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लोकसभा चुनाव 2019 : उत्तर में किस तरफ करवट लेगा गठबंधन का हाथी…!

हरीश तिवारी@लखनऊ बसपा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ ही ताल ठोंक दी है. अब यूपी में महागठबंधन का हाथी किस तरफ करवट लेगा, यह तो समय ही तय करेगा. लेकिन बसपा के इस रूख से भाजपा को राहत तो जरूर मिली है. लेकिन महागठबंधन करने वाले संभावित दलों में इसको लेकर […]

हरीश तिवारी@लखनऊ

बसपा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ ही ताल ठोंक दी है. अब यूपी में महागठबंधन का हाथी किस तरफ करवट लेगा, यह तो समय ही तय करेगा. लेकिन बसपा के इस रूख से भाजपा को राहत तो जरूर मिली है. लेकिन महागठबंधन करने वाले संभावित दलों में इसको लेकर आशंका बढ़ती जा रही है. महागठबंधन को लेकर कोई भी दल कुछ कहने की स्थिति में नहीं है.

फिलहाल सभी की नजरें सपा पर हैं जबकि कांग्रेस ये मानकर चल रही है कि उसे लोकसभा चुनाव में अकेले ही सत्ता पक्ष से लड़ना पड़े और वह उसी आधार पर तैयारियों को अंजाम दे रही है. असल में बसपा को पहले से यह आशंका है कि भाजपा के खिलाफ बनने वाले महागठबंधन में कांग्रेस व सपा का वोट उसकी ओर शायद ट्रांसफर न हो. जबकि बसपा का वोट आसानी से उस ओर जा सकता है.

राज्य में इस साल हुए लोकसभा के तीन उपचुनाव में बसपा के वोटर ने सपा और रालोद का साथ दिया वह सपा दो और रालोद एक सीट जीतने में कामयाब रही. लेकिन अब बसपा के रणनीतिकारों का मानना है कि शिवपाल यादव द्वारा अलग मोर्चा बना लेने और खुल कर सपा के खिलाफ आने से सपा का वोटर शिवपाल की तरफ जरूर रूख करेगा. क्योंकि सपा का वोटर और शिवपाल का वोटर एक ही है. वह बसपा की तरफ जाने के बजाए आसानी से शिवपाल की तरफ जा सकता है. जिसके कारण बसपा को सीधे तौर पर नुकसान उठाना पड़ेगा.

बसपा खेमा मान रहा है कि अगर शिवपाल की नयी पार्टी अलग से चुनाव लड़ती है तो यादव वोट बैंक में सेंध लग सकती है. इससे गठबंधन की कामयाबी पर असर पड़ सकता है. सपा नेता भी मान रहे हैं कि शिवपाल यादव का मोर्चा सपा की संभावनाओं पर असर डालेगा. फिलहाल बसपा ने कांग्रेस से छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में किनारा कर लिया है और अब राजस्थान में भी उसे कांग्रेस के साथ समझौते की उम्मीद कम ही है.

पिछले दिनों कांग्रेस के भारत बंद को भी बसपा ने समर्थन नहीं दिया था जबकि सपा खुलकर कांग्रेस के पक्ष में थी. राज्य में जो समीकरण उभर रहे हैं, उससे यूपी में संभावित महागठबंधन से कांग्रेस अपने को दूर कर सकती है. हालांकि पिछले कुछ महीनों के दौरान कांग्रेस की राज्य में सक्रियता बढ़ी है और कांग्रेस के राज्य प्रमुख राज बब्बर भी कह चुके हैं कि पार्टी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए अपने को तैयार कर रही है. अगर जरूरत पड़ी तो कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी.

कांग्रेस सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के पक्ष में तो है लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने पर भी विचार कर रही है. बसपा को लेकर सपा भी उहापोह की स्थिति में है. वह महागठबंधन के लिए बलिदान देने के लिए तैयार है लेकिन बसपा के रूख को देखते हुए सपा फिलहाल कोई फैसला नहीं कर पा रही है.

सपा नेताओं का डर है कि कहीं मायावती महागठबंधन से किनारा न कर ले, ऐसे में लोकसभा चुनाव में उसके खिलाफ चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा और भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनायेगी. जिसके कारण उसे अपने वोटर को समेटकर रखना मुश्किल होगा. सपा इसका खामियाजा पिछले लोकसभा चुनाव और पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में उठा चुकी है.

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