लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य को बना दिया. भारतीय जनता पार्टी को यह पता है कि इस बार का विधान सभा चुनाव उतना सहज नहीं है. पार्टी यह भी समझ रही है कि यूपी की सियासत में वर्तमान में चुनाव की दृष्टिकोण से पार्टी की हैसियत देखी जाये तो वह तीसरे नंबर पर विराजमान है. नये प्रदेश अध्यक्ष पर लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली सफलता को दुहराने का बोझ लगातार बना रहेगा. केशव मौर्य यह बखूबी जानते हैं कि जिस वक्त में उन्हें यूपी का अध्यक्ष बनाया गया है उस वक्त बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनपर बोझ काफी बड़ा है.
केशव के सामने अखिलेश और मायावती
केशव मौर्य अपने अबतक के राजनीतिक कैरियर में सफलता के स्वाद चखते रहे हैं. 2012 में विधायक बने और सीधे मोदी लहर में सांसद और अब उन्हें यूपी जैसे कद्दावर प्रदेश का प्रभार मिला है. वाजिब है कि पार्टी ने काफी विचार करने के बाद उन्हें यह कार्यभार सौंपा है. अखिलेश यादव और मायावती की राजनीतिक विरासत के आगे केशव की सियासत थोड़ी छोटी तो पड़ेगी. साथ ही पार्टी के अंदर खाने उनके विरोधी बहुत ज्यादा है. पंचायत चुनावों में उन्होंने जिसे सपोर्ट किया वे हार गये और अब संगठन के अंदर भी उनके लिए विरोध का स्वर बकायदा बुलंद है.
बड़ी चुनौती बड़ा कद
यूपी राजनीतिक रूप से समृद्ध और बड़ा राज्य है. देश की राजनीतिक दशा और दिशा तय करने में यूपी की भागीदारी ज्यादा है. नये बने अध्यक्ष के सामने केंद्र की कुछेक नीतियां ही प्रदेश के लोगों को रिझाने के लिए सामने है. बाकी प्रश्न अभी भी मुंह बाये खड़े हैं. जैसे-काला धन, एकाउंट में 15 लाख और महंगाई अभी भी काबू में नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष जन-धन के खाते और आधार कार्ड के रिकार्ड निबंधन के साथ केंद्र की एलपीजी पहल योजना को लोगों के सामने रख सकते हैं. सवाल यह है कि चुनावी मंच से पीएम इन योजनाओं का बखान करते रहते हैं. मौर्य को कोई और मुद्दे तलाशने होंगे.
जातिगत गोलबंदी के मायने
बीजेपी के नये प्रदेश अध्यक्ष की ताकत है उनका पिछड़ी जाति से आना. उत्तर प्रदेश में इन जातियों के 40 प्रतिशत वोट हैं. मौर्य अभी युवा और अक्रामक राजनीति करने के लिये जाने जाते हैं. यूपी में बीजेपी पहले भी अक्रामक राजनीति को अपना फंडा बना चुकी है. राजनीतिक पंडित केशव मौर्य को भाजपा के उस रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं जिसपर पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अमल किया था. यूपी में ओवैसी और मुजफ्फरनगर दंगे के साथ प्रदेश में कानून व्यवस्था का मुद्दा हावी रहेगा. इन मुद्दों को केशव मौर्य कितना भुना पाते हैं यह वक्त जरूर तय करेगा.