सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हुई बसपा
लखनऊ : आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बसपा बूथ और यूथ पर फोकस करेगी. इसके लिए बसपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. बसपा महागठबंधन की अटकलों के साथ ही बूथ स्तर पर कैडर को मजबूत कर रही है साथ ही युवाओं को जोड़ रही है. असल में दो दिन पहले बसपा प्रमुख मायावती ने विपक्षी दलों के बीच बनने वाले गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया था.
मायावती का कहना था कि जब सम्मानजनक सीटें मिलेंगी तभी वह किसी गठबंधन में शामिल होगी. बसपा यूपी ही नहीं बल्कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में गठबंधन चाहती है. क्योंकि इन राज्यों में बसपा कमजोर है और वह कांग्रेस से गठजोड़ कर अपने आप को इन राज्यों में स्थापित कर सकती है. यूपी में कांग्रेस कमजोर स्थिति में लिहाजा बसपा इसका फायदा लेना चाहती है.
फिलहाल बसपा ने महागठबंधन की अटकलों को दरकिनार करते हुए स्थानीय स्तर पर अपने को मजबूत करने की पहल की है. पार्टी ने कई महीने पहले से ही नये सिरे से बूथ स्तर तक संगठन खड़ा करने की तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए संगठन में कई बदलाव भी किये गये हैं. बूथ इकाइयों का आकार कई गुना बढ़ाया गया है. युवाओं को हर स्तर पर 50 फीसदी भागेदारी दी जा रही है. इसकी भी वजह यही है कि ताकि कोई भी बात घर-घर तक आसानी से पहुंच सके.
युवाओं की मदद से सोशल मीडिया पर भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी ताकत पहुंचाने के लिए बसपा ने अपनी टीम बनायी है. हालांकि बसपा नेता खुलेतौर पर सोशल मीडिया में सक्रिय होने की बात नकार रहे हैं. लेकिन पिछले दो तीन महीनों के दौरान सोशल मीडिया में कई ग्रुप बसपा के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं.
सूत्रों के मुताबिक बसपा प्रमुख मायावती के निर्देश पर टीमें बनाकर इसकी शुरुआत कर दी गयी. यह अभियान लोकसभा चुनाव तक चलेगा. ये ग्रुप खासतौर से देश के बड़े मामलों जैसे भीमा कोरेगांव, रोहित वेमुला के अलावा यूपी में दलित उत्पीड़न की घटनाओं को तथ्यों सहित बता रहे हैं.
फिलहाल बसपा के बड़े नेताओं ने मंथन के दलित उत्पीड़न के मुद्दे को लोकसभा चुनाव में व्यापक तौर पर उठाने की योजना तैयार की गयी है. क्योंकि भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर है और पिछले दो तीन महीनों के दौरान भाजपा का रूख दलितों के मुद्दों पर काफी सक्रिय हुई है. बसपा को डर है कि कहीं उसका वोट बैंक कहीं खिसक ना जाए लिहाजा इसके लिए बसपा दलित मुद्दों को धार देने में जुटी है.
असल में बसपा का मुख्य वोट बैंक एससी-एसटी ही है. पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में यह जनाधार कुछ खिसकने से ही पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था और पार्टी लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पायी थी और यूपी विधानसभा चुनाव में वह 19 सीटों पर सिमट गयी थी.