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पढ़ें- पूर्वी यूपी के अहम सीटों की ग्राउंड रिपोर्ट

।।पंकज कुमार पाठक ।। पूर्वी यूपी की अहम सीटों पर हमने अपनी चुनावी यात्रा के दौरान आपको ग्राउंड रिपोर्ट दी. इस चुनावी यात्रा में हमने, जनता का मिजाज क्या है ? जमीनी स्तर पर मुद्दे क्या है ? कितना काम हुआ ? अगली सरकार से जनता की उम्मीदें क्या हैं, समझने की कोशिश की. हमने […]

।।पंकज कुमार पाठक ।।

पूर्वी यूपी की अहम सीटों पर हमने अपनी चुनावी यात्रा के दौरान आपको ग्राउंड रिपोर्ट दी. इस चुनावी यात्रा में हमने, जनता का मिजाज क्या है ? जमीनी स्तर पर मुद्दे क्या है ? कितना काम हुआ ? अगली सरकार से जनता की उम्मीदें क्या हैं, समझने की कोशिश की. हमने वीडियो और आर्टिकल्स के जरिये आपतक इन लोकसभा क्षेत्रों का हाल पहुंचाया. पूर्वी यूपी की इन सीटों पर चुनाव अंतिम चरण में यानि 19 मई को है. चुनाव से पहले एक बार फिर समझिये क्या है, जनता का मिजाज, क्या है, जातीय समीकरण और कौन – कौन है चुनावी मैदान में.

बनारस
उत्तर प्रदेश की सबसे अहम सीट है बनारस . बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. 17 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोड शो करेंगे. कांग्रेस भी इस सीट पर अपनी ताकत लगा रही है, कांग्रेस के टिकट पर अजय राय खड़े हैं. सपा – बसपा महागठबंधन ने शालिनी को चुनाव में उतारा है. बीएसएफ के पूर्व जवान तेजबहादुर चुनावी मैदान में थे लेकिन उनका नामांकन रद्द हो गया.
बनारस में चर्चा क्या है
बनारस में एक ही चर्चा है, मोदी के विरोध में विपक्षी दलों ने कोई दमदार नेता मैदान में नहीं उतारा. चर्चाओं में एक तबका चुप है. काशीविश्वनाथ कॉरिडोर, फ्लाइओवर जैसे काम हो रहे हैं. काशीविश्वनाथ कॉरिडोर बनने में कई लोगों के मकान टूटे. अब भी इन इलाकों में लोग हैं जो ज्यादा मुआवजे की मांग कर रहे हैं . ये लोग ना किसी की तारीफ करते है, न अपनी बात रखते है. काशी में मल्लाह, बुनकरों की अपनी समस्या है.
जातीय समीकरण
यहां करीब 15 लाख 32 हजार वोटर हैं. करीब 70% हिंदू और 28% मुस्लिम हैं. करीब तीन लाख मुस्लिम मतदाता, ढाई लाख ब्राह्मण, डेढ़ लाख पटेल-कुर्मी हैं.
पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ने के लिए यहां क्लिक
चंदौली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चंदौली की दूरी महज 30 किलोमीटर की है. शहर काफी पिछड़ा है. 2014 में ‘मोदी लहर’ में यह सीट 16 साल बाद (1998 के बाद) फिर से भाजपा ने जीत ली थी. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय मैदान में हैं. कांग्रेस के चुनाव निशान पर पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा जन अधिकार पार्टी की उम्मीदवार हैं. सपा-बसपा गठबंधन ने चंदौली संसदीय सीट से जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय चौहान को उम्मीदवार बनाया
चर्चा क्या है
चंदौली में सड़क, शौचालय के काम को लेकर चर्चा है लेकिन मौजूदा सांसद से लोगों की नाराजगी भी है. शिकायत है कि उन्होंने अपनी लोकसभा मे कम वक्त दिया. जातीय समीकरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. क्योंकि लोग अपनी जाति के नेता को वोट देने पर चर्चा करते हैं.
जातीय गणित
1,952,756 कुल जनसंख्या
1,017,905 पुरुष आबादी
934,851 महिला आबादी
88% हिंदू
11% मुस्लिम
01% अन्य
मिर्जापुर
प्राचीन काल से यह लौह, लाख, कपड़ा एवं रूई के व्यापार के लिए मशहूर रहा है. यहां के कालीन और पीतल उद्योग भी खूब ख्याति रखते आये हैं, मगर अब पहले वाली बात नहीं रही. इस सीट से एनडीए गठबंधन के घटक दल अपना दल (एस) की नेता केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया सिंह पटेल दूसरी बार मैदान में हैं. उनके मुकाबले गठबंधन ने एसपी के राम चरित्र निषाद को और कांग्रेस ने ललितेश पति त्रिपाठी को उतारा है.
चर्चा क्या है
अपनी चुनावी यात्रा में हमने पाया कि इस लोकसभा क्षेत्र में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों के साथ- साथ रोजगार अहम मुद्दा है. कालीन, पीतल के कारोबारी इस क्षेत्र में सरकारी मदद की मांग करते हैं. पीतल औऱ कालीन के कारोबार में भारी गिरावट आ रही है.
जातिय समीकरण
इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा कुर्मी मतदाता है. सामान्य मतदाताओं का प्रतिशत 23.48 जबकि ओबीसी मतदाताओं का प्रतिशत 49.29 है.
गाजीपुर
करीब डेढ़ दशक के बाद चुनावी रणक्षेत्र में अफजाल अंसारी और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा आमने-सामने हैं. गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में सपा-बसपा और भाजपा के बीच मुकाबला कड़ा है. कांग्रेस ने भी इस सीट से अजीत को टिकट दिया है. मतदाता बंटे हुए हैं. मुकाबला कड़ा है.
गाजीपुर में चर्चा क्या है
गाजीपुर में सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है. यहां के ज्यादातर युवा बाहर काम करते हैं. चीनी मिल बंद पड़ी है कोई बड़ा उद्योग नहीं है. अफीम फैक्ट्री को छोड़ दें, तो यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है. यह क्षेत्र गन्ने की खेती पर निर्भर था, पर नंदगंज की एकमात्र चीनी मिल भी बंद है. स्वास्थ इस क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है. गाजीपुर में 200 बेड का अस्पताल है, जिसमें सिर्फ दो डॉक्टर हैं. इमरजेंसी में बाहर जाना पड़ता है
जातिगत समीकरण
इस लोकसभा क्षेत्र में यादव, दलित, बिंद, मुस्लिम समेत ओबीसी बड़ी तादाद में हैं. वहीं ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार भी निर्णायक स्थिति में हैं.
आजमगढ़
पूर्वी यूपी में बनारस के बाद सबसे अहम सीट आजमगढ़ की है. यहां से सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनावी मैदान में हैं. भाजपा के टिकट पर दिनेश लाल यादव (निरहुआ) चुनावी मैदान में हैं. आजमगढ़ की जनता लहर के विपरीत चलती है : इस सीट का इतिहास रहा है लहर के विपरीत चलने का. 2014 में मोदी लहर में भी यहां की जनता ने मुलायम सिंह यादव को चुना था. 1978 में कांग्रेस विरोधी लहर में यहां कांग्रेस की मोहसिना किदवई को जीत मिली थी. वीपी सिंह की लहर में यहां की जनता ने बसपा को जिताया था.
चर्चा क्या है आजमगढ़ में
आजगमढ़ की जनता के बीच दोनों उम्मीदवारों को लेकर चर्चा है कि आजमगढ़ के पास अपना कोई नेता नहीं है. इस इलाके में बिजली, पानी , स्वास्थ, शिक्षा के अलावा रोजगार सबसे अहम मुद्दा है. निरहुआ फिल्मों के जरिये इस क्षेत्र में रोजगार का वादा कर रहे हैं तो अखिलेश ने भावुक अपील की है.
समीकरण
इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाताओं में से साढ़े तीन लाख से अधिक यादव, तीन लाख से ज्यादा मुसलमान और करीब तीन लाख दलित हैं. , यादव, दलित, मुस्लिम में से किसी दो को जो अपने पक्ष में करने में कामयाब रहा, जीत उसकी. 1962 से लगातार इस सीट पर या तो यादव प्रत्याशी विजयी हुआ है या दूसरे नंबर पर रहा है. वैसे इस बार एक यादव की टक्कर दूसरे यादव से है. अब तक हुए 14 आम चुनाव और दो उपचुनावों में से बारह बार यादव जाति के उम्मीदवार लोकसभा पहुंचे. तीन बार मुस्लिम प्रत्याशियों ने कामयाबी हासिल की.
गोरखपुर
गोरखपुर सीट पर भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर भोजपुरी स्टार रवि किशन चुनाव लड़ रहे हैं. गोरखपुर से एसपी-बीएसपी ने निषाद वोटबैंक पर कब्जा जमाने के लिए रामभुआल निषाद को चुनाव मैदान में उतारा है. जातिय समीकरण इस सीट पर अहम है तभी, तो कांग्रेस ने भी इस सीट पर एक स्थानीय ब्राह्मण प्रत्याशी खड़ा किया है. पार्टी ने वरिष्ठ अधिवक्ता मधुसूदन तिवारी को मैदान में उतारा है.
चर्चा क्या है
दो दशक तक गोरखपुर पर भाजपा का कब्जा रहा लेकिन उपचुनाव में भाजपा को मिली हार से महागठबंधन का उत्साह बढ़ा. शहर में ज्यादातर लोग योगी के काम की तारीफ करते हैं. गांव में भी योगी की चर्चा है लेकिन सपा- बसपा की उपस्थिति भी आपको महसूस होगी. गोरखपुर में इन पांच सालों में कितना काम हुआ, जब हमने गोरखपुर के लोगों से यह सवाल किया तो लोगों ने कहा, जब तक योगी सांसद थे उन्होंने ऐसा कोई खास काम नहीं किया जो गिनाया जा सके लेकिन मुख्मंत्री बनने के बाद उन्होंने गोरखपुर पर ध्यान दिया है.
क्या है जातीय समीकरण
यहां 19.5 लाख वोटरों में से 3.5 लाख वोटर निषाद समुदाय के हैं. करीब डेढ़ लाख मुसलमान, 2 लाख यादव, 2 लाख दलित, करीब तीन लाख ब्राहम्ण, 80 हजार राजपूत और छोटी बड़ी जातियां है.

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