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UP के राज्यपाल और CM ने किया लोकायुक्त की नियुक्ति का स्वागत

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने आज उच्चतम न्यायालय द्वारा सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति संजय मिश्र को राज्य का नया लोकायुक्त नियुक्त किये जाने का स्वागत किया. राज्यपाल राम नाईक ने यहां एक बयान में कहा कि मैंने माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश का हमेशा सम्मान किया है. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्तिगण श्री राजन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 28, 2016 4:02 PM

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने आज उच्चतम न्यायालय द्वारा सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति संजय मिश्र को राज्य का नया लोकायुक्त नियुक्त किये जाने का स्वागत किया. राज्यपाल राम नाईक ने यहां एक बयान में कहा कि मैंने माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश का हमेशा सम्मान किया है. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्तिगण श्री राजन गोगोई और श्री पी. सी. पन्त की खण्डपीठ द्वारा न्यायमूर्ति संजय मिश्रा को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किये जाने के लिये पारित आदेश का मैं सम्मान करता हूं.

इस बीच, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से बातचीत में लोकायुक्त नियुक्ति के सवाल पर कहा कि मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि हम उच्चतम न्यायालय के इस फैसले का स्वागत करते हैं. मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त करने का 16 दिसंबर का अपना आदेश निरस्त करते हुए एक अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश संजय मिश्रा को लोकायुक्त नियुक्त किया है.

न्यायमूर्ति सिंह के नाम पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा उठाई गई आपत्तियों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि अब हमें लोकायुक्त के रुप में न्यायमूर्ति सिंह की पात्रता पर गंभीर संदेह है. उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 16 दिसम्बर को एक महत्वपूर्ण आदेश में अपनी संवैधानिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया था. हालांकि, न्यायालय ने सिंह के शपथग्रहण समारोह से एक दिन पहले 19 दिसम्बर को सच्चिदानन्द गुप्ता नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए नियुक्ति को स्थगित कर दिया था. गुप्ता का आरोप था कि सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड ने न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह के नाम पर आपत्ति जाहिर की थी और सरकार ने यह तथ्य छिपाकर ‘शीर्ष अदालत के साथ छल’ किया है.

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