लखनऊ : नवाबों का शहर लखनऊ अपने प्यारे अटल बिहारी वाजपेयी को खोकर गमगीन हो गया. अटलजी को भी लखनऊ बहुत प्यारा था. रिश्तों का सिलसिला थम गया और शहर ठहर-सा गया. लोग गम में डूब गये और अटलजी इस शहर के लिए एक न भुला सकने वाली याद बनकर गये. उनके निधन से गमजदा लखनवियों के पास अब सिर्फ उनकी यादें हैं और एक ख्वाहिश भी कि वाजपेयी ने जिस तरह की सियासत को पोसा, काश! कातिब-ए-तकदीर उसे हिंदुस्तान की किस्मत में हमेशा के लिए उतार दे.
लखनऊ के नवाबों के खानदानी लोगों के संगठन ‘रॉयल फैमिली ऑफ अवध’ के अतीत के भी कई यादगार लम्हे वाजपेयी से वाबस्ता हैं. संगठन के महासचिव शिकोह आजाद ने उन्हें खि़राज-ए-अकीदत पेश करते हुए कहा कि नजाकत, नफासत और भाईचारे का शहर लखनऊ यूं ही किसी को नहीं अपनाता. निश्चित रूप से वाजपेयी में वह सारी खूबियां थीं, जो सच्चे लखनवी में होनी चाहिए. नवाबीन और अल्पसंख्यकों के बीच वाजपेयी की छवि बेहद सेकुलर थी. वाजपेयी का जाना खासकर ‘रॉयल फैमिली ऑफ अवध’ के लिए बेहद अफसोस की बात है.
दरगाह की ढहायी गयी दीवार फिर से बनवायी
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास की नजर में वाजपेयीजी समावेशी राजनीति और धर्मनिरपेक्षता की प्रतिमूर्ति थे. उनके परिवार से उनका बहुत करीबी रिश्ता था. अब्बास ने बताया कि वाजपेयी की रवादारी का आलम यह था कि उनके बड़े भाई मौलाना एजाज अतहर की शादी में उन्होंने न सिर्फ शिरकत की, बल्कि करीब डेढ़ घंटा वक्त भी दिया. उस वक्त वह प्रधानमंत्री थे. दिल्ली में पार्क बनवाने के लिए दरगाह शाहे मरदा कर्बला की दीवार ढहा दी गयी थी. मामला जब वाजपेयी के पास पहुंचा, तो उन्होंने दरगाह की ढहायी गयी दीवार को फिर से बनवायी.