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Demonetization : आखिर क्यों ममता ने किया पटना की बजाय लखनऊ का रुख?

लखनऊ :नोटबंदी के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने काफी आक्रामक रवैया अपनाया है. उन्होंने कहा कि वह नोटबंदी का विरोध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपदस्थ करने तक जारी रखेंगी.नोटबंदी पर वे मोदी की सबसे मुखर विरोधी बन कर राष्ट्रीय राजनीति में सामने आयी हैं.इसी क्रम में वे […]

लखनऊ :नोटबंदी के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने काफी आक्रामक रवैया अपनाया है. उन्होंने कहा कि वह नोटबंदी का विरोध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपदस्थ करने तक जारी रखेंगी.नोटबंदी पर वे मोदी की सबसे मुखर विरोधी बन कर राष्ट्रीय राजनीति में सामने आयी हैं.इसी क्रम में वे आज लखनऊ में धरना पर बैठने वाली हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद मुकुल राय ने कहा है कि हमारा उद्देश्य नोटबंदी का विरोध कर रही पार्टियों को एकजुट कर इसके खिलाफ आंदोलन करना है ताकि सरकार अपना यह फैसला वापस ले.

पार्टी ने बिहार, ओडिशा, पंजाब सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में धरना देने की योजना बनायी है. लेकिन ममता बनर्जी की परेशानी यह है कि उन्हें देश की बड़ी पार्टियों का खुला समर्थन उस तरह से नहीं मिल पा रहा है जिस तरह के समर्थन की उन्हें उम्मीद थी. कल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनसे मिले, लेकिन नोटबंदी पर उन्होंने कुछ नहीं कहा. उन्होंने कहा कि मैं उनसे इसलिए मिलने आया हूं क्योंकि वह वरिष्ठ हैं और लखनऊ आयी हैं.


नीतीश का नहीं मिला साथ
मीडिया में पहले ऐसी खबरें आयी थी कि ममता बनर्जी पटना में नोटबंदी के खिलाफ लोगों को लामबंद करेंगी. लेकिन उन्होंने पटना की बजाय लखनऊ जाना बेहतर समझा. इसका कारण यह है कि नोटबंदी पर नीतीश कुमारका स्टैंड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन वाला है. नीतीश शुरू से नोटबंदी के समर्थन में बोल रहे हैं, भले ही उन्हें नरेंद्र मोदी का धुर विरोधी माना जाता है, लेकिन उन्होंने नोटबंदी पर उनका समर्थन किया है. ऐसे में ममता की परेशानी यह है कि वे अगर नोटबंदी के खिलाफ पटना की सड़कों पर उतरतीं, तो उन्हें नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का साथ नहीं मिलता.कांग्रेस के साथ पश्चिम बंगाल में स्वाभाविक प्रतिद्वंद्विता केकारण उसका भी साथ नहीं मिलता. ऐसे में एकमात्र लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल का ही विकल्प बचता.

नोटबंदी पर राष्ट्रीय पार्टियों का विरोध नहीं हो पाया मुखर
सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ कल विपक्ष की ओर से भारत बंद का आह्वान किया गया था, लेकिन वाम पार्टी को छोड़ किसी भी अहम क्षेत्रीय दल या किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने इस बंद का समर्थन खुलकर नहीं किया. कारण यह है कि प्रधानमंत्री आम जनता के बीच यह संदेश प्रेषित कर रहे हैं कि उनका यह फैसला कालेधन के खिलाफ है. चूंकि सभी पार्टियां कालेधन पर लगाम कसने की वकालत करती रहीं हैं, इसलिए वह नोटबंदी का नहीं, बल्कि इसे लागू करने के तरीके का विरोध कर रही हैं.

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