लखनऊ : उत्तर प्रदेश में इन दिनों सियासी घमसान मचा हुआ है. हाल के दिनों में पार्टी के अंदर चल रहा शीत युद्ध, अब सतह पर आ गया है. टिकट बंटवारे के टकराव ने इतनी कड़वाहट पैदा कर दी कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को पार्टी से 6 साल के लिए बाहर निकाल दिया. तेजी से बदलते इस सियासी घटनाक्रम में सीएम अखिलेश यादव ने अपने समर्थक विधायकों की बैठक बुलायी. सूत्रों की माने तो दोपहर के बाद अखिलेश यादव कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं. वहीं दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव ने उन लोगों की बैठक बुलायी है, जिनका नाम उन्होंने टिकट की लिस्ट से काट दिया है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सपा के लिए आज का दिन काफी महत्वपूर्ण है. आने वाले 48 घंटे में यह भी खुलकर सामने आ जायेगा कि मुलायम के समर्थन में कितने लोग हैं और अखिलेश को सपा का अगुवा कितने लोग देखना चाहते हैं.
कितने लोग किसके साथ
अखिलेश को पार्टी से निष्कासित करने के बाद जिस तरह से नौजवान समर्थकों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है उससे साफ लगता है कि यूपी की सियासत में अखिलेश यादव अपना पैर मजबूती से रख चुके हैं. सवाल, यह है कि दोनों नेताओं द्वारा बुलायी गयी बैठक में किससे कितने लोग मिलने पहुंचते हैं, यह काफी मायने रखता है. मुलायम सिंह यादव के प्रति पुरानी समाजवादी वफादारी निभाने वालों की संख्या ज्यादा है या फिर मुलायम पर अखिलेश गत पांच सालों में भारी पड़े हैं, यह बैठकों के बाद साफ हो जायेगा. दोनों नेताओं की बैठकों के बाद यह तसवीर भी साफ हो जायेगी कि अखिलेश यादव सपा के मुख्य धड़े के साथ बने रहते हैं या अपनी कोई नयीराह चुनते हैं. हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो इस पर बहुत कुछ कहना जल्दीबाजी होगी क्योंकि मामला पिता-पुत्र का है और सियासत में समझौते कब हो जाते हैं कोई नहीं जानता.
पार्टी के प्रति निष्ठावान नेताओं की हालत
सपा में शुरू हुए इस संग्राम से पार्टी के वैसे नेता काफी आहत हैं, जो मुलायम को सपा की नींव के रूप में देखते हैं और अखिलेश को भावी नेतृत्व के रूप में. मुलायम और अखिलेश के प्रति बराबर निष्ठावान रहे प्रतिबद्ध नेताओं को इस घटना से गहरा सदमा पहुंचा है. कई नेताओं ने टीवी पर दियेअपनेबयान में घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया लेकिन आशा यह जता रहे थे कि जल्द ही सबकुछ ठीक-ठाक हो जायेगा. इन नेताओं के बयान इस दर्द को बताने केलिएकाफी हैं जो सिर्फ पार्टी को आगे देखना चाहते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. मामला यदि नहीं सुलझा तो ऐसे नेताओं को अखिलेश या मुलायम में से किसी एक नेता को चुनना उनकी मजबूरी होगी. जैसा कि मुलायम सिंह यादव का पिछला रिकार्ड रहा है, ऐसे मौके पर वह कुछ खास लोगों की ही सुनते हैं. क्या आनेवाले समय में मुलायम ऐसे नेताओं की सुनेंगे जो सपा में एका चाहते हैं, यह कहना अभी बहुत जल्दीबाजी होगी.
क्या अखिलेश सीएम बने रहेंगे ?
पार्टी द्वारा छह साल के लिए निष्कासित होने के बाद अब शक्ति परीक्षण का वक्त है. यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि मुलायम के सामने मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश का विकल्प कौन बनता है. अखिलेश पार्टी के अंदर संख्याबल पा लेते हैं तो वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे. सवाल यह भी उठता है कि यदि समझौता नहीं होता है और रास्ता अलग-अलग होता है तो क्या मुलायम सिंह यादव सत्ता की बागडोर संभालेंगे? अखिलेश को जिस तरह समर्थकों का साथ मिल रहा है उससे यही लगता है कि आगामी चुनाव में सपा के बड़े चेहरे अखिलेश बन चुके हैं. सपा पर उनके वर्चस्व का संकेत समर्थक साफ दे रहे हैं. समर्थक दबी जुबान में यह कहते भी हैं कि अखिलेश ही समाजवादी पार्टी के आनेवाला कल हैं.
ताजा घटना का क्या होगा असर
सपा में चल रहे इस अंदरुनी कलह का असर राज्य के आसन्न चुनाव पर जरूर पड़ेगा. सूत्रों की मानें तो गत कई महीनों से पार्टी के अंदर दो ध्रुवों के बीच टकराहट का दौर जारी था. ताजा घटना उसी का परिणाम है. पार्टी में एक तरफ मुलायम और शिवपाल हैं वहीं दूसरी ओर अखिलेश और रामगोपाल. यह लड़ाई पार्टी के साथ-साथ परिवार के भीतर की लड़ाई के रूप में भी साफ दिख रही है. मुलायम ने पांच साल पहले अपनी विरासत अखिलेश को सौंपी थी लेकिन अब वे स्वयं अखिलेश के साथ नहीं हैं. पार्टी के नेता मानते हैं कि सपा के टूट से मुस्लिम एवं अन्य बीजेपी विरोधी वोट बीएसपी को जा सकता है. राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति में यादव के साथ अन्य पिछड़ी जातियां इस घटना के बाद कहीं बीजेपी के पास ना चली जायें. ताजा घटना का सबसे ज्यादा लाभ बहुजन समाज पार्टी को हो सकता है और मुसलिम वोट उसकी तरफ जा सकते हैं. वहीं अखिलेश जब पूरी तरह सपा से अलग होंगे तो उनके लिएभी कई दरवाजे खुल जायेंगे.
ज्यादातर विधायक अखिलेश के साथ
यूपी में यह चर्चा शुरू हो गयी है कि ज्यादातर विधायक अखिलेश यादव के साथ हैं. पार्टी के टूट की संभावना के बाद अखिलेश की स्थिति मजबूत होगी. जानकारों की मानें तो क्या, टूट के बाद सपा काकोई भाग इतना मजबूत होगा कि वह अपने दम पर बीएसपी और बीजेपी का मुकाबला कर सके? सपा की टूट से एक नये समीकरण के उभरने की आशंका जरूर जतायी जा रही है. आसन्न चुनाव तक अखिलेश यादव को सत्ता में बने रहने के लिए राज्यपाल का विश्वासचाहिए होगी. वहीं, चुनाव में उन्हें सपा के परंपरागत वोट बैंक की जरूरत पड़ेगी. अखिलेश यादव गत पांच सालों में युवाओं और महिलाओं में खासे लोकप्रिय हुए हैं. जबकि शिवपाल यादव ने पार्टी के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को अबतक जोड़े रखने का काम किया है. पार्टी में टूट से सपा के समीकरण बिगड़ने के ज्यादा कयास लगाये जा रहे हैं.