कैंट-महाराजपुर सीटों का मुद्दा नहीं सुलझा पाए राहुल-अखिलेश, दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशी मैदान में
कानपुर : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के हस्तक्षेप के बावजूद शहर की महाराजपुर और कैंट सीट की गुत्थी सुलझ नहीं पायी है और रविवार को सपा कांग्रेस की संयुक्त रैली में मंच पर दोनों सीटों के दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार मौजूद थे और वे अपने-अपने लिए वोट मांग […]
कानपुर : कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के हस्तक्षेप के बावजूद शहर की महाराजपुर और कैंट सीट की गुत्थी सुलझ नहीं पायी है और रविवार को सपा कांग्रेस की संयुक्त रैली में मंच पर दोनों सीटों के दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार मौजूद थे और वे अपने-अपने लिए वोट मांग रहे थे.
कैंट सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर हसन रुमी ने अपना नामांकन दाखिल किया था लेकिन बाद में यह सीट गठबंधन के नाते कांग्रेस के सुहैल अंसारी को मिल गयी है. सुहैल ने कल रैली के मंच से संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर वोट भी मांगे, लेकिन दूसरी तरफ सपा के रुमी ने अपना नामांकन वापस नहीं लिया और वह यह कहते हुये मैदान में हैं कि पार्टी ने उन्हें चुनाव निशान दिया है और समाजवादी पार्टी आला कमान से उन्हें नामांकन वापस लेने का कोई आदेश नहीं मिला है, इसलिये वह चुनाव लडेंगे.
शहर की ग्रामीण सीट महाराजपुर पर सपा ने पार्टी की पुरानी महिला नेता अरुणा तोमर को टिकट दिया था. उसके बाद कांग्रेस से गठबंधन हो गया और यह सीट कांग्रेस को चली गयी और कांग्रेस ने यहां से अकबरपुर के पूर्व सांसद राजाराम पाल को टिकट दिया है. वहीं जब सपा ने अरुणा को नामांकन वापस लेने को कहा तो वह तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर अस्पताल में भर्ती हो गयीं. कल मंच पर अरुणा और राजाराम दोनों थे और दोनों ही महाराजपुर सीट से अपने लिये वोट मांग रहे थे. मंच से सपा मुखिया अखिलेश ने कहा कि हम यह मामला आपस में संभाल लेंगे.
उधर, कांग्रेस प्रत्याशी राजाराम का कहना है, ‘‘मैं महाराजपुर से चुनाव जरुर लडूंगा क्योंकि मैं गठबंधन का प्रत्याशी हूं.’ वहीं, अरुणा का कहना है कि उनसे पार्टी ने चुनाव लडने को कहा है, इसलिये वह मैदान में हैं. शहर की कैंट सीट पर भी यही स्थिति है. सीट से सपा प्रत्याशी रुमी का कहना है कि वह सपा के टिकट से चुनाव लडेंगे. इस बीच, चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि गठबंधन की इस उलझी गांठ से दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों को नुकसान होगा और इसका फायदा कोई तीसरी पार्टी ले जायेगी.