आरक्षण पर लोकसभा अध्यक्ष का बयान ‘मनुवादी सोच” का नतीजा : मायावती
लखनऊ : बसपा अध्यक्ष मायावती ने आरक्षण के बारे में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बयान की तीखी आलोचना करते हुए आज कहा कि ‘मनुवादी सोच’ को उजागर करने वाले इस बयान ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या प्रकरण की आग में घी डालने का काम किया है. मायावती ने यहां […]
लखनऊ : बसपा अध्यक्ष मायावती ने आरक्षण के बारे में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बयान की तीखी आलोचना करते हुए आज कहा कि ‘मनुवादी सोच’ को उजागर करने वाले इस बयान ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या प्रकरण की आग में घी डालने का काम किया है.
मायावती ने यहां जारी बयान में कहा ‘‘लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने अहमदाबाद में अधिकारियों तथा स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों की बैठक में शनिवार को जाति आधारित आरक्षण की समीक्षा करने की जो बात कही है, वह एक मनुवादी सोच की उपज होने की शंका जाहिर करती है.” उन्होंने तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा ‘‘वैसे भी यह सर्वविदित है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संकीर्ण और घातक मानसिकता रखने वालों द्वारा समीक्षा की बात करने का अर्थ, उस व्यवस्था को खत्म करना ही होता है.”
मायावती ने कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला का ‘जातिवादी उत्पीडन’ के कारण आत्महत्या के लिए मजबूर होने का मामला अभी शान्त भी नहीं हो पाया है कि उच्च संवैधानिक पद पर बैठी महिला ने अपने बयान से आग में घी डालने का काम किया है.” बसपा अध्यक्ष ने कहा कि अगर रोहित को मरने के बाद भी न्याय नहीं मिला तो यही माना जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोहित के मामले को लेकर भावुक हो जाना एक ‘नाटकबाजी’ थी और उनके आंसू वास्तव में ‘घडियाली’ थे.
गौरतलब है कि लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने गत 23 जनवरी को गांधीनगर में कहा था कि इस पर चर्चा जरुरी है कि देश ने आरक्षण के वांछित उद्देश्यों को हासिल क्यों नहीं किया. सुमित्रा ने कहा था ‘‘मैं आरक्षण के खिलाफ नहीं हूं. डाक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर ने आरक्षण पर यह सोचते हुए 10 वर्ष की सीमा लगायी थी कि तब तक हम स्वतंत्र भारत में एक ऐसा समाज बनाने में सफल होंगे जिसमें सभी एक स्तर पर आ जाएंगे. फिर भी प्रत्येक 10 वर्ष बाद संसद आरक्षण को और 10 वर्ष के लिए बढ़ा देती है.”
उन्होंने कहा था ‘‘इसका मतलब है कि हमने अम्बेडकर की सभी को एक स्तर पर लाने की इच्छा को हासिल नहीं किया है. प्रत्येक 10 वर्ष बाद सभी पार्टियां आरक्षण की समयसीमा को बढाने के लिए हां कह देती हैं.” लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘‘मैं आरक्षण के खिलाफ नहीं हूं लेकिन आपको सोचना होगा कि हम अम्बेडकर की इच्छा के अनुसार सभी के लिए एकसमान स्तर हासिल क्यों नहीं कर पाये. यह वास्तविकता है. मैं पूछना चाहती हूं कि हमें इस पर संसद में चर्चा क्यों नहीं करनी चाहिए.”