लखनऊ : अमर सिंह समाजवादी पार्टी (सपा) सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के दिल में रहते हैं. मंगलवार को यह साबित हो गया कि अमर सिंह पार्टी में न हो, लेकिन मुलायम सिंह के साथ उनका करीबी संबंध आज भी है. यही कारण है कि आजम खां तथा राम गोपाल के विरोध के बाद भी अमर सिंह समाजवादी पार्टी से राज्यसभा में जाएंगे. पार्टी की लखनऊ में संसदीय दल की बैठक में राज्यसभा के साथ ही विधान परिषद सदस्यों का नाम तय किया.
SP doobta hua jahaz hai, accha hai saare doobne waale log ek saath aakar doobien:Yogi Adityanath,BJP on #AmarSingh pic.twitter.com/G5CC1OGF5x
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) May 18, 2016
मीडिया में टीआरपी बढ़ाने के लिएअब काम नहीं करूंगा : अमर सिंह
वहीं, छह साल बाद समाजवादी पार्टी में लौटअमरसिंह ने एकसमाचारचैनल के पत्रकार सेबातचीतमें पार्टी में शामिल होने को लेकर किसी भी सवाल का जबाव देने से इनकार करते हुए कहा कि मैं कुछ भी बयान दूंगा तो इसका फिर से कोई अलग मतलब निकाला जायेगा. इसके बाद अन्य लोगों से इसको लेकर प्रतिक्रियाली जायेगी. उन्होंने कहा कि अब मैं किसी भी मीडिया हाउस के टीआरपी के लिए काम नहीं करूंगा. अमर सिंह ने कहा कि इस द्वंद में मुझे बहरा मान लें.
पार्टी में अपनी भूमिका को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में अमर सिंह ने कहा कि वे पार्टी में अभी किसी पद पर नहीं है. उन्होंने कहा कि मेरी भूमिका जो लोग तय करने केलिएपार्टीमें मौजूद है उनसे जाकर यह सवालकरेंतो बेहतर होगा.
देर रात रामपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे वरिष्ठ सपा नेता और कैबिनेट मंत्री आजम खां ने अमर सिंह को राज्यसभा में भेजने के पार्टी के फैसले पर ऐतराज जताया और कहा कि मेरी नजर में यह दुखद प्रकरण है. नेताजी (मुलायम सिंह) पार्टी के मालिक हैं और मालिक के फैसले को चुनौती देना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. पार्टी में अब जयाप्रदा की वापसी के सवाल पर पर आजम बोले जो किस्मत में लिखा होगा वह मान लिया जाएगा.वहीं, भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने मामले को लेकर समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला किया है. उन्होंने आज मीडिया से बात करते हुए कहा कि सपा डूबता हुआ जहाज है. अच्छा है कि सारे डूबने वाले लोग एक साथ आकर डूबें.
सपा के मुख्य प्रांतीय प्रवक्ता वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने यहां संवाददाताओं को बताया कि पार्टी की केंद्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक में राज्यसभा तथा विधान परिषद चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन किया गया. उन्होंने बताया कि बोर्ड ने बेनी प्रसाद वर्मा, अमर सिंह, संजय सेठ, रेवती रमण सिंह, सुखराम सिंह यादव, विशम्भर प्रसाद निषाद तथा अरविंद प्रताप सिंह को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा बलराम यादव, शतरुद्ध प्रकाश, जसवंत सिंह, बुक्कल नवाब, रामसुंदर दास निषाद, जगजीवन प्रसाद, रणविजय सिंह तथा कमलेश पाठक विधान परिषद चुनाव में सपा के उम्मीदवार होंगे. इनमें से संजय सेठ, रणविजय सिंह और कमलेश पाठक के नाम विधान परिषद के मनोनयन कोटे के तहत अनुमोदन के लिए राज्यपाल राम नाईक के पास भेजे गये थे, जिन्हें उन्होंने कुछ विशेष कारण बताते हुए नामंजूर कर दिया था.
अमर सिंह के नाम पर बोर्ड के कुछ सदस्यों द्वारा आपत्ति किये जाने की खबर पर यादव ने कहा कि कहीं कोई विरोध दर्ज नहीं कराया गया. राज्यसभा और विधान परिषद के लिए घोषित सभी नाम सर्वसम्मति से तय किये गये हैं. मालूम हो कि बोर्ड के सदस्य सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव और प्रदेश के वरिष्ठ काबीना मंत्री आजम खां अमर सिंह के मुखर विरोधी रहे हैं. राज्यसभा भेजे जाने के मद्देनजर अमर सिंह की सपा में वापसी के सवाल पर यादव ने कहा कि इस बारे में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव कोई निर्णय लेंगे. वैसे, सपा ने कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी और पीएल पुनिया को भी राज्यसभा पहुंचाने में मदद की थी. बहरहाल, राज्यसभा का अधिकृत प्रत्याशी बनाये जाने के बाद अमर सिंह की सपा में वापसी मात्र औपचारिकता की बात रह गयी है.
सिंह की करीबी मानी जाने वाली पूर्व सांसद जया प्रदा की सपा में वापसी के सवाल पर यादव ने कहा कि यह समय तय करेगा. उन्होंने कहा कि संसदीय बोर्ड में बहुत सोच-समझकर प्रत्याशियों के नाम तय किये हैं. इससे सपा को और मजबूती मिलेगी. मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में 11 राज्यसभा और 13 विधान परिषद सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव जून में होंगे. राज्यसभा पहुंचने के लिए किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को 37 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा. विधान परिषद के मामले में यह संख्या 32 होगी. राज्यसभा और विधान परिषद की वे सीटें क्रमश: चार जुलाई और छह जुलाई को रिक्त हो जाएंगी.
प्रदेश की 403 सदस्यीय राज्य विधानसभा में अलग-अलग राजनीतिक दलों की स्थिति देखें तो सपा के 227 विधायक हैं. उसके छह उम्मीदवार राज्यसभा पहुंच सकते हैं. इसी तरह बसपा के दो, भाजपा का एक उम्मीदवार राज्यसभा जा सकता है. इसी तरह विधान परिषद में सपा, बसपा और भाजपा को क्रमश: सात, दो और एक सीट हासिल हो सकेगी. कांग्रेस के 29 विधायक हैं. ऐसे में उसे निर्दलीय या पीस पार्टी एवं रालोद जैसी छोटी पार्टियों से समर्थन हासिल करना पड़ सकता है.