दलित वर्ग से आने वाले अंबेडकर को टिकट देकर दलितों को मैसेज दिया. असल में पहले यह संभावनाएं जताई जा रही थी कि मायावती अपने भाई आनंद को राज्यसभा का टिकट देंगी. लेकिन उन्होंने अंबेडकर को टिकट देकर सभी अटकलों को समाप्त कर दिया. हालांकि पिछले साल उन्होंने अपने भाई को बसपा का उपाध्यक्ष बनाकर विपक्षी दलों को परिवारवाद का आरोप लगाने का मौका दे दिया था. पेशे से वकील भीमराव अंबेडकर वर्तमान में कानपुर मंडल के जोन कोआर्डिनेटर हैं. अंबेडकर इटावा की लखना सीट से 2007 में बसपा से विधायक चुने गये. इस दौरान राज्य में बसपा की सरकार भी बनी. सरकार में उनकी हनक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन पर नलकूप विभाग के अधिशासी अभियंता को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगा था, जिससे तंग आकर अभियंता ने अपनी नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया था.

हालांकि परिसीमन के बाद भरथना विधानसभा सीट से 2012 में फिर चुनाव लड़ा, लेकिन सपा की सुखदेवी वर्मा से चुनाव हार गये थे. लेकिन इसके बावजूद बसपा प्रमुख से उनकी करीबी बरकरार रही. अंबेडकर मूलतः औरैया जिले के सैनपुर गांव के रहने वाले है. उन्होंने वकालत भी की हुई है. इससे पहले ये इटावा के बसपा के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं.फिलहाल अगर एक पूरा विपक्ष एक जुट रहा और उसे निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला तो अंबेडकर की जीत तय मानी जा रही है. जबकि भाजपा को क्रास वोटिंग पर पूरा भरोसा है. क्योंकि 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी को क्रास वोटिंग के जरिए वोट भी मिले थे. हालांकि उसका प्रत्याशी चुनाव में हार गया था. जीत के लिए एक प्रत्याशी को 37 विधायकों की जरूरत होती है. ऐसे में अगर पूरा विपक्ष का वोट एक जुट रहा तो जीत विपक्ष के हाथ में आ सकती है. सदन में एक सीट जीतने के बाद 10 वोट बच रहे हैं जबकि बसपा के 19, कांग्रेस के 7 और रालोद का एक वोट है. इसके अलावा तीन निर्दलीय विधायक भी हैं.

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