लखनऊ :पांचराज्यों के चुनाव सेनिबटनेके बाद राजनीतिक दलों व आमलोगोंकीनजरउत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिक गयी है. उत्तरप्रदेश में वहां की दो स्थानीय पार्टियां मायावती की बसपा व मुलायम की सपा कीसाख तो दावं भले ही दावं पर हो, लेकिन सबसे बड़ा दावं यूपी को लेकर नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ीहीखेलने वाली है.मोदी-शाह को पता है कि उन्हें अपने जीत केतिलिस्म को बरकराररखने के लिए उत्तरप्रदेशमेंविजयपताका पहराना हीहोगा.ऐसे में भाजपा इस पसोपेश में भी है कि वह बुजुर्ग कल्याण सिंह का नाम आगे बढ़ाये या युवा स्मृतिईरानीका.
बिहारनहींदुहरानाचाहते हैं
मोदी-शाह उत्तरप्रदेश में बिहार 2015 नहीं दोहराना चाहते हैं, इसलिए असम विधानसभा चुनाव से ही वे हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. कहा यह भी जा रहा है कि मायावती को हाशिये पर रखने और यूपी चुनाव को दो ध्रुवीय बनाने के लिए समाजवादी पार्टी व भारतीय जनता पार्टी अगले साल के फरवरी-मार्च की जगह इस साल नवंबर-दिसंबर में भी चुनाव के लिए राजी हो सकती हैं.
सबसे बड़ा दावं चेहरे पर ही होगा
महाराष्ट्र में भाजपा ने बिना चेहरा पेश किये जीत हासिल की, जबकि बिहार में नीतीश के सामने मजबूत चेहरा पेश नहीं कर पाने पर हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद भाजपा ने असम में एक मजबूत चेहरा पेश किया. यह सच है कि राजनीति हमेशा फार्मूले पर नहीं चलती, लेकिन भाजपा के हाव-भाव संकेत दे रहे हैं कि वह उत्तरप्रदेश में मायावती-अखिलेश के सामने एक चेहरा पेश करना चाह रही है. चेहरे की यह सूची लंबी है : इसमें वरुण गांधी से लेकर भाजपा के शीर्ष नेताओं में शुमार गृहमंत्री राजनाथ सिंह का नाम है. लेकिन, जिस एक नाम की सबसे ज्यादा चर्चा है वह है स्मृति ईरानी का. पार्टी के अंदर यह भी सवाल उठ खड़ा हुआ है कि स्मृति ईरानी राहुल गांधी का तो जवाब हो सकती हैं, लेकिन क्या वे राजनीति में घुटे मुलायम सिंह यादव व मायावती का भी जवाब हो सकती हैं.
ऐसेमें अब एक और नाम चर्चा में है, वह है कल्याण सिंह का. कल्याण सिंह फिलवक्त राजस्थान के राज्यपाल हैं. कल्याण सिंह को पार्टी चुनाव कैंपन समिति का प्रमुख बनाने पर विचार कर रही है और ऐसा अरुण जेटली के सुझाव पर किया जा रहा है. इस आशय की खबर एक प्रमुख बांग्ला दैनिक ने दी है.
कल्याण सिंह एक समय भाजपा केबड़ेव प्रभावी नेताओं में शुमार रहे हैं, पर अटल बिहारी वाजपेयी से मतभेद के बाद उनका राजनीतिक कैरियर ढलान पर आ गया. कल्याण सिंह कई बार भाजपा से आये-गये. अपनी पार्टी बनायी, सपा में गये. फिर भाजपा में आये और अब मोदी सरकार ने उन्हें राज्यपाल बना रखा है.
कल्याण का अनुभव
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कल्याण सिंह को उत्तरप्रदेश की गहरी समझ है. उन्हें वहां की राजनीति और प्रशासन का लंबा अनुभव है. वे पिछड़ी जाति से आते हैं, उनकी कास्ट आइडेंटी भाजपा के लिए मददगार हो सकती है. भाजपा को उम्मीद है कि उनके नाम पर बहुत से बिखरे मतदाता समूह उसके पक्ष में आयेंगे, चाहे वे किसी वर्ग के हों. उनके व्यक्तित्व में राजनीति, प्रशासन व हिंदुत्ववाद तीनों का अद्भुत संगम हैं. इस कसौटी पर आकर्षक व भीड़ जुटाऊ स्मृति ईरानी उनसे कमजोर पड़ती हैं. ऐसे में कल्याण सिंह को चेहरा के रूप में प्रस्तुत कर दावं खेला जा सकता है. हालांकि यह भी संभव है कि दोनों नेताओं को एक साथ चुनाव में अलग-अलग जिम्मेवारियों के साथ सक्रिय किया जाये.