-लखनऊ से राजेंद्र कुमार-
लखनऊ : समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आखिर प्रोफेसर रामगोपाल यादव का निष्कासन खत्म कर उन्हें सभी पुराने पदों पर गुरुवार को बहाल कर दिया. सपा प्रमुख मुलायम सिंह के इस फैसले से फौरी तौर भले ही पार्टी में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह के बीच छिड़ा घमसान थमता दिखाई दे रहा हो, पर असल विवाद जहां का तहां है. देर-सवेर एक बार फिर पार्टी में असंतोष के स्वर गूंजे तो किसी को भी आश्चर्य नहीं होगा. फिलहाल प्रोफेसर रामगोपाल की वापसी को पार्टी नेता सपा प्रमुख का चुनावों के चलते लिया गया फैसला बता रहे हैं.
सपा के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार, चुनावी वर्ष में भी पार्टी में असल खींचतान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल के बीच चल रही है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चाहते थे कि सपा प्रमुख उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके उनके नेतृत्व में सपा के चुनाव लड़ने का एलान करें. साथ ही विधानसभा चुनावों के लिए टिकट वितरण में उन्हें भी अधिकार दें. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता प्रोफेसर रामगोपाल यादव इस मामले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ खड़े थे, पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव को मुख्यमंत्री के तमाम लोगों को विधानसभा टिकट देने से एतराज था, जिसकी भनक जब मुख्यमंत्री के समर्थकों को हुई तो उन्होंने अखिलेश यादव को ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की मांग कर दी. ऐसी कई अन्य मांगों ने जोर पकड़ा तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह और शिवपाल सिंह ने अखिलेश समर्थक तमाम विधायकों और पार्टी प्रकोष्ठों के नेताओं को पार्टी से निकाल दिया.
इसी क्रम में बीते माह प्रोफेसर रामगोपाल को भी पार्टी से निष्काषित कर दिया गया. पार्टी के 25वें रजत जयंती समारोह के पूर्व ऐसी कार्रवाई से पार्टी को हो रहे नुकसान का आकलन करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल ने कई बार सार्वजनिक तौर पर यह कहा कि अखिलेश यादव के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा और सीएम का चेहरा भी वही होंगे, लेकिन सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने इस मामले में कोई एलान नहीं किया. पार्टी नेता कहते हैं कि सपा प्रमुख बहुत सोच समझ कर फैसला लेते हैं. हो सकता है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यह सोच रहे हैं कि बेटे (अखिलेश) के पक्ष में खुल कर खड़े होने से पार्टी के साथ परिवार पर भी उसका असर पड़े, इसलिए वह फूंक-फूंक कर फैसला ले रहे हैं. इसके तहत ही उन्होंने प्रोफेसर राम गोपाल का निष्कासन खत्म किया है और जल्दी ही कुछ अन्य निर्णय लेंगे.
पार्टी में यह भी चर्चा है कि प्रोफेसर रामगोपाल की वापसी से अखिलेश खेमा ज्यादा मजबूत हुआ है, जबकि शिवपाल यादव के समर्थक कमजोर. कहा जा रहा है कि शिवपाल समर्थकों की पार्टी में अनदेखी न हो , इस पर भी सपा प्रमुख की निगाह रहेगी और जल्दी ही मुलायम सिंह अपनी देखरेख में शिवपाल – अखिलेश और रामगोपाल के बीच चल रही खींचतान को खत्म करायेंगे. सपा प्रमुख के इस भावी एक्शन का जिक्र करते हुए कई पार्टी नेता कहते हैं कि जब तक पार्टी नेतृत्व सीएम चेहरे और टिकट वितरण प्रक्रिया में अखिलेश की भूमिका पर अपना रूख साफ नहीं करता, तक तक पार्टी में चल रही खींचतान थमने वाली नहीं है. और ऐसे में असंतोष के स्वर पार्टी में रह-रह कर उभरते रहेंगे. इसलिए जल्दी ही सपा मुखिया पार्टी में बरकरार असंतोष को खत्म करने में जुटेंगे.