बलिया / लखनऊ : अपने बयानों से पहले भी कई बार उत्तर प्रदेश सरकार को असहज कर चुके कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बागी तेवर दिखाते हुए उन पर गठबंधन धर्म नहीं निभाने और अपनी पार्टी की उपेक्षा करने का आरोप लगाया. वहीं, भाजपा ने कहा कि वह राज्य में गठबंधन धर्म का पालन कर रही है. उत्तर प्रदेश में भाजपानीत गठबंधन की घटक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ( एसबीएसपी ) के अध्यक्ष राजभर ने कहा, ‘‘भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जब आगामी 10 अप्रैल को लखनऊ आयेंगे, तो मैं उनके साथ विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा करूंगा और उसके बाद अपनी पार्टी के आगे के कदम के बारे में निर्णय करूंगा.” उन्होंने स्पष्ट कहा कि यदि शाह एसबीएसपी की ओर से उठाये गए मुद्दों पर सहमत नहीं होते हैं, तो पार्टी गठबंधन पर पुनर्विचार करेगी.
दूसरी ओर, राजभर की नाराजगी को तवज्जो न देते हुए भाजपा के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, ‘‘भाजपा उत्तर प्रदेश में गठबंधन धर्म का पालन कर रही है.” उन्होंने कहा, ‘‘राजभर जो कुछ कह रहे हैं वह, केवल सुर्खियों में आने के लिए एक राजनीतिक स्टंट है. वह नौकरशाही पर सवाल उठा रहे हैं, नेतृत्व पर नहीं. नेतृत्व ईमानदार है.” भाजपा प्रवक्ता ने कहा, ‘‘भाजपा सबका साथ सबका विकास में दृढ़तापूर्वक विश्वास करती है. राजभर ने जो भी मुद्दे उठाये हैं, उनका समाधान किया जा रहा है. ज्यादा बेहतर यही होता कि वह इन मुद्दों को मंत्रिमंडल की बैठक में उठाते.”
राज्यसभा चुनाव से पहले राजभर ने चेतावनी दी थी कि उनके चार विधायक मतदान का बहिष्कार करेंगे. सुभासपा ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था, जिसमें उसके चार विधायक जीते थे. प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास कुल 324 विधायक हैं. राजभर ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘सांसद और विधायक (आदित्यनाथ) सरकार से नाराज क्यों हैं? वे अपनी शिकायतें बताने के लिए दिल्ली क्यों जा रहे हैं? विधायक नाराज क्यों हैं और प्रदर्शन पर क्यों बैठे हैं?”
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में हाल में की गयी नियुक्तियों के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा के नारे ‘सबका साथ , सबका विकास’ को अक्षरश : लागू नहीं किया जा रहा है, क्योंकि ऊंची जाति के वरिष्ठ भाजपा नेताओं के रिश्तेदारों को नियुक्त किया गया है. अब मुझे बताइये कि पिछड़ी और अनुसूचित जाति के लोग कहां जायेंगे?” उन्होंने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश कैबिनेट की बैठकों में सभी के विचार सुने जाते हैं, लेकिन निर्णय केवल चार-पांच लोगों द्वारा किया जाता है. यदि हमने आपके लिए वोट किया है, तो हमारी बात भी सुनी जानी चाहिए.” नाराज राजभर पिछले महीने अपनी शिकायतों को लेकर दिल्ली गये थे और भाजपा अध्यक्ष शाह से मुलाकात की थी. वह कुछ नरम होकर लौटे, क्योंकि शाह ने 10 अप्रैल को राज्य की राजधानी आने और मुख्यमंत्री की मौजूदगी में उनकी बात सुनने का वादा किया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं आपको 10 अप्रैल के बाद बताऊंगा कि भाजपा क्या चाहती है और ओम प्रकाश राजभर क्या चाहते हैं.”
उन्होंने एक सवाल पर कहा , ‘‘ यदि वह (शाह) हमारी ओर से उठाये गए मुद्दों से सहमत नहीं होते हैं, जैसा कि उन्होंने ( राज्यसभा चुनाव से पहले दिल्ली में हुई मुलाकात के दौरान) वादा किया था, तो हमें गठबंधन पर पुनर्विचार करना होगा.” एसबीएसपी नेता इस बात के भी आलोचक हैं कि मुख्यमंत्री का चयन राज्य में राजग के चुने गये 325 विधायकों में से नहीं किया गया ( इनमें से बाद में एक की मृत्यु हो गयी). राजभर ने कहा, ‘‘ये जो 325 विधायक चुने गये, इन्हीं के बीच से किसी को नेतृत्व दिया जाना चाहिए था. ऐसा लगता है कि ये सभी अयोग्य हैं.” हाल ही में उन्होंने दावा किया था कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में राज्य में भ्रष्टाचार बढ़ा है और उनकी पार्टी को गठबंधन की वरिष्ठ सहयोगी से यथोचित सम्मान नहीं मिल रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘अब उनके ( भाजपा के ) अपने सांसद और विधायक ही उनके खिलाफ बोल रहे हैं और धरने पर बैठ रहे हैं, (जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के आनेवाले बयानों को देखिये) ऐसा कुछ जरूर होगा, जो वे इस तरह से बोल रहे हैं.” वह इटावा से सांसद अशोक कुमार दोहरे और नगीना से सांसद यशवंत सिंह की ओर इशारा कर रहे थे, जिन्होंने खास तौर पर अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून पर उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सार्वजनिक रूप से अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है. इससे पहले राबर्ट्सगंज से लोकसभा सांसद छोटेलाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आदित्यनाथ पर उन्हें तब ‘डांटने’ का आरोप लगाया था, जब वह उनके समक्ष एक मुद्दे को लेकर गये थे.
गौरतलब है कि राजभर पूर्व में भी अपने बयानों से सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर चुके हैं. उन्होंने हाल में सरकार के अधिकारियों पर मनमानी करने और जनप्रतिनिधियों की बात ना सुनने का आरोप लगाते हुए सरकार को घेरा था.