-हरीश तिवारी-
लखनऊ : सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी बसपा प्रमुख मायावती की तर्ज पर कांग्रेस से दूरी बनानी शुरू कर दी है. अखिलेश लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन, बसपा की नाराजगी की कीमत पर नहीं करना चाहते हैं. लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि यूपी में बनने वाले संभावित महागठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया जाएगा, इसके लिए अखिलेश रजामंद भी हैं, लेकिन सारा दारोमदार बसपा पर है. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कुल मनोनीत सदस्य को मिलाकर कुल 404 विधायक हैं, जिनमें से सरकार के साथ 325 हैं जिनमें से भाजपा के 312 विधायक है जबकि विपक्ष में सपा के 48, बसपा, 19 और कांग्रेस के सात विधायक हैं.
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि प्रदेश में कांग्रेस की क्या स्थिति है इसलिए सपा बसपा को नाराज नहीं करना चाहती है.असल में सपा यूपी में महागठबंधन बनाना चाहती है, ताकि सभी विपक्षी दल मिलकर भाजपा को टक्कर दे सके. लेकिन सपा की ये कोशिशें परवान नहीं चढ़ पा रही हैं. बसपा ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन न करने का फैसला किया है. अब अखिलेश भी कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के पक्ष में नहीं है. हालांकि दो दिन पहले भोपाल में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को बड़ा दिल दिखाने की सलाह दी थी. लेकिन अभी तक कांग्रेस की तरफ से इस मुद्दे को लेकर कोई सकारात्मक रूख देखने को नहीं मिला है.
बसपा पहले ही कांग्रेस को झटका दे चुकी है. बसपा ने पिछले महीने कांग्रेस द्वारा आयोजित भारत बंद के दौरान भी उसे झटका दिया था. लेकिन कांग्रेस के नेता मायावती के इस इशारे को भांप नहीं पाये. जल्द ही मध्यप्रदेश, छत्तीगढ, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा का चुनाव होना है. ऐसे में मायावती मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपना प्रभाव जमाना चाहती है. मायावती पहले भी इन दो राज्यों में अपना खाता खोल चुकी है. छत्तीसगढ़ में मायावती ने कर्नाटक की तर्ज पर अजित जोगी की जनता कांग्रेस से गठबंधन किया है. जो हाल ही में अस्तित्व में आया है. जबकि मध्य प्रदेश में उसने करीब 20 प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए हैं.
इन राज्यों में बसपा का कोई बड़ा वोटबैंक तो नहीं है लेकिन उसकी स्थिति किसी भी दल को हराने की जरूर है.पहले मायावती कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन करना चाहती हैं. उनकी तरफ से पहले भी संकेत दिए गए थे. लेकिन, कांग्रेस इन राज्यों में बसपा के साथ गठबंधन को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है. बसपा की नाराजगी को देखते हुए अब कांग्रेस आलाकमान बसपा के साथ बातचीत करेगा. बसपा के साथ बातचीत टूटने का पूरा आरोप कमलनाथ पर लगाया जा रहा है. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि कमलनाथ ने आलाकमान को पूरी सच्चाई नहीं बतायी. जिसके कारण बसपा के साथ गठबंधन नहीं हो पाया है. अब कांग्रेस अगर गठबंधऩ करती भी है तो बीएसपी को उतनी सीटें देने पर राजी नहीं होगी, जितनी बीएसपी चाहती है. कुछ यही हाल एसपी का भी है. उसके साथ भी कांग्रेस मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों में गठबंधऩ नहीं करना चाहती.
अब यही बात एसपी-बीएसपी दोनों को खटक रही है. सपा चाहती है कि भाजपा से लड़ने के लिए यूपी में पूरा विपक्ष एक होकर चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस के रवैये को देखते हुए अखिलेश भी माया की राह पर हैं. ऐसा माना जा रहा है कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ अब गठबंधन को लेकर ज्यादा इच्छुक नहीं है. हालांकि अखिलेश के पास कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का कडुवा अनुभव भी है. पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन के बुरे अनुभव के बाद अखिलेश यादव को भी लगने लगता है कि यूपी में कांग्रेस को साथ लेने में कोई फायदा नहीं है. इसके साथ ही यूपी में हुए तीन लोकसभा उपचुनाव में से दो में कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी उतारे थे.
हालांकि उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी. गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस अलग होकर चुनाव लड़ी थी. हालांकि कैराना में लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने एसपी-बीएसपी-आरएलडी की उम्मीदवार को समर्थन दिया था. फिलहाल यूपी में एसपी-बीएसपी और आरएलडी के बीच महागठबंधऩ बनने की पूरी संभावना दिख रही है. लेकिन, विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने को इनमें कोई भी तैयार होता नहीं दिख रहा है.