भाजपा के फार्मूले से लोकसभा चुनाव फतह करने की तैयारी में अखिलेश यादव
लोकसभा चुनाव से पहले छोटे दलों का गठबंधन बनाने की तैयारी कोई भी दल नहीं नकार सकता है छोटे दलों की भूमिका हरीश तिवारी लखनऊ : गुरुवार को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गयी है. योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर और सपा नेता शिवपाल सिंह के बीच हुई बैठक […]
लोकसभा चुनाव से पहले छोटे दलों का गठबंधन बनाने की तैयारी
कोई भी दल नहीं नकार सकता है छोटे दलों की भूमिका
हरीश तिवारी
लखनऊ : गुरुवार को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गयी है. योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर और सपा नेता शिवपाल सिंह के बीच हुई बैठक के बाद इसके राजनैतिक मायने निकाले जाने शुरू हो गए हैं. हालांकि दोनों की तरफ से इसे शिष्टाचार की बैठक बताया जा रहा है, लेकिन 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव छोटे दलों की भूमिका को देखते हुए इसे सपा की नई रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.
असल में पिछले कुछ सालों में इन छोटे राजनैतिक दलों की बड़ी भूमिका होती गयी है. भले ही यह दल अपने बलबूते सीट निकालने की कूबत न रखते हों, लेकिन जिताने और हराने का माद्दा जरूर रखते हैं. भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 में अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए यूपी में छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ा और 73 सीटें जीतने में कामयाब रही. भाजपा का यूपी में अपना दल के साथ गठबंधन था और अपना दल दो लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही. इसी फार्मूले को जारी रखते हुए पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर छोटे दलों से गठबंधन किया. इस गठबंधन में भाजपा के साथ अपना दल, सुहेलदेव बहुजन समाज पार्टी समेत कई छोटे दल शामिल हुए और चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हुए अपना दल ने 9 और सुहेलदेव बहुजन समाज पार्टी ने 4 सीटें जीतें जबकि कांग्रेस जैसी बड़ी राजनैतिक पार्टी महज 7 सीटें ही जीत पायी. लिहाजा अब आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सपा भी भाजपा के फार्मूले को अख्तियार कर रह रही है. गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में सपा ने निषाद पार्टी और पीस पार्टी के साथ गठबंधन कर बड़ा उलटफेर का भाजपा को पटखनी दी.
पिछले दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस बात के संकेत दिए थे कि वह छोटे दलों के साथ गठबंधन करेंगे. हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा के बीच आने वाले समय में गठबंधन की बात कही जा रही है. अगर इनके बीच गठबंधन नहीं होता है तो सपा इन छोटे दलों के साथ गठबंधन कर लड़ेगी. वहीं अगर सपा और बसपा के बीच गठबंधन होता है और इसमें छोटे दल शामिल होंगे और इन्हें सपा को अपने कोटे की सीटें देनी पड़ेंगी. हालांकि भाजपा को हराने के लिए सपा इसके लिए भी तैयार है.
बहरहाल यूपी में जातीय समीकरण की नजर से ये छोटे दल कई विधानसभा क्षेत्रों में काफी अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसी जगहों पर ऐसे नेता या दल जिन्हें प्रदेश की राजनीति में खास पहचान प्राप्त नहीं हैं वह बड़ा उलटफेर करने की हैसियत जरूर रखते है. अगर लोकसभा चुनाव 2014 और यूपी विधानसभा चुनाव 2017 पर नजर डालें तो कई छोटे दलों ने चुनाव लड़ा लेकिन लोकसभा में अपना दल और विधानससभा चुनाव में महज अपना दल, निषाद पार्टी और सुहेलदेव बहुजन समाज पार्टी ही अपना खाता खोल पायी कुछ समय पहले तक यूपी की राजनीति में सुहेलदेव भारती समाज पार्टी के बारे में कम ही लोग जानते थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में इस पार्टी ने भाजपा के साथ पूर्वी यूपी से गठबंधन किया है और चार सीटें जीती. जबकि निषाद पार्टी ने 1 सीट जीती. वहीं 2012 के चुनाव में 112 छोटे दलों ने चुनाव लड़ा और इनके खाते में केवल 5 विधायक ही आए.
लोकतांत्रिक कांग्रेस, भारतीय जनशक्ति, जनमोर्चा, राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी और उत्तर प्रदेश यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को एक-एक सीट मिली थी. अगर इन दलों को मिलने वाले मतों का प्रतिशत देखा जाए तो 2012 में आंबेडकर क्रांति दल, आदर्श लोकदल, ऑल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट, भारतीय नागरिक पार्टी, बम पार्टी, जनसत्ता पार्टी, विकास पार्टी और मॉडरेट पार्टी जैसे कई दलों को एक फीसदी वोट भी नहीं मिला लेकिन इन्होंने उलटफेर जरूर किया. जबकि अपना दल को 10.49 फीसदी वोट मिले जो कांग्रेस के 8.84 फीसदी से दो फीसदी ज्यादा थे. हालांकि इसके बावजूद अपना दल का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया जबकि पीस पार्टी के 4 सीटें थी.
यूपी विधानसभा चुनाव में 2017 में यूपी के छोटे दलों की स्थिति
पार्टी वोट प्रतिशत जीती सीट
अपना दल 1 9
सुहेलदेव बहुजन समाजपार्टी .7 4
निषाद पार्टी .6 0
पीस पार्टी .2 0
एआईएमआईएम .2 0
लोकदल .2 0
बहुजन मुक्ति पार्टी .2 0
महानदल .1 0
अन्य दल 1.2 0