लखनऊ. भाजपा ने नोएडा से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को टिकट दिया है. भाजपा के लिए यह सीट करीब-करीब सुरक्षित मानी जाती है. राज्य में पांच ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा की पकड़ मजबूत है. उनमें नोएडा भी एक है. पंकज सिंह भाजपा के प्रदेश महासचिव हैं और पिछले डेढ़ दशक से यहां की राजनीति में सक्रिय है. नोएडा 2012 में विधानसभा क्षेत्र बना. उसके बाद यहां दो बार चुनाव हुए. पहली बार 2012 में और दूसरी बार 2014 में. दूसरी बार में यहां उपचुनाव हुआ था. दोनाें चुनाव में भाजपा यहां से वोटों के बड़े अंतर से जीती थी. माना जा रहा है कि पंकज सिंह की राजनीतिक सक्रियता और लगातार दो बार की जीत से भाजपा के लिए इस बार भी इस सीट को हासिल करना आसान होगा. वहीं सपा की अखिलेश सरकार ने यहां जो विकास कार्य किये हैं, उसका असर बेकार जाता नहीं दिख रहा है. ऊपर से कांग्रेस से सपा का गंठबंधन भी है. लिहाजा तमाम बातों के बावजूद पंकज सिंह के लिए यहां चुनौतियां कम नहीं हैं.
वहीं स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट पर 2,80,212 वोटों से जीत हासिल की थी। नोएडा इसी लोकसभा क्षेत्र में आता है।
उपचुनाव 2014 में शानदार जीत मिली थी पार्टी को
2012 के विधानसभा चुनाव में नोएडा से भाजपा के डॉ महेश शर्मा ने 27664 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. 2014 में वह गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट चुनाव लड़े और 2,80,212 वोटों से जीते. इसी लोकसभा क्षेत्र में नोएडा आता है. उनके सांसद बनने पर 2014 में विधानसभा का उपचुनाव हुआ. भाजपा ने विमला बॉथम को उम्मीदवार बनाया और वह पहले से भी ज्या 58,952 वोटों से जीत कर विधानसभा पहुंचे. भाजपा को इस चुनाव में 60.96 प्रतिशत वोट मिले थे, मगर इस बार भाजपा ने विमला का टिकट काट कर पंकज सिंह को दे दिया है.
माना जा रहा है कि पंकज सिंह के लिए यहां से विधानसभा पहुंचना आसान होगा, लेकिन पिछले दो सालों में अखिलेश सरकार ने यहां विकास का काम किया और इस काम को आगे ले जाने का उन्होंने जो ब्लू प्रिंट जनता को दिया है, वह सपा के लिए मायने रखता है. नोएडा सबसे विकसित शहर है. ग्रामीण से ज्यादा शहरी मतदाता है. यहां वोटरों की कुल संख्या 5.20 लाख है. इनमें से करीब सवा तीन लाख वोटर शहरी हैं. भाजपा का आकलन है कि आम तौर पर शहरी वोटरों में उसकी पकड़ ज्यादा मतबूत है. इसके अलावा नोएडा दिल्ली से सटा हुआ है. औद्योगिक क्षेत्र है और इस वर्ग में भाजपा ज्यादा मजबूत है. लिहाजा यहां से पंकज जी का जीतना लगभग तय है.
मगर विश्लेषक मानते हैं कि इस बार की परिस्थितियां विधानसभा के पिछले दो चुनावों से बिल्कुल अलग होंगी. पिछले दोनों चुनाव में सपा और कांग्रेस अलग-अलग थीं. इस बार दोनों का गंठबंधन है. लिहाजा दोनों के वोट सपा उम्मीदवार को मिल सकते हैं. 2012 में सपा ने सुनील चौधरी को उम्मीदवार बनाया था, जिन्हें 42044 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस ने डॉ वीएस चौहान को टिकट दिया था और उन्हें 25460 मत मिले थे. भाजपा समर्थक मानते हैं कि दोनों दलों के वोटों को अगर जोड़ कर देखा जाये, तो भी वे भाजपा के वाेटों के आंकड़े से बहुत पीछे हैं. दोनों को कुल 67504 वोट मिले थे, जबिक भाजपा उम्मीदवार महेश शर्मा के पक्ष में 77226 वोट पड़े थे. 2014 के उपचुनाव के आंकड़े भी यही दिखाते हैं. भाजपा के विमला बॉथम ने 100433 वोट लाये थे, जबकि सपा और कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले कुल वोट 58693 थे.
दूसरी ओर कांग्रेस समर्थकाें का आकलन है कि अलग-अलग की जगह साथ-साथ चुनाव लड़ने के कारण सपा-कांग्रेस पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा असरदार होंगे. ऊपर से प्रदेश सरकार ने जो काम िकया है, उसका लाभ उन्हें मिलेगा. अखिलेश यादव पहले के मुकाबले ज्यादा असरदार नेता बन कर उभरे हैं और उनकी छवि भी साफ-सुथरी है. दूसरी ओर भाजपा का आंतरिक कलह और असंतोष भी पंकज सिंह के लिए चुनौतियां पेश कर सकती हैं.
बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री के इस ऐलान के बाद भी कि बेटे-बेटियाें के लिए टिकट न मांगें, पंकज का टिकट पाना भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित होगा या मुनाफे का.