2016 : सपा में पूरे साल चली चाचा-भतीजे की जंग, चला शक्ति प्रदर्शन का दौर
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के लिए वर्ष 2016 काफी उतार चढ़ाव भरा रहा. चाचा-भतीजे की जंग हो या फिर अमर सिंह की पार्टी में वापसी, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विकास के दावे हों या फिर लचर कानून व्यवस्था हो, पार्टी और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के परिवार के भीतर मची […]
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के लिए वर्ष 2016 काफी उतार चढ़ाव भरा रहा. चाचा-भतीजे की जंग हो या फिर अमर सिंह की पार्टी में वापसी, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विकास के दावे हों या फिर लचर कानून व्यवस्था हो, पार्टी और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के परिवार के भीतर मची वर्चस्व की जंग खुलकर जनता के सामने आ गयी.
शक्ति प्रदर्शन का चला दौर
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव सहित कुछ मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया तो चाचा ने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव पर दबाव बनाकर अखिलेश को प्रदेश सपा अध्यक्ष के पद से हटाकर खुद प्रदेश की कमान संभाल ली. उन्होंने चचेरे भाई और राज्यसभा में पार्टी के नेता राम गोपाल यादव को भी अचानक छह साल के लिए निष्कासित कर दिया. हालांकि बाद में उनकी वापसी हो गयी. वर्चस्व की जंग में ‘शक्ति प्रदर्शन’ भी हावी रहा और एक दूसरे को संभवत: श्रेष्ठ साबित करने की कवायद भी. राम गोपाल यादव और आजम खां अमर सिंह की पार्टी में वापसी और उन्हें राज्यसभा भेजने के विरोध में थे. अखिलेश भी अमर सिंह की वापसी नहीं चाहते थे लेकिन शिवपाल चाहते थे कि अमर सिंह लौटें. अखिलेश के विरोध के बावजूद अमर सिंह ना सिर्फ सपा में लौटे बल्कि राज्यसभा सांसद भी बन गये.
मुख्तार अंसारी की वापसी नहीं चाहते थे अखिलेश
अफजल अंसारी और माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल की बात करें तो शिवपाल उसका सपा में विलय चाहते थे. पूरी तैयारी हो गयी थी लेकिन ऐन मौके पर अखिलेश विरोध कर बैठे. विलय की जमीन तैयार करने वाले बलराम यादव को अखिलेश ने बर्खास्त कर दिया. बाद में शिवपाल की मर्जी के मुताबिक कौएद का सपा में विलय हो ही गया.अखिलेश के करीबी आनंद भदौरिया और सुनील साजन को जब शिवपाल ने बाहर का रास्ता दिखाया तो चाचा भतीजा एक बार फिर आमने सामने हो गये. अखिलेश इतने अधिक नाराज हुए कि सैफई महोत्सव के उद्घाटन में ही नहीं गये. अखिलेश की नाराजगी को देखते हुए हालांकि साजन और भदौरिया का निष्कासन तीन दिन में ही रद्द कर दिया गया.
दीपक सिंघल और गायत्री प्रजापति भी रहे सुर्खियों में
मुख्य सचिव आलोक रंजन का कार्यकाल समाप्त होने के बाद अखिलेश नहीं चाहते थे कि यह जिम्मेदारी दीपक सिंघल को दी जाए, लेकिन शिवपाल के दबाव में सिंघल मुख्य सचिव बन गये. आखिरकार अखिलेश ने सिंघल को हटाकर राहुल भटनागर को नया मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया. अखिलेश की समाजवादी विकास रथयात्रा में मुलायम और शिवपाल दोनों शामिल हुए. पांच नवंबर को सपा के स्थापना दिवस समारोह में शिवपाल ने पुराने लोहियावादी और समाजवादियों को एकत्र कर यह दिखाने की कोशिश की कि अब सभी समाजवादी एक मंच पर होकर संघर्ष करेंगे. अखिलेश सरकार के कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति भी इस साल सुर्खियों में रहे. पहले उन्हें खनन मंत्री के पद से बर्खास्त किया गया लेकिन बाद में दबाव बनाया गया और उन्हें दोबारा मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया। गायत्री पर बडे घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोप हैं.