यूपी : क्रास वोटिंग के खतरे के साथ विप चुनाव तय
।। लखनऊ से राजेन्द्र कुमार ।। लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 12 सीटों पर अब चुनाव होगा शुक्रवार को नाम वापसी की समय सीमा समाप्त होने के बाद किसी प्रत्याशी द्वारा नामांकन वापस ना लेने से मतदान होना तय हो गया. ऐसे में अब भाजपा, बसपा और सपा जैसे बड़े दलों के लिए […]
।। लखनऊ से राजेन्द्र कुमार ।।
लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 12 सीटों पर अब चुनाव होगा शुक्रवार को नाम वापसी की समय सीमा समाप्त होने के बाद किसी प्रत्याशी द्वारा नामांकन वापस ना लेने से मतदान होना तय हो गया. ऐसे में अब भाजपा, बसपा और सपा जैसे बड़े दलों के लिए कांग्रेस, रालोद, पीस पार्टी, कौमी एकता दल के विधायक हथियार बनेंगे. इन दलों के विधायकों के वोट सपा, बसपा और भाजपा अपने प्रत्याशियों को जिता सकेंगे. जिसके चलते अब सपा, बसपा और भाजपा के रणनीतिकार अन्य दलों के विधायकों को पटाने में जुट गए हैं.
उत्तर प्रदेश यूपी विधान परिषद की रिक्त हुई 12 सीटों के लिए सपा, बसपा और भाजपा के कुल 13 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. इन 13 प्रत्याशियों में सपा के आठ, बसपा के तीन और भाजपा के दो प्रत्याशी हैं. एक एमएलसी सीट के लिए 31 विधायकों के वोट की जरूरत पड़ती है, उस हिसाब से समाजवादी पार्टी के पास सबसे ज्यादा सात, बीएसपी के पास दो, बीजेपी के पास एक और कांग्रेस-आरएलडी को मिलाकर एक एमएलसी बनाने की क्षमता है. इसके बाद सभी दलों के एमएलसी बनने के बाद अलग-अलग कुछ विधायकों के वोट बचते हैं.
असली घमासान इसी बारहवीं एमएलसी सीट के लिए है. इसी सीट के लिए सपा ने आठवां और बसपा ने तीसरा तथा भाजपा ने दूसरा प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा है. जिसके बाद यह लड़ाई रोमांचक हो गई है. अब 23 जनवरी को मतदान के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी.
कांग्रेस ने सपा को समर्थन देने का ऐलान को तनावमुक्त तो किया है, लेकिन कांग्रेस के विधायक टूटेंगें नहीं यह दावा कांग्रेस के बड़े नेता नहीं कर पा रहे हैं. सपा को अपने आठवें प्रत्याशी को जिताने के लिए 18 वोट चाहिए, कांग्रेस के समर्थन से सपा का प्रत्याशी एमएलसी बन सकता है और यह सुनिश्चित करने के लिए सपा अब कोई कोर कसर नही छोड़ रही है.
बसपा की ऐडी चोटी का जोर लगा रही है. बसपा को अपने तीसरे सदस्य को निर्वाचित कराने के लिए 13 विधायक कम पड़ रहे हैं. उसको राष्ट्रीय लोकदल के आठ विधायकों का समर्थन प्राप्त हो गया है. अन्य दलों के पांच विधायकों का जुगाड़ बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नसीमुद्दीन करने में जुटे हैं. भाजपा को अपना दूसरा प्रत्याशी जिताने के लिए सबसे अधिक 21 विधायकों की जरूरत है और उसको अभी तक किसी ऐसे दल या विधायक के सहयोग का ऐलान नहीं हुआ है। जिससे चुनाव जीता जा सके.
इस बीच भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी और पश्चिमी यूपी के दंगों में चर्चित हुए विधायक संगीत सोम द्वारा विभिन्न दलों के 70 विधायकों के पार्टी के संपर्क में होने के दावे ने सपा व बसपा की मुश्किल बढ़ा दी है. पीस पार्टी के पास यूं तो चार विधायक हैं, लेकिन तीन समाजवादी पार्टी की जी हुजुरी स्वीकार कर चुके हैं. जबकि कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी और शिवगतुल्ला अंसारी को सत्ता का ही साथी मानकर देखा जा रहा है. अपना दल का समर्थन बीजेपी को माना जा रहा है.
2009 के बाद यूपी में विधान परिषद चुनाव को लेकर मतदान की नौबत पहली बार आई है. भाजपा प्रभारी ओम माथुर इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि उनकी दोनों सीटें निकलेंगी. आरोप प्रत्यारोप के दौर में खीझ में चल रही बसपा सुप्रीमो मायावती इस बात से ज्यादा नाराज हैं कि हर कोई उन्हीं की पार्टी का विधायक तोड़ने का दावा कर रहा है. ऐसे राजनीतिक माहौल में अब यह तय हो गया है कि विधान परिषद के चुनावों में इस बार साम, दाम, दंड, भेद का खुला खेल होगा. जिसमें सपा, बसपा और भाजपा विधान परिषद की 12वीं सीट पर अन्य दलों के विधायकों से क्रास वोटिंग कराकर ही अपना प्रत्याशी जिता सकेंगे और अन्य दलों के विधायक सपा, बसपा तथा भाजपा के बड़े नेताओं के राजनीतिक कौशल के चलते ही क्रांस वोटिंग करेंगे. अब देखना यह है कि सपा, भाजपा व बसपा के बड़े नेताओं का राजनीतिक कौशल कितना असरदार साबित होगा.