राजनीति के मंजे खिलाड़ी हैं मुलायम
रामदत्त त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार मुलायम सिंह और अखिलेश यादव, दोनों इस इंतजार में हैं कि अलग होने की पहल कौन करेगा. मुलायम सिंह अपनी तरफ से यह तोहमत नहीं लेना चाहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को पार्टी से निकाल दिया या हटा दिया. वहीं अगर अखिलेश यादव सपा से निकल कर अपनी अलग […]
रामदत्त त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार
मुलायम सिंह और अखिलेश यादव, दोनों इस इंतजार में हैं कि अलग होने की पहल कौन करेगा. मुलायम सिंह अपनी तरफ से यह तोहमत नहीं लेना चाहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को पार्टी से निकाल दिया या हटा दिया. वहीं अगर अखिलेश यादव सपा से निकल कर अपनी अलग पार्टी बनाते हैं, तब फिर राजनीति को भविष्य के नजरिये देखना-समझना होगा.
समाजवादी पार्टी में इस समय जो कुछ भी उथल-पुथल चल रहा है, उसके दूरगामी परिणाम के बारे में कुछ कह पाना फिलहाल बहुत मुश्किल है. कल तक स्थिति कुछ और थी, आज कुछ और है, और हो सकता है कल कुछ और हो. लेकिन, जो मौजूदा सूरतेहाल हैं, उसके मद्देनजर इतना तो ही कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह की यह राजनीति सिर्फ उनके परिवार या बेटे को लेकर नहीं है, बल्कि यह पार्टी को लंबे समय तक बनाये रखने की राजनीति है.
मुलायम सिंह एक मंजे हुए और जमीनी नेता हैं. शुरू से ही उनका यह स्वभाव रहा है कि वे अपने साथ खड़े रहे पुराने लोगों के साथ खड़े रहते हैं. ऐसे में इस समय कलह के बीच वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को कैसे किनारे कर सकते हैं.
इस समय खबरें आ रही हैं कि समाजवादी पार्टी अब टूट के कगार पर है. मुझे इसकी संभावना तो नजर आ रही है, लेकिन ठोस रूप में नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा होगा ही. क्योंकि, इससे पहले भी मुलायम के कुनबे में कलह होती रही है और मुलायम सबको एक करके चलते चले आ रहे हैं. ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि पार्टी में टूट हो ही जायेगी.
अभी मुलायम सिंह और अखिलेश यादव, दोनों इस इंतजार में हैं कि अलग होने की पहल कौन करेगा. हालांकि, मुलायम सिंह अपनी तरफ से यह तोहमत नहीं लेना चाहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को पार्टी से निकाल दिया या हटा दिया. वहीं अगर अखिलेश यादव सपा से निकल कर अपनी अलग पार्टी बनाते हैं, तो फिर तब की राजनीति को भविष्य के नजरिये देखना-समझना होगा.
राजनीतिक परिवार में उथल-पुथल की परिस्थितियां हों या फिर साधारण परिवार में खींचतान, इन सबके पीछे परिवार के मुखिया को ही अक्सर जिम्मेवार माना जाता है. इसीलिए भी यह बात आ रही है कि पार्टी में कलह के लिए मुलायम जिम्मेवार हैं. जाहिर है, समाजवादी पार्टी उन्हीं की बनायी हुई है और उन्हें पार्टी चलाने का ज्यादा अनुभव भी है. ऐसे में अगर उन्हें लगता है कि जमीनी नेताओं या शुरू से उनके साथ जुड़े रहे नेताओं की अनदेखी हो रही है, तो वे डांट-बोल रहे हैं.
जहां तक अखिलेश के बगावत का सवाल है, अगर उन्हें लगता है कि उनकी छवि अच्छी है, जिसके दम पर वह आगामी विधानसभा चुनाव जीत सकते हैं, तो यह अखिलेश की अपनी राजनीतिक सोच है. लेकिन वहीं, मुलायम सिंह जानते हैं कि पार्टी को सिर्फ एक साफ छवि के नेता के दम पर नहीं चलाया जा सकता है, उसके लिए पार्टी में हर तरह के लोग चाहिए और एक मजबूत संगठन चाहिए होता है. इसलिए मुलायम को अमर सिंह भी चाहिए और शिवपाल यादव भी चाहिए. ऐसे में सवाल है कि शिवपाल हों या कोई और नेता, उनको कैसे वे झट से पार्टी से बाहर कर सकते हैं?
मुलायम इस राजनीतिक सच को जानते हैं कि प्रदेश में अपनी सरकार होते हुए भी 2014 के आम चुनाव में वे सिर्फ पांच सीटें ही जीत पाये. अगर सबके साथ रहते हुए वे सिर्फ पांच सीट ही जीत पाये, तो अगर सबको हटा देंगे, तो वे कितनी सीट जीत पायेंगे! मुलायम उसी वक्त समझ गये थे कि जमीनी लड़ाई में कुछ कमी-कमजोरी है. ऐसे में यह तो हमें मानना ही पड़ेगा कि अगर सपा में यह कलह नहीं होती, तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सपा आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से जीत कर आ ही जायेगी.
मायावती ने पांच साल प्रदेश में सरकार चलायी, लेकिन फिर से सत्ता नहीं हासिल कर पायीं. अटल जी ने भी अच्छी सरकार चलायी थी, लेकिन वे भी दोबारा नहीं आ पाये. प्रदेश में राजनीतिक फेरबदल के इस इतिहास को मुलायम सिंह अच्छी तरह से समझते हैं.
(बातचीत पर आधारित)
मुलायम सिंह की राजनीतिक यात्रा
1939 : इटावा जिले के सैफई गांव में जन्म.
1960 : छात्र जीवन में राजनीति से जुड़े.
1962 : इटावा डिग्री कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गये.
1967 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और पहली बार विधायक चुने गये.
1975 : आपातकाल के दौरान विपक्ष के नेता के रूप में गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया.
1977 : पहली बार यूपी सरकार में मंत्री (कोऑपरेटिव और पशुपालन) पद की जिम्मेवारी मिली.
1980 : उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बनाये गये.
1982- 85 : यूपी में लोक दल (बी) के अध्यक्ष रहे.
1985- 87 : कांग्रेस से निकले नेताओं और समाजवादियों ने मिल कर जब जनता दल का गठन किया, तब इन्हें उत्तर प्रदेश की कमान सौंपते हुए पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी दी गयी.
1989 : विधानसभा चुनाव में जनता दल को सबसे ज्यादा सीट मिली और अन्य दलों के समर्थन से सरकार बनी. मुलायम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री चुने गये.
1991 : अन्य दलों के समर्थन वापस लेने से प्रदेश सरकार गिर गयी और मध्यावधि चुनाव में भाजपा सत्ता में आयी.
1992 : मुलायम सिंह ने अक्तूबर माह में समाजवादी पार्टी का गठन किया.
1993- 95 : विधानसभा चुनावों के बाद दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गये.
1996-98 : पहली बार मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद संयुक्त मोरचा सरकार में रक्षा मंत्रालय की जिम्मेवारी संभाली.
1998- 1999 : 12वीं और 13वीं लोकसभा के लिए आयोजित मध्यावधि चुनावों में सांसद चुने गये.
1999- 2000 : पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस कमिटी के चेयरमैन रहे.
2003 : मायावती की सरकार भंग होने के बाद इस वर्ष सितंबर में तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की ली शपथ.
2004 : जनवरी में गुन्नौर विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में जीत दर्ज की.
2004 : मुख्यमंत्री रहते हुए मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव जीता. प्रदेश में सपा को सबसे ज्यादा सीट मिलने के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में गठित यूपीए गंठबंधन सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दिखने के कारण लोकसभा पद से दिया इस्तीफा और मुख्यमंत्री बने रहे.
2007 : विधानसभा चुनाव में सपा की हार के बाद छोड़ना पड़ा मुख्यमंत्री का पद.
2009 : पंद्रहवीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गये.
2014 : सोलहवीं लोकसभा के लिए दो संसदीय क्षेत्रों- आजमगढ़ और मैनपुरी- से चुने गये, लेकिन मैनपुरी से इस्तीफा दे दिया. फिलहाल आजमगढ़ से सांसद हैं.