लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल जापानी इन्सेफेलाइटिस (जेई) और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण होने वाली मौतों में भारी गिरावट का दावा किया है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव देवेश चतुर्वेदी ने सोमवार को बताया कि इस साल 27 अगस्त तक एईएस के कारण 34 लोगों की मौत हुई है, जबकि इसके 890 रोगी अस्पतालों में भर्ती किये गये हैं. इस दौरान जापानी इन्सेफेलाइटिस के कारण चार मौतें हुई हैं.
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उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में एईएस के 3911 मरीज भर्ती किये गये, जिनमें से 641 की मौत हो गयी. वहीं, 2017 में मरीजों की तादाद 4724 हो गयी, जिनमें से 655 की मौत हो गयी. वर्ष 2018 से इन आंकड़ों में गिरावट शुरू हुई. पिछले साल 3077 मरीज अस्पताल में भर्ती हुए और मौत का आंकड़ा 248 रहा.
प्रमुख सचिव ने जापानी इन्सेफेलाइटिस से जुड़े मामलों का विवरण देते हुए बताया कि वर्ष 2016 में जेई की वजह से 74 लोगों की मौत हुई थी. वर्ष 2017 में भी मौतों का यही आंकड़ा रहा. वर्ष 2018 में जेई के रोगियों की संख्या और मृतकों की तादाद घटी. पिछले साल जेई की वजह से 30 लोगों की मौत हुई. इस साल 27 अगस्त तक इस बीमारी से 4 लोगों की मौज हुई है.
पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस उन्मूलन की दिशा में प्रयास कर रहे बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आर एन सिंह ने जेई और एईएस से मौत में कमी को एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि सरकार ने पिछले साल रोकथाम को प्राथमिकता देकर ‘दस्तक’ अभियान चलाया, जिससे महामारी को रोकने में कामयाबी मिली है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में इसे नियंत्रित कर लिया गया, मगर बिहार, पश्चिम बंगाल, असम सहित देश के कुल 17 प्रदेशों में इसे कैसे काबू किया जायेगा? देश से इसके उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए.
सिंह ने कहा कि ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ इन्सेफेलाइटिस’ वर्ष 2014 में ही बनकर तैयार हो चुका है, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया गया. अगर इसे लागू किया गया होता, तो बिहार में पिछली मई-जून में इन्सेफेलाइटिस की वजह से 130 से ज्यादा बच्चों की मौत नहीं होती.
उन्होंने कहा कि देश से पोलियो और चेचक का उन्मूलन सिर्फ इसलिए हो सका, क्योंकि उनके लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किया गया था. इन्सेफेलाइटिस को अगर पूरे देश से खत्म करना है, तो राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू करना होगा.