लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए प्रथम चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15 जिलों की 73 सीटों के लिए चुनाव प्रचार का शोर गुरुवार को समाप्त हो गया. इन सीटों के लिए 11 फरवरी को मतदान होगा. मुसलिम बहुल इस क्षेत्र में लगभग तीन साल पहले दंगों का दंश झेल चुके मुजफ्फरनगर और शामली जैसे इलाके शामिल हैं. विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं में चले तीखे व्यंग्य वाणों और आरोपों के बावजूद आमतौर पर शांतिपूर्ण रहा प्रचार अभियान अंतत: खून के छींटे भी पड़े और तीन जाने भी गयीं.
वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में इस चरण की 73 सीटों में से भाजपा को केवल 11 पर जीत मिली थी. मगर दो साल बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इस पार्टी ने इस अंचल की सभी लोकसभा सीटों पर अपना परचम फहराया था. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल के साथ प्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीती थी. पिछले विधानसभा चुनाव में इस अंचल में सपा, बसपा ने 24-24 सीटें मिली थी. रालोद को नौ तथा कांग्रेस को पांच सीट मिली थी. भाजपा ने लोकसभा की कामयाबी को दोहराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में जोरदार प्रचार अभियान चलाया.
सपा का आरोप
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सपा ने बसपा मुखिया मायावती पर भाजपा से सांठगांठ करने का आरोप लगाया. सपा ने कहा कि चुनाव में मुसलिम वोटों का बंटवारा कराकर भगवा दल को फायदा पहुंचाने के लिये ही मायावती मुसलमानों को बरगला रही हैं. सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि उनके पास पक्की जानकारी है कि मायावती ने भाजपा के साथ मिल कर बनायी रणनीति के तहत ही करीब 99 सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतारे हैं, ताकि मुसलमानों का वोट सपा और बसपा में बंटे और भाजपा इसका फायदा उठा ले. चौधरी ने कहा कि विरोधी लोग सपा सरकार पर मुसलमानों के लिये कुछ नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन इसमें कोई सचाई नहीं है. सरकार ने अपनी तमाम योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 प्रतिशत हिस्सेदारी दी है. जहां तक 18 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की बात है, तो यह केंद्र सरकार के हाथ में है, जिसके लिये सपा उस पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश कर रही है. चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय उलमा काउंसिल और हिंदू महासभा के बसपा को समर्थन देने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.